
नई दिल्ली । संसद के आगामी मॉनसून सत्र (monsoon session)के दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट(Allahabad High Court) के जज जस्टिस यशवंत वर्मा(Judge Justice Yashwant Verma) के खिलाफ लगे आरोपों की जांच के लिए संबंधित सदन (लोकसभा या राज्यसभा) के पीठासीन अधिकारी द्वारा एक और जांच समिति का गठन किया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक इस समिति को अपनी रिपोर्ट जमा करने के लिए तीन महीने से भी कम समय दिया जाएगा, ताकि जस्टिस वर्मा के खिलाफ कार्रवाई में और देरी न हो सके। जस्टिस वर्मा अपने आवास से कथित तौर पर नोटों के ढेर बरामद होने के मामले में आरोपी हैं।
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि न्यायपालिका से जुड़े मामले राजनीति से परे होने चाहिए, इसलिए सरकार ने सभी प्रमुख दलों से संपर्क किया है। उन्होंने कहा कि जस्टिस वर्मा को हटाने की प्रक्रिया पर सभी दलों का एकीकृत रुख होगा। रिजिजू ने बताया कि सरकार अगले सप्ताह सांसदों के हस्ताक्षर एकत्र करना शुरू करेगी लेकिन उससे पहले यह तय करेगी कि किस सदन को महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए।
लोकसभा में चाहिए 100 सांसदों के दस्तखत
रिजिजू ने कहा कि प्रमुख विपक्षी दलों ने जस्टिस वर्मा को हटाने के प्रस्ताव का समर्थन करने के लिए अपनी सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है और इस संबंध में सांसदों के हस्ताक्षर कराने की प्रक्रिया जल्द ही शुरू हो सकती है। उन्होंने कहा कि सरकार ने अभी तक यह तय नहीं किया है कि महाभियोग प्रस्ताव लोकसभा में लाया जाएगा या राज्यसभा में। लोकसभा के लिए कम से कम 100 सांसदों के हस्ताक्षर की आवश्यकता होती है। राज्यसभा के लिए कम से कम 50 सांसदों के समर्थन की आवश्यकता होती है।
संसद का मॉनसून सत्र 21 जुलाई से 21 अगस्त तक
उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा यह निर्णय लेने के बाद कि प्रस्ताव किस सदन में लाया जायेगा, हस्ताक्षर कराये जायेंगे। संसद का मॉनसून सत्र 21 जुलाई से शुरू होकर 21 अगस्त तक चलेगा। उन्होंने कहा कि न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 के अनुसार, जब किसी न्यायाधीश को हटाने का प्रस्ताव किसी भी सदन में स्वीकार कर लिया जाता है, तो अध्यक्ष या सभापति, जैसा भी मामला हो, तीन-सदस्यीय एक समिति का गठन करेंगे जो उन आधारों की जांच करेगी जिनके आधार पर न्यायाधीश को हटाने (महाभियोग) की मांग की गई है।
समिति में कौन-कौन?
इस समिति में भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) या उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, 25 उच्च न्यायालयों में से किसी एक के मुख्य न्यायाधीश और एक ‘‘प्रतिष्ठित न्यायविद’’ शामिल होते हैं। रिजिजू ने कहा कि चूंकि यह मामला न्यायपालिका में भ्रष्टाचार से जुड़ा है, इसलिए सरकार सभी राजनीतिक दलों को साथ लेना चाहती है। न्यायमूर्ति वर्मा के सरकारी आवास पर नकदी मिलने की घटना के बाद गठित जांच समिति की रिपोर्ट के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि तीन न्यायाधीशों की समिति की रिपोर्ट का उद्देश्य भविष्य की कार्रवाई की सिफारिश करना था क्योंकि केवल संसद ही एक न्यायाधीश को हटा सकती है।
मार्च में जस्टिस वर्मा के घर पर मिली थी नकदी
मार्च में राष्ट्रीय राजधानी में न्यायमूर्ति वर्मा के आवास पर आग लगने की घटना हुई थी और जले हुए बोरों में नोट पाए गए थे। न्यायमूर्ति वर्मा उस समय दिल्ली उच्च न्यायालय में न्यायाधीश थे। न्यायाधीश ने हालांकि नकदी के बारे में अनभिज्ञता का दावा किया था, लेकिन उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति ने कई गवाहों से बात करने और उनके बयान दर्ज करने के बाद उन्हें दोषी ठहराया।
समझा जाता है कि तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने उन्हें इस्तीफा देने के लिए कहा था लेकिन न्यायमूर्ति वर्मा ने इंकार कर दिया। उच्चतम न्यायालय ने न्यायमूर्ति वर्मा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय स्थानांतरित कर दिया था, जहां उन्हें कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया है। न्यायमूर्ति खन्ना ने तब न्यायमूर्ति वर्मा को पद से हटाने की सिफारिश करते हुए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था।
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