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खेलो इंडिया : परंपरा को मिला पुनर्जीवन

– प्रो. संजय द्विवेदी

विराट भारतीय संस्कृति और परंपराओं में बचपन से ही पढ़ाई के साथ-साथ खेलों का भी एक विशेष महत्व रहा है। हमारा यह विश्वास रहा है कि जिस प्रकार अध्ययन मानसिक विकास में आवश्यक है, उसी तरह खेल शारीरिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमारे जीवन में खेल और स्वास्थ्य का बहुत बड़ा योगदान है। खेल हमारे भीतर टीम भावना पैदा करते हैं। साथ ही इनसे हमारे अंदर, सही समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता, नेतृत्व कौशल, लक्ष्य निर्धारण और जोखिम लेने का आत्मविश्वास भी उत्पन्न होता है। शताब्दियों तक भारतीय ज्ञान, अध्ययन और अध्यापन परंपरा में खेलों को समान महत्व दिया गया, क्योंकि एक सुदृढ़ व्यक्तित्व का निर्माण तभी संभव है, जब उसमें एक ‘विचारशील मन’ और एक ‘सुगठित तन’, दोनों शामिल हों। हमारे प्राचीन गुरुकुलों में दी जाने वाली शिक्षा इसका प्रमाण है, जिसमें शास्त्रों-वेदों के अलावा विभिन्न प्रकार के खेल कौशलों की भी विधिवत शिक्षा दी जाती थी।

वर्ष 2014 में जब केंद्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार सत्ता में आई, तो सरकार ने इस पर फिर से विचार करना शुरू किया। भारत जैसे देश में जहां अभी तक क्रिकेट जैसे औपनिवेशिक और एलीट खेल का दबदबा था, दूसरे खेलों को प्रोत्साहन दिया जाना शुरू हुआ। फिर देखते ही देखते, एथलेटिक्स, कबड्डी, आर्चरी, शूटिंग, रेसलिंग, जैवलिन थ्रो, वेटलिफ्टिंग जैसे अनेक खेलों में, जो अभी तक उपेक्षा झेल रहे थे, भारतीय खिलाड़ियों ने एक के बाद एक उपलब्धियां हासिल करनी शुरू कीं। भारत देखते ही देखते, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्पोर्ट्स सुपर पॉवर के रूप में उभरने लगा। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश में एक ऐसी खेल संस्कृति का उदय हुआ, जो अभूतपूर्व थी।


इसी संस्कृति को विराटता और व्यापकता देने के लिए सरकार ने 2018 में एक अभिनव अभियान का आरंभ किया, यह था ‘खेलो इंडिया गेम्स’। ‘खेलो इंडिया स्कूल गेम्स’ के नाम से शुरू की गई इस पहल की शानदार सफलता को देखते हुए इसे और विस्तार दिया गया। इसी साल भारतीय ओलंपिक संघ के इस पहल से जुड़ते ही इसे और मजबूती व लोकप्रियता मिली।

खेलो इंडिया का बढ़ता दायराः खेलों का सिलसिला बचपन तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि इसे आगे बढ़ाकर युवाओं को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए। इस विचार से अगले