
नैनीताल । न्यायमूर्ति रवीन्द्र मैथानी ने भी (Justice Ravindra Maithani also) संजीव चतुर्वेदी द्वारा दायर याचिका की सुनवाई से (From hearing the petition filed by Sanjiv Chaturvedi) खुद को अलग कर लिया (Recused Himself) ।
नैनीताल उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति रवीन्द्र मैथानी ने आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी द्वारा दायर अवमानना याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया । यह याचिका केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के सदस्यों और रजिस्ट्री पर स्थगन आदेश की जानबूझकर अवहेलना का आरोप लगाती है। देश के न्यायिक इतिहास में एक बेहद असामान्य और रिकॉर्ड-ब्रेकिंग घटनाक्रम सामने आया है, जहाँ उत्तराखंड कैडर के आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी से जुड़े एक मामले की सुनवाई से पन्द्रहवें न्यायाधीश ने स्वयं को अलग कर लिया है। यह एक नया रिकॉर्ड है, क्योंकि अब तक किसी एक व्यक्ति से संबंधित मामलों की सुनवाई से इतने अधिक न्यायाधीशों ने किनारा नहीं किया है।
न्यायमूर्ति मैथानी द्वारा 26 सितंबर को पारित आदेश में लिखा गया है कि मामले को ऐसे अन्य पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए, जिसका वह सदस्य नहीं हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस आदेश में अलग होने का कोई कारण दर्ज नहीं किया गया। यह घटनाक्रम न्यायिक गलियारों में गहरा सन्नाटा छोड़ गया है और न्याय में बाधा की ओर स्पष्ट इशारा कर रहा है। न्यायमूर्ति मैथानी उत्तराखंड उच्च न्यायालय के तीसरे न्यायाधीश हैं जिन्होंने चतुर्वेदी के मामलों से स्वयं को अलग किया है। उनसे पहले मई 2023 में न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल और फरवरी 2024 में न्यायमूर्ति मनोज तिवारी भी बिना कोई कारण बताए सुनवाई से हट चुके हैं। यह इस वर्ष संजीव चतुर्वेदी के मामले में चौथा न्यायिक रिक्यूजल है।
यह सिलसिला केवल उच्च न्यायालय तक सीमित नहीं है। अब तक दो सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश (न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और यू.यू. ललित), तीन उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, दो निचली अदालतों के न्यायाधीश, तथा केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के आठ न्यायाधीश (जिनमें एक अध्यक्ष भी शामिल हैं) चतुर्वेदी के मामले की सुनवाई से स्वयं को अलग कर चुके हैं।
इन मामलों में हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्डा और संजीव चतुर्वेदी को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर भेजने से रोकने में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली नियुक्ति संबंधी मामलों की कैबिनेट समिति (एसीसी) से जुड़े विवादास्पद और भ्रष्टाचार संबंधी मामले रहे हैं। बिना कारण बताए न्यायाधीशों का सुनवाई से हट जाना, एक ईमानदार आईएफएस अधिकारी को न्याय मिलने की राह में अदृश्य दबाव और असामान्य बाधाओं की ओर स्पष्ट संकेत करता है।
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