
इंदौर। यह पहला मौका नहीं है जब हवा-हवाई (hava-havaee) योजनाएं बनाकर उन्हें फाइलों (files) में दफन (buried) कर दिया जाता है। शहर की परिवहन व्यवस्था सुधारने के लिए मध्य क्षेत्र में केबल कार (cable car) चलाने का सपना भी इसी तरह दिखाया गया और लाखों रुपए की राशि प्राधिकरण ने फिजिबिलिटी सर्वे पर खर्च की, जिसमें 60 किलोमीटर में केबल कार की 7 लाइनें चलाने और 41 स्टेशन बनाने का प्रोजेक्ट तैयार किया गया, जिसमें पहले चरण पर 250 करोड़ रुपए की राशि ढाई किलोमीटर के रुट पर खर्च होना अनुमानित की गई। प्राधिकरण बोर्ड ने बकायदा इस सर्वे रिपोर्ट को मंजूर किया और फिर शासन को भेज दिया। मगर अभी तक शासन स्तर पर कोई हलचल नहीं है और यह प्रोजेक्ट भी फिलहाल ठंडे बस्ते में ही पड़ा है।
जब केन्द्र सरकार के महत्वपूर्ण मेट्रो प्रोजेक्ट की दुर्दशा इंदौर में जगजाहिर है। बीते डेढ़ साल से शासन यही निर्णय नहीं ले सका है कि अंडरग्राउंड रुट एमजी रोड से शुरू होगा या खजराना चौराहा से। नतीजतन मेट्रो प्रोजेक्ट की कॉस्ट भी हर 24 घंटे में बढ़ रही है। दूसरी तरफ इंदौर का लोक परिवहन पहले से ही चौपट है। थोड़ा-बहुत जो बीआरटीएस पर चलता था, वह भी खत्म कर दिया गया। दूसरी तरफ केबल कार का सपना भी देखा। दरअसल, केन्द्र सरकार ने धार्मिक पर्यटन के साथ बड़े शहरों में यातायात के दबाव के मद्देनजर केबल कार चलाने की भी बात कही थी, जिसके चलते इंदौर में भी फिजिबिलिटी सर्वे करवाया गया, जिसमें 60 किलोमीटर का रुट केबल कार के लिए उपयुक्त माना गया, जिसमें 7 लाइनें और 41 स्टेशन प्रस्तावित किए गए और शुरुआत में पहले चरण के तहत ढाई किलोमीटर के रुट पर 250 करोड़ रुपए की राशि खर्च होना बताई गई। इंदौर विकास प्राधिकरण ने निजी फर्म की सहायता से यह सर्वे करवाया और 100 करोड़ रुपए प्रति किलोमीटर की अनुमानित लागत आंकी गई। चंदन नगर, लाबरिया भेरू, गंगवाल, मालगंज, जवाहर मार्ग, शिवाजी वाटिका, रेलवे स्टेशन, मालवा मिल, पाटनीपुरा, भमोरी से नीरंजनपुर जैसे मध्य क्षेत्र के सबसे अधिक यातायात और घने क्षेत्रों को इस सर्वे में शामिल किया गया। हालांकि 60 किलोमीटर में केबल कार चलाने का शुरुआती खर्च 6 हजार करोड़ रुपए से अधिक आएगा और इसकी मंजूरी शासन को देना है।
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