
दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न था
इस तरह बरसात का मौसम कभी आया न था।
सावन-हो या भादो जब बरसते हैं तो इंसानी दिल की कैफियत का क्या पूछिये। आप में से कई कई लोग बरसते बादलों के मज़े लेने के लिए पचमढ़ी या मांडू का रुख कर लिया करते हैं। वैसे भोपाल के आसपास हलाली, घोड़ा पछाड़, सलकनपुर, अमरगढ़ , महादेवपानी, रेहटी, बुदनी वैगरह तमाम टूरिस्ट स्पॉट्स अपने शबाब पे होते हैं। सतपुड़ा की वादियों हों या विंध्य की जिस सिम्त भी नजऱ डालेंगे तो हरियाली आपको जैसे अपने मे समो लेगी।बाकी सहाफियों (पत्रकारों) को हरियाली के ये नज़ारे करने की कहां फुरसत होती है। वो तो बिचारे भीगते-भागते खबरों की उधेड़बुन मेई लगे रेते हेंगे। बाकी भोपाल में छाए घने काले बादल इन दिनों ज़रूरत से ज्यादाई मेहरबान हुए जा रय हेंगे। हाल ये हेगा साब के आज भोपाल की ओसत बारिश 42.5 इंच का आंकड़ा पूरा करके टोटल बारिश 44 इंच से उपर निकल गई। मकसद ये हेगा साब के अब जो बी बारिश ही रई है वो बोनस है। भदभदे के ये हाल हैं मियां के बोट कलब पे एक बालटी पानी तालाब में डाल दो तो उधर गेट खुल जाएं। सुबा दुपेर शाम और रात के टेम पानी ऐसा गिर रिया हेगा जैसे किसी डॉक्टर ने चार टाइम गिरने की हिदायत दे दी हो।
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