
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार (16 अक्टूबर) को तेलंगाना सरकार (Telangana Government) की उस याचिका (petition) को खारिज कर दिया, जिसमें स्थानीय निकायों में पिछड़े वर्गों को 42 फीसदी आरक्षण देने संबंधी सरकारी आदेश पर रोक लगाने के हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी। वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा, “आप पहले से मौजूद आरक्षण के साथ ही अपने चुनाव जारी रखें।”
तेलंगाना की कांग्रेस नीत रेवंत रेड्डी सरकार ने स्थानीय निकायों में पिछड़े वर्गों को 42% आरक्षण देने के लिए 26 सितंबर को सरकारी आदेश जारी किया था, जिस पर तेलंगाना हाई कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी थी। इसके बाद राज्य सरकार ने हाई कोर्ट के 9 अक्टूबर के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। याचिका खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि उसके आदेश का असर हाई कोर्ट में लंबित याचिकाओं पर नहीं पड़ेगा और इन मामलों में उनके गुण-दोष के आधार पर निर्णय लिया जाएगा।
राज्य सरकार की तरफ से AM सिंघवी पेश
मामले में राज्य सरकार की तरफ से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी पैरवी कर रहे थे। उन्होंने शीर्ष अदालत को बताया कि राज्य हाई कोर्ट के अंतरिम आदेश से प्रभावित हुआ है। इसी बीच, एक वकील ने कहा कि उच्च न्यायालय ने चुनावों पर रोक नहीं लगाई है। इस पर सिंघवी ने कहा, “यह एक ऐसे राज्य का नीतिगत फैसला है जो खुद को सूचित, शिक्षित और प्रबुद्ध करना चाहता है और फिर सभी नीतियां पिछड़े वर्गों के एक बहुत बड़े प्रतिशत को ध्यान में रखकर बनाना चाहता है।”
हाई कोर्ट ने रोक लगाने का कोई कारण नहीं बताया
उन्होंने यह भी कहा कि बिना दलीलों के सरकारी आदेश पर रोक कैसे लगाई जा सकती है। सिंघवी ने कहा कि अंतिम दो पृष्ठों को छोड़कर, हाई कोर्ट ने रोक लगाने का कोई कारण नहीं बताया। इस पर पीठ ने कहा, “आपका मामला यह नहीं है कि आरक्षण नहीं है। आरक्षण है। आप आरक्षण का प्रतिशत बढ़ा रहे हैं।” इस पर सिंघवी ने कहा कि यह एक “गलत धारणा” है कि शीर्ष अदालत के पिछले फैसलों में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तय की गई थी।
ऐक्ट और बिल पर उलझ पड़े जज और वकील
पीठ ने पूछा, “आप चुनाव की अधिसूचना की तारीख से पहले ही अपना सरकारी आदेश क्यों नहीं जारी कर सकते थे?” इस पर सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल ने उसे रोक रखा था। इसी दौरान सिंघवी ने कहा, एक महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने ऐक्ट को नहीं, बल्कि उसके परिणामों को चुनौती दी है। इस पर भावी CJI जस्टिस विक्रम नाथ ने सिंघवी को टोकते हुए कहा, “ऐक्ट नहीं यह एक बिल (विधेयक) है।” इस पर सिंघवी फिर बोल पड़े, “नहीं यह एक ऐक्ट है।”
गोपाल शंकरनारायणन ने दिया दखल
बार एंड बेंच के मुताबिक, जब जस्टिस विक्रम नाथ और सिंघवी ऐक्ट और बिल पर उलझ रहे थे, तभी वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा, “एक मिनट के लिए प्रक्रिया को भूल जाइए… मान लीजिए कि डॉ. सिंघवी ने जो कुछ कहा, वह सब मान लिया जाए। जिस सरकारी आदेश को हमने चुनौती दी है, वह ओबीसी के लिए आरक्षण को बढ़ाकर 42% कर देता है, जिससे कुल आरक्षण 60% से कहीं ज़्यादा हो जाता है। संविधान पीठ ने संविधान के इन प्रावधानों की व्याख्या की है, जो स्पष्ट रूप से 50% कहती है। 50% से आगे आरक्षण की कोई गुंजाइश नहीं है। इसमें इंद्रा साहनी फैसले का हवाला दिया गया है; यह सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों से संबंधित है… वहाँ आप 50% से आगे जा सकते हैं।”
2027 में देश के मुख्य न्यायाधीश बनेंगे जस्टिस नाथ
इस पर जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा कि हाई कोर्ट ने भी इसी फैसले को आधार माना है। इसके बाद गोपाल शंकरनारायणन ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा, हाँ। अब यह एक कानून है। इसी बीच सिंघवी फिर बोल पड़े कि कानून को चुनौती नहीं है। चुनौती तो कार्रवाई को है। क्या 50% की कोई पूर्ण सीमा है? इस समय यही देखने की ज़रूरत है….. उन्होंने कहा, “कल्पना कीजिए, माई लॉर्ड्स, अगर आप मानते हैं कि आरक्षण पर 50% की पूर्ण सीमा है। ऐसे राज्य में क्या किया जाना चाहिए जहाँ ओबीसी आबादी 70% से ज़्यादा है? इसलिए, माई लॉर्ड्स, मैं अनुरोध करता हूँ कि आप इस बड़े मुद्दे पर विचार करें कि क्या 50% की सीमा को पार किया जा सकता है; अन्यथा, पूरे देश के लिए 50% का एक कठोर नियम बन जाएगा। इस पर जस्टिस विक्रम नाथ ने याचिका खारिज करते हुए कहा, “आप अपने चुनाव जारी रख सकते हैं… खारिज।” बता दें कि जस्टिस विक्रम नाथ जस्टिस सूर्यकांत के बाद 2027 में देश के मुख्य न्यायाधीश बनेंगे।
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