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क्या एथेनॉल ब्लेंड पेट्रोल पहुंचा रहा वाहन को नुकसान? सरकार ने दी सफाई

August 05, 2025

नई दिल्ली. भारत सरकार (Government of India) एथेनॉल-मिश्रित पेट्रोल (Ethanol-blended petrol) को बढ़ावा देकर अपने ग्रीन फ्यूल पॉलिसी (Green Fuel Policy) का तेज़ी से विस्तार कर रही है. इसकी शुरुआत E10 (10 प्रतिशत एथेनॉल) से हुई और अब इसे देश भर के पेट्रोल पंपों पर E20 (20 प्रतिशत एथेनॉल) तक बढ़ाया जा रहा है. लेकिन इस बीच अचानक से एथेनॉल ब्लेंड फ्यूल को लेकर लोगों के बीच चिंता बढ़ गई है. कुछ वाहन मालिकों ने इथेनॉल ब्लेंड फ्यूल से वाहन के इंजन को होने वाले नुकसान को लेकर चिंता व्यक्त की है.

दरअसल, भारत सरकार इथेनॉल-मिक्स पेट्रोल के प्रयोग को बढ़ावा देकर फ्यूल इंपोर्ट पर निर्भरता कम करना चाहती है. लेकिन कार मालिक, खासकर वे जिन्होंने कुछ साल पहले अपनी गाड़ियाँ खरीदी थीं, महसूस कर रहे हैं कि उनके लिए ये नुकसान का सौदा है. हाल के दिनों में, कई वाहन मालिकों ने एथेनॉल-ब्लेंड पेट्रोल से इंजन को होने वाले संभावित खतरों के बारे में चिंता जताई है, इस आशंका के साथ कि पुरानी कारों में, एथेनॉल-ब्लेंड फ्यूल का उपयोग न केवल माइलेज पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है बल्कि इंजन की उम्र को भी कम कर सकता है, और यहाँ तक कि मरम्मत का खर्च भी भारी पड़ सकता है.


वहीं इस मामले को तूल पकड़ता देख पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय (MoPNG) ने ऐसी चिंताओं को “काफी हद तक निराधार” और “वैज्ञानिक प्रमाणों या विशेषज्ञ विश्लेषण” से रहित बताया है. मंत्रालय ने सोशल नेटवर्किंग साइट ‘X’ पर बाकायदा इसके लिए एक लंबा-चौड़ा लेख लिखा है, जिसमें एथेनॉल ब्लेंड फ्यूल की खूबियों को बताया गया है.

क्या कह रहा है मंत्रालय?
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के आधिकारिक पोस्ट में कहा गया है, “…यह धारणा कि पेट्रोल में इथेनॉल मिश्रण वाहनों को नुकसान पहुँचा रहा है या उपभोक्ताओं को अनावश्यक परेशानी दे रहा है, वास्तविक तथ्यों पर आधारित नहीं है और इसमें तकनीकी आधार का अभाव है. इथेनॉल मिश्रण एक दूरदर्शी, वैज्ञानिक रूप से समर्थित और पर्यावरण की दृष्टि से ज़िम्मेदारी भरा उपाय है जो राष्ट्र को बहुआयामी लाभ पहुँचाता है,”

टेस्टिंग में नहीं मिली कोई कमी
मंत्रालय के अनुसार, “एथेनॉल-ब्लेंड फ्यूल के उपयोग के प्रभाव पर अंतर्राष्ट्रीय अध्ययनों से पता चला है कि कार्बोरेटेड और फ्यूल-इंजेक्टेड वाहनों का उनके पहले 1 लाख किलोमीटर के दौरान हर 10,000 किलोमीटर पर परीक्षण किया गया, जिसमें वाहन के पावर, टॉर्क या माइलेज पर कोई नाकारात्मक असर नहीं देखा गया है.

“ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ARAI), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम (IIP) और इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (R&D) द्वारा किए गए टेस्ट ने पुष्टि की है कि पुराने वाहनों में भी E20 फ्यूल के इस्तेमाल से वाहन के चलने पर कोई महत्वपूर्ण बदलाव, परफॉर्मेंस संबंधी समस्याएँ या वियर-एंड-टियर नहीं देखा गया है.”

वाहन के माइलेज पर क्या कहती है सरकार
एथेनॉल ब्लेंड फ्यूल के इस्तेमाल पर वाहनों का माइलेज कम होने के बारे में मंत्रालय का कहना है कि, रेगुलर पेट्रोल की तुलना में इथेनॉल की एनर्जी डेंसिटी कम होने के कारण, माइलेज में मामूली कमी आती है. जो E10 के लिए डिज़ाइन किए गए और E20 के लिए कैलिब्रेट किए गए चार पहिया वाहनों के लिए अनुमानित 1-2%, और अन्य वाहनों के लिए लगभग 3-6% है. हालांकि, एफिशिएंसी के मामले में इस मामूली गिरावट को बेहतर इंजन ट्यूनिंग और E20-कम्प्लाएंट एलिमेंट के उपयोग के माध्यम से और भी कम किया जा सकता है. जिन्हें प्रमुख ऑटोमोबाइल निर्माता पहले ही अपना चुके हैं.

