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सत्ता में आते ही सक्रिय हुए कैलाश विजयवर्गीय…

December 21, 2023

बीआरटीएस पर एलिवेटेड ब्रिज का मामला सुलझने के आसार

इंदौर। शहर के बीआरटीएस कॉरिडोर पर प्रस्तावित एलिवेटेड ब्रिज बनाने का मामला जल्द सुलझने की उम्मीद है। शहर के जनप्रतिनिधियों ने विधायक और भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय से इस ब्रिज के निर्माण में आ रही चुनौतियों पर बात की है। उम्मीद जताई जा रही है कि अब विजयवर्गीय इस मामले का निराकरण जल्द ही सरकार के स्तर पर करवाएंगे। यह ब्रिज एमआर-9 चौराहे से नौलखा के बीच बनाया जाना है।


बीच में शासन के आला अफसरों ने यह सुझाव भी दिया था कि यदि एलिवेटेड ब्रिज नहीं बन पा रहा है तो विकल्प के रूप में बीआरटीएस कॉरिडोर के चार-पांच चौराहों पर फ्लायओवर बना दिए जाएं। सूत्रों ने बताया कि शहर के जनप्रतिनिधि इस सुझाव पर सहमत नहीं हैं और वे चाहते हैं कि बीआरटीएस कॉरिडोर पर होने वाले ट्रैफिक जाम से जनता को निजात दिलाने के लिए एलिवेटेड ब्रिज ही बनवाया जाए। बीते शनिवार को आईडीए में हुई बैठक में विजयवर्गीय की मौजूदगी में इस विषय में विस्तार से बात हुई है। माना जा रहा है कि विजयवर्गीय इस संबंध में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से चर्चा करेंगे।

अब दो बातों पर होना है फैसला
यदि एलिवेटेड ब्रिज बनता है तो बीआरटीएस कॉरिडोर को ब्रिज पर शिफ्ट किया जाएगा या उसे सड़क की तरह ही रखा जाए। यदि कॉरिडोर वर्तमान की तरह नीचे रहता है तो बीच में ब्रिज के पिलर बनने के कारण कॉरिडोर की चौड़ाई बढ़ाना पड़ेगी।

शहर के कर्ताधर्ताओं को यह फैसला लेना है कि बीआरटीएस कॉरिडोर को ब्रिज की दो लेन (आने-जाने के लिए अलग-अलग लेन) पर शिफ्ट किया जाता है, नए स्टेशन बनाने, वहां तक लोगों की पहुंच बनाने के लिए सीढ़ियां-एस्केलेटर बनाने में करीब 116 करोड़ रुपए खर्च होंगे। यह राशि कौन भुगतेगा।

इसलिए अब तक नहीं बन पाया एलिवेटेड ब्रिज
इंदौर के एलिवेटेड ब्रिज के लिए केंद्र सरकार ने 350 करोड़ रुपए की राशि मंजूर की है। इसके निर्माण की लागत 306 करोड़ रुपए है, जिसका टेंडर 2021 में दिया जा चुका है। जब जनप्रतिनिधियों को इसकी जानकारी मिली, तो उन्होंने प्रोजेक्ट रुकवा दिया, लेकिन वे अब तक यह फैसला नहीं ले पाए कि करना क्या है। इधर, पीडब्ल्यूडी और ठेकेदार कंपनी के बीच हुए अनुबंध में यह प्रावधान है कि यदि दो साल में विभाग ठेकेदार को साइट उपलब्ध नहीं करवा पाया तो उसे कंपनी को हर्जाने के रूप में ठेके की 10 प्रतिशत राशि (करीब 33 करोड़ रुपए) देना होंगे। अब तक न तो टेंडर निरस्त हुआ है, न यह फैसला हुआ है कि ब्रिज का स्वरूप कैसा हो।

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