
नई दिल्ली। भारतीय सिंधु सभा युथ विंग (Bharatiya Sindhu Sabha Youth Wing) और सिंधी साहित्य अकादमी (Sindhi Sahitya Academy) द्वारा “द जर्नी ऑफ सिंधी” नामक एक अतिभव्य कार्यक्रम का आयोजन ९ अगस्त, रक्षाबंधन की शाम (शनिवार) को सरदार पटेल भवन, शाहीबाग, कर्णावती (अहमदाबाद) में किया गया। इस अद्भुत कार्यक्रम में सिंध के गौरवशाली इतिहास पर प्रकाश डाला गया।
“सिंधी जो पहले भी अखण्ड भारत के निवासी थे, आज भी भारत के निवासी हैं।” सिंध, जो अखण्ड भारत का अभिन्न अंग था, १४ अगस्त १९४७ को भारत की आज़ादी के समय सिंधियों को अपनी मातृभूमि छोड़नी पड़ी। उन्हें अपनी ज़मीन, जायदाद, गहने और सर्वस्व त्यागकर भारत आना पड़ा।
इस विभाजन में पंजाब को आधा पंजाब और बंगाल को आधा बंगाल मिला, किंतु सिंधियों को अपनी मातृभूमि का कोई भाग नहीं मिला। इन्हीं सिंधियों ने देश के विभिन्न कोनों में पनाह ली और स्थानीय समुदायों के साथ एकरूप होकर व्यापार एवं जीवन आरंभ किया। आज सिंधी समुदाय ने प्रत्येक क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त की है:
युवा नेतृत्व का ऐतिहासिक उद्बोधन
राष्ट्रीय युथ विंग अध्यक्ष श्री निखिल मेठीया ने अपने प्रेरक संबोधन में युवा शक्ति को समर्पित “4E मिशन” की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए घोषणा की: “संघर्षों के साए में इतिहास हमारा पलता है जिस ओर जवानी चलती है उस ओर ज़माना चलता है!”
कार्यक्रम के अन्य प्रमुख आयाम: इस कार्यक्रम के माध्यम से जीवन में माता-पिता के मूल्य को ऑडियो-विजुअल प्रस्तुति के ज़रिए अभिव्यक्त किया गया। पारिवारिक संस्कारों एवं सिंधी भाषा के महत्व को प्रभावी ढंग से दर्शाया गया। युवा पीढ़ी ने अपने पूर्वजों के विस्थापन के दर्द को जानकर सहमति और भावुकता व्यक्त की तथा सिंध की मातृभूमि की यादों को ताज़ा किया।
अन्य वक्ताओं के योगदान:
आज भी सिंधी चेटीचंड (ईष्टदेव झूलेलाल जयंती), थदरी, सातम-आठम जैसे त्योहारों को धूमधाम से मनाते हैं और अपनी सिंधी भाषा एवं संस्कृति को सजोए रखते हैं। गुजरात में पहली बार ऐसा ओडियो विजुअल माध्यम से सिंध का इतिहास बताया गया, राखी का त्योहार होने के बावजूद १००० लोगों ने इस विभाजन की वेदना को महसूस किया।
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