वहीं मंत्रायल ने यह भी कहा कि, “सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) ने पुष्टि की है कि एडवांस कंपोनेंट वाले E20-कम्प्लाएंट वाहन अप्रैल 2023 से उपलब्ध होने शुरू हो गए हैं. इस प्रकार, यह आरोप कि E20 फ्यूल एफिशिएंसी में भारी गिरावट का कारण बनता है, तथ्यात्मक रूप से गलत है.”

मैकेनिज़्म और रिपेयरिंग पर क्या कहता है मंत्रालय?
एथेनॉल के प्रयोग से वाहन के इंजन मैकेनिज़्म, कार्बोरेट या फ्यूल इंजेक्टर और महंगे मरम्मत खर्च पर मंत्रालय का कहना है कि, “E20 फ्यूल BIS निर्देशों और ऑटोमोटिव इंडस्ट्री स्टैंडर्ड द्वारा अच्छी तरह से सत्यापित है. हालांकि कुछ पुराने वाहनों में, लगभग 20,000 से 30,000 किलोमीटर के लंबे उपयोग के बाद, कुछ रबर पुर्जों/गैस्केट को बदलने की सलाह दी जा सकती है. यह रिप्लेसमेंट सस्ता है और वाहन की नियमित सर्विसिंग के दौरान आसानी से किया जा सकता है.”

किफायती और पर्यावरण के लिए बेहतर है एथेनॉल
मिनिस्ट्री ने अपने पोस्ट में कहा कि, “एथेनॉल फॉसिल फ्यूल पेट्रोल को रिप्लेस करता है और CO2 उत्सर्जन को कम करता है. भारत का इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम फीडस्टॉक डायवर्सिफिकेशन के माध्यम से संचालित होता है. इथेनॉल का उत्पादन न केवल गन्ने से, बल्कि चावल, मक्का, खराब हो चुके फूडग्रेन और कृषि अवशेषों से भी तेजी से किया जा रहा है. इससे इथेनॉल मिश्रण न केवल तकनीकी रूप से बेहतर है, बल्कि पर्यावरणीय रूप से भी टिकाऊ है. नीति आयोग द्वारा इथेनॉल के जीवन चक्र उत्सर्जन पर किए गए एक अध्ययन में यह आकलन किया गया है कि गन्ना और मक्का आधारित इथेनॉल के उपयोग से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पेट्रोल की तुलना में क्रमशः 65% और 50% कम है.”

सरकार ने गिनाए एथेनॉल के फायदे
एथेनॉल से होने वाले फायदे के बारे में मंत्रालय के पोस्ट में कहा गया कि, “इथेनॉल की ऑक्टेन संख्या पेट्रोल से ज़्यादा होती है (~108.5 बनाम 84.4), जिसका मतलब है कि, इथेनॉल-पेट्रोल में पारंपरिक पेट्रोल की तुलना में ऑक्टेन संख्या ज़्यादा होती है. इसलिए, इथेनॉल का उपयोग हाई-ऑक्टेन फ्यूल (~95) प्रदान करने का एक विकल्प बन जाता है, जो आज-कल के मॉर्डन हाई कंप्रेसन रेशियो इंजन के लिए जरूरी है. ये इंजन बेहतर राइडिंग एक्सपीरिएंस देते हैं.

“वहीं जिन वाहनों को E20 कम्प्लाएंट इंजन से लैस किया गया है या जिन्हें ट्यून किया गया है उनकी परफॉर्मेंस और भी बेहतर होती है. इथेनॉल की एक खूबी यह भी है कि इसकी वाष्पीकरण ऊष्मा पेट्रोल से ज़्यादा होती है. जो इनटेक मैनिफोल्ड के टेंप्रेचर को कम करता है, जिससे एयर-फ्यूल मिक्सचर डेंसिटी बढ़ती है.”

केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया पर अपने एक पोस्ट में भारत की एथेनॉल जर्नी के बारे में कहा था कि –
इथेनॉल मिश्रण 2014 के 1.53% से बढ़कर 2025 तक 20% हो गया है.
उत्पादन 38 करोड़ लीटर से बढ़कर 661.1 करोड़ लीटर हो गया है.
विदेशी मुद्रा में 1.36 लाख करोड़ रुपये की बचत हुई है.
698 लाख टन CO₂ उत्सर्जन में कमी आई है.
सिर्फ एक दशक से भी कम समय में इथेनॉल क्षमता चार गुना बढ़ गई है.

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