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जया किशोरी की कहानी: 8 साल पहले की मासूमियत से लेकर सुजानगढ़ की बेटी बनने तक..

December 24, 2025

नई दिल्ली । जया किशोरी कथावाचक (Jaya Kishori storyteller)और मोटिवेशनल (motivational) स्पीकर हैं और अक्सर वह पॉडकास्ट और इंटरव्यूज शोज(Interviews shows) में जाती रहती हैं जिनके वीडियोज सोशल मीडिया(social mediavideos) पर काफी देखे जाते हैं. सोशल मीडिया पर भी उनकी अच्छी खासी फैन-फॉलोइंग है और यूथ भी उन्हें सुनना काफी पसंद करता है. बताया जाता है कि जया किशोरी ने सार्वजनिक भजन  (public performances) और कीर्तन 7 साल की उम्र से शुरू कर दिए थे लेकिन पूर्ण कथा वाचन लगभग 13-15 साल की उम्र में आरंभ किया था.

कथा की शुरूआत कैसे हुई?
जया किशोरी ने इसका जवाब देते हुए कहा था, ‘भजन मैं जब 7 साल की थी तब से गाती हूं, पर कथा पांच साल पहले ही शुरू की है. स्वामी जी राम सुखदास जी महाराज की कथा मैंने कसेट में सुनी थी तो मेरे दादा जी पापा सब सुनते थे. सुनकर बहुत रोते थे. एक बार मैंने भी उनसे अचानक से कहा कि आप क्या सुनते हैं, मुझे भी सुनाइए. फिर जब मैंने कथा सुनी, मुझे बहुत अच्छी लगी. तब मैंने कहा की मुझे भी एक कथा करनी है.’

‘फिर धीरे-धीरे उसकी तैयारी की गई और उस कथा को मारवाड़ी में लाया गया क्योंकि अपनी भाषा मारवाड़ी है इसलिए हमने उस कथा को मारवाड़ी भाषा में ही किया जिससे अपनी भाषा का प्रचार प्रसार हो जो छोटे बच्चे हैं, वो सीखें. फिर 5 साल पहले मैंने कथा करनी शुरू की और आज में नानी बाई का मयरा और श्रीमद भागवत कथा करती हूं.’
जया से जब उनसे उनकी पढ़ाई और कथा का समय कैसे मैनेज होता है, इस बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, ‘मैं अभी बी कॉम फर्स्ट ईयर की स्टूडेंट हूं और पढ़ाई बहुत जरूरी है. देखिए भगवान जो शिक्षा दे रहे हैं या मैं कहूं ये जो कथा है वो तो सबसे बड़ी शिक्षा है. इससे बड़ी शिक्षा कुछ हो ही नहीं सकती पर साथ ही साथ जो हमारे स्कूल की शिक्षा हो या कॉलेज की, वो भी बहुत जरूरी है.’

‘आज के ज़माने में तो मैं लोगों से भी यही कहती हूं कि पढ़ाई को ना छोड़ें. आज के माने वो बहुत अधिक रूरी है. बच्चे आजकल क्या नहीं करते हैं. पढ़ाई करते हैं और साथ ही साथ कुछ ना कुछ खेल वगैरह खेलते हैं. मैं पढ़ाई करती हूं और कथा करती हूं.’

 


प्रसव पूर्व बेटियों को कोख में मारने पर क्या कहा था?

जया ने उस समय इंटरव्यू में कहा था, ‘ये अशिक्षा के कारण भी हो रहा है और हम ये सोचने लग जाते हैं कि शादी कैसे करेंगे, कितना दहेज देना होगा या आगे जाके क्या होगा. तो वो मैं सबसे यही कहूंगी, दुनिया हमारे आपकी सोच से नहीं चल रही, भगवान की सोच से चल रही है. उन्होंने अगर आपको बेटी दी है तो सोच समझ के दी है और एक बेटी अपना भाग्य साथ लेकर आती है तो आपको चिंता करने की कोई रूरत नहीं है कि उसकी शादी कहां होगी, कैसे होगी, क्या लगेगा. वो कब हो जाता है हमें पता भी नहीं चलता. वो अपना भाग्य साथ लेकर आती है. आप बस उसे स्नेह दें. प्यार दें. आशीर्वाद दें. शिक्षा प्रदान करे, फिर देखिए जो बेटे नहीं कर सकते वो बेटियां करके दिखाएगीं.’

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