
1300 ज्यादा सरकारी स्कूल जांच सिर्फ 43 की क्यों… शहर में लगभग 3900 से ज्यादा शैक्षणिक संस्थान
इंदौर. अप्रैल माह में नए सत्र (New season) की शुरुआत से लेकर अब तक लगभग 9 माह बीत जाने के बावजूद भी स्वास्थ्य विभाग (health department) चिन्हित किए गए 580 बच्चों को रिफ्रैक्टिव एरर (refractive error) के लिए चश्मा (glasses) नहीं दे पाया है। कम नजर के चलते बच्चों को स्कूल में ब्लैकबोर्ड देखना और पढ़ाई में आ रही दिक्कतों से अभी और जूझना होगा, क्योंकि स्वास्थ्य विभाग को जब तक सरकार से पैसे नहीं मिलेंगे, चश्मे वितरित नहीं किए जा सकेंगे। हालांकि कलेक्टर से लगी फटकार के बाद स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी दानदाताओं की भी तलाश कर रहे हैं।
अंधत्व निवारण कार्यक्रम के तहत व स्वास्थ्य जागरूकता मुहिम के तहत स्कूलों में समय-समय पर बच्चों की स्वास्थ्य जांच की जाती है, जिसमें कम नजर के चलते परेशानियों का सामना कर रहे बच्चों को सरकार की तरफ से निशुल्क चश्मे बनाकर भी दिए जाते हैं। इस साल स्वास्थ्य विभाग में सिर्फ 43 स्कूलों में ही यह अभियान छेड़ा और 580 बच्चे चिन्हित किए, जबकि इंदौर जिले में 1300 से अधिक सरकारी स्कूल संचालित हैं, लेकिन इन्हें भी अभी तक चश्मे नहीं बांटे गए हैं। हाल ही में हुई जिला स्वास्थ समिति की बैठक में कलेक्टर शिवम वर्मा ने स्कूली बच्चों को चश्मे के लिए चिन्हित किए जाने के बाद भी आधा सत्र निकल जाने के बावजूद चश्मा प्रदान नहीं किए जाने को लेकर खासी आपत्ति दर्ज कराई थी। उन्होंने कहा कि अब तक तो बच्चों के चश्मा का नंबर भी बदल गया होगा। आधा सत्र बिना चश्मे के पढ़ाई करना कितना मुश्किल हुआ होगा, जिसके बाद अब सीएमएचओ माधव हसानी दानदाताओं की तलाश कर रहे हैं। स्कूलों में नियमित आंखों व स्वास्थ्य जांच की जा रही है या नहीं जानकारी न होने पर जिला शिक्षा अधिकारी व डीपीसी को भी कड़वी घुट्टी पिलाई थी।
3954 स्कूलों में सरकारी 1300
इंदौर जिले में 737 प्राथमिक 2390 माध्यमिक 266 हाई स्कूल और 561 हायर सेकेंडरी स्कूल संचालित होते हैं। कुल 3954 शैक्षणिक संस्थान हैं, जिनमें सिर्फ 1300 ही सरकारी हैं, जिनमें अंधत्व निवारण कार्यक्रम के तहत हर साल सरकारी स्कूल को ब्लाक लेवल पर कैंप आयोजित किए जाते हैं। इस साल 43 स्कूलों में कैंप लगाकर 3849 बच्चों की आंखों की जांच कर इतिश्री हो गई। इसमें भी 580 बच्चों की आंखों में परेशानी के चलते उन्हे चश्मे दिए जाने थे, लेकिन स्वास्थ्य विभाग की उदासीनता के चलते बच्चों को नहीं मिल पाए हैं। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी सीएमएचओ डॉ. माधव हसानी ने बताया कि शासन की तरफ से फंड नहीं मिलने के कारण प्रक्रिया अटकी पड़ी है। अब शहर के दानदाताओं की मदद से बच्चों को जल्द ही चश्मा उपलब्ध कराएंगे। सरकार के फंड मिलते ही चश्मे भी बच्चों को दिए जाएंगे, यानी बच्चों को दो चश्मे मिलेंगे।
आंखों के साथ भविष्य से खिलवाड़
आधा सत्र बीत गया, अब तक बच्चों का नंबर भी बदल गया होगा। यह बच्चों की आंखों और भविष्य से खिलवाड़ है। शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग दोनों को निर्देश दिए कि चश्मे जल्द से जल्द वितरित किए जाएं और जांच की प्रक्रिया को नियमित बनाया जाए।
-शिवम वर्मा, कलेक्टर
6 माह में बढ़ जाता है नंबर
नेत्र रोग विशेषज्ञों के अनुसार आंखों का नंबर हर छह महीने में बदल जाता है, वहीं 12 साल के बाद बच्चों की ग्रोइंग एज होती है। ऐसे में लंबे समय तक चश्मा न मिलने से बच्चों की दृष्टि पर स्थायी असर पड़ सकता है। बच्चों का नंबर पावर बढ़ जाता है। सामान्यत: बच्चों को हर एक साल में आंखों की जांच कराकर सही नंबर का चश्मा पहनाना चाहिए।
-डॉ टीना अग्रवाल, नेत्र विशेषज्ञ
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