
संत बहता पानी, निरंतर चलते रहना ही कर्तव्य
इंदौर। जैन साधु-साध्वियों (Jain monks and nuns) के कठिन त्याग (Difficult sacrifice), तपस्या (penance) और वैराग्य (renunciation) को देख सभी आश्चर्यचकित रहते हैं। आज सुबह 6 बजे कड़ाके की सर्दी में भी पश्चिम क्षेत्र में 8 साध्वी श्रीसंघ का विहार हुआ। बड़ी संख्या में श्वेतांबर जैन समाज चातुर्मास की विदाई साध्वी श्रीसंघ को देने पहुंचे और ठंडी होने के बावजूद साथ भी चले।
हाईलिंक सिटी स्थित पाश्र्व कल्पतरु धाम पाश्र्वनाथ मंदिर से आज सुबह 6 बजे साध्वी जीवन के 62 वर्ष पूर्ण करने वाली 78 वर्षीय साध्वीश्री अमितगुणा श्रीजी का श्रीसंघ के साथ विहार हुआ। वे गुमास्ता नगर उपाश्रय पहुंचेगी। यहां एक सप्ताह रुकने के बाद पालीताणा तीर्थ की ओर जाएंगी। श्रीसंघ को विदाई देने वालों में श्री धरणीधर पाश्र्वनाथ मंदिर एवं ट्रस्ट अध्यक्ष पुंडरिक पालरेचा, अजीत चोपड़ा, लाकेश कोठारी, विशाल बम, दिलीप खेमसरा, दिलीप जैन, अंकित मारू, कपिल कोठारी, जयंत खाब्या, युगल सेठिया, धीरज पालरेचा, गौरव लोढ़ा, सुरभि कोठारी, साधना चोरडिय़ा, निशा पोरवाल, माधुरी बम, विशाल बम, आयुषी कोठारी सहित बड़ी संख्या में समाजजन शामिल हुए और पैदल चले। पुंडरिक पालरेचा ने बताया कि साध्वी अमितगुणा श्रीजी ने इस चातुर्मास में तीन मंजिला आराधना भवन की सौगात दी। यह साधु-साध्वियों एवं श्रावक-श्राविकाओं के लिए तपस्या-आराधना का केंद्र रहेगा। अमितगुणा श्रीजी ने कहा कि संत बहते पानी के समान होते हैं। वह एक जगह ठहरते नहीं हैं। चातुर्मास का समय पूरा हुआ। अब यहां से विदा होने का पुण्य अवसर आया है। आप सभी भगवान महावीर की वाणी को जीवन में आत्मसात कर जियो और जीने दो के संदेश के साथ अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ें। विहार करने वाली साध्वियों में प्रमुख रूप से साध्वी अमीझरा श्रीजी, पुण्यझरा श्रीजी, स्नेहझरा श्रीजी, रम्यकीर्ति श्रीजी, भव्यकीर्ति श्रीजी, तीर्थकीर्ति श्रीजी, रक्षकीर्ति श्रीजी, काव्यकीर्ति श्रीजी, आज्ञाकीर्ति श्रीजी आदि श्रीसंघ ने भी गुमास्ता नगर उपाश्रय की ओर विहार किया।
सौ से ज्यादा दीक्षा 50 से ज्यादा मंदिर और उपाश्रय बनवाए
पुंडरिक पालरेचा और रितेश संघवी ने बताया कि अमितगुणा श्रीजी ने अभी तक सौ से ज्यादा साध्वियों को दीक्षा दी है, जो देशभर में जैन शासन का प्रचार-प्रसार कर रही हैं व भगवान महावीर के संदेश को जन-जन तक पहुंचा रही हैं। इसके साथ ही साध्वीजी ने 50 से ज्यादा मंदिर और उपाश्रयों का निर्माण भी करवाया है, जहां पर श्रावक-श्राविकाएं तप-आराधना कर रहे हैं।
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