
नई दिल्ली। भारत के पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने शुक्रवार को एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि भारत पूरी तत्परता से जलवायु कार्रवाई में अपना योगदान दे रहा है। उन्होंने कहा कि हालांकि जलवायु संकट में भारत की भूमिका बेहद सीमित है। ‘सागरमाथा संबाद’ कार्यक्रम के पहले संस्करण में अपने संबोधन में भूपेंद्र यादव ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर पर्वतीय क्षेत्रों में पड़ रहा है। उन्होंने विकसित देशों द्वारा कार्बन बजट में कटौती पर भी नाराजगी जाहिर की।
वैश्विक कार्बन बजट, पर्यावरण में कार्बन डाइ ऑक्साइड छोड़े जाने के अनुपात में विकसित देशों द्वारा दिया जाने वाला फंड है। यादव ने कहा कि ‘विकसित देशों ने जलवायु वित्त, तकनीक और जलवायु परिवर्तन से प्रभावित देशों में क्षमता निर्माण का वादा किया था, लेकिन अब वे इससे मुकर रहे हैं। इससे जलवायु संकट बढ़ रहा है।’ सागरमाथा संबाद को केंद्रीय मंत्री ने कहा कि ‘यह सिर्फ संवाद का मंच नहीं है बल्कि अब हमें एकजुट होकर कार्रवाई करने की जरूरत है। भारत, पीएम मोदी के नेतृत्व में जलवायु कार्रवाई में जितनी जरूरत है, उतना पूरी तत्परता योगदान कर रहा है, जबकि भारत की इस संकट में बेहद कम भूमिका है।’
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि ‘पर्यावरण संकट का सबसे ज्यादा असर हिमालयी पर्वत शृंखला पर पड़ रहा है। भारत के लिए हिमालय क्षेत्र बेहद अहम है और इस पर पड़ रहे असर को भारतीय हिमालयी राज्यों में साफ तौर पर महसूस किया जा सकता है।’ भूपेंद्र यादव ने कहा कि सभी देशों के एकजुट होकर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने की कोशिश करनी होगी। उन्होंने कहा कि दक्षिण एशिया पूरी दुनिया में कुल कार्बन उत्सर्जन का सिर्फ 4 प्रतिशत ही उत्सर्जन करता है, जबकि यहां दुनिया की कुल आबादी की 25 फीसदी आबादी रहती है। उन्होंने कहा कि भारत नेपाल और अन्य हिमालयी देशों के साथ मिलकर काम कर रहा है। एक पेड़ मां के नाम अभियान के तहत देश में 1.42 अरब पेड़ लगे हैं और इनमें से 72 करोड़ पेड़ भारत के हिमालयी क्षेत्र में लगे हैं।
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