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जस्टिस चंद्रचूड बोले- हम नहीं चाहते कि सुप्रीम कोर्ट बने “तारीख पे तारीख..”

September 10, 2022

नई दिल्ली। देश में जैसे ही कोर्ट-कचहरी (court office) का नाम लिया जाता है तो लोगों के दिमाग में यही ख्याल आता है कि बहुत समय लगने वाला है। पता नहीं कितनी तारीखें पड़ेंगी जिस पर उपस्थित होना पड़ेगा। कोर्ट के लिए तारीख पे तारीख (date on date) वाला डायलॉग भी याद ही होगा। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की ओर से भी इसी तरह के शब्द इस्तेमाल किए गए। एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud) ने कहा कि हम नहीं चाहते कि सुप्रीम कोर्ट तारीख पे तारीख अदालत बने।

दरअसल, जस्टिस चंद्रचूड़ ने ‘दामिनी’ फिल्म के एक चर्चित डायलॉग को दोहराते हुए दीवानी अपील में एक हिंदू पुजारी की ओर से पेश वकील से कहा, ‘यह शीर्ष अदालत है और हम चाहते हैं कि इस अदालत की प्रतिष्ठा बनी रहे।’ ‘दामिनी’ फिल्म में अभिनेता सनी देओल ने मामले में लगातार स्थगन और नयी तारीख दिए जाने पर आक्रोश प्रकट करते हुए ‘तारीख पे तारीख’ वाली बात कही थी।


जज आधी रात को तैयारी करते हैं…
पीठ ने कहा कि जहां न्यायाधीश मामले की फाइल को ध्यान से पढ़कर अगले दिन की सुनवाई की तैयारी करते हुए आधी रात तक तैयारी करते रहते हैं, वहीं वकील आते हैं और स्थगन की मांग करते हैं। पीठ ने सुनवाई रोक दी और बाद में, जब बहस करने वाले वकील मामले में पेश हुए, तो पीठ ने अपील में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और पुजारी को हाई कोर्ट का रुख करने के लिए कहा।

हाई कोर्ट की टिप्पणी को हटाने से किया इनकार
एक अन्य मामले में, जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक वकील के खिलाफ एक हाई कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी को यह कहते हुए हटाने से इनकार कर दिया कि हाई कोर्ट को अदालत कक्ष में अनुशासन बनाए रखना होता है और शीर्ष अदालत के लिए उनके गैर पेशेवर आचरण पर उन टिप्पणियों को हटाना उचित नहीं होगा। संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर करने पर पीठ नाराज हो गई और कहा कि इस याचिका में मांगी गई राहत नहीं दी जा सकती। अनुच्छेद 32 मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिए शीर्ष अदालत जाने के अधिकार से संबंधित है।

जज कड़ी मेहनत कर रहे वकील बहस को तैयार नहीं
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘इस तरह के तुच्छ मुकदमों के कारण सुप्रीम कोर्ट निष्प्रभावी होता जा रहा है। अब समय आ गया है कि हम एक कड़ा संदेश दें अन्यथा चीजें मुश्किल हो जाएंगी। इस तरह की याचिकाओं पर खर्च किए गए हर 5 से 10 मिनट एक वास्तविक वादी का समय ले लेता है, जो वर्षों से न्याय का इंतजार कर रहा होता है।’ उन्होंने कहा कि आजकल लगभग 60 मामलों को विविध दिनों में सूचीबद्ध किया जाता है, जिनमें से कुछ को देर रात सूचीबद्ध किया जाता है। उन्होंने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा, ‘मुझे मामलों की फाइल पढ़ने के लिए सुबह साढ़े तीन बजे उठना पड़ता है। न्यायाधीश कड़ी मेहनत कर रहे हैं, लेकिन वकील अपने मामले में बहस करने को तैयार नहीं हैं। यह ठीक नहीं है।’

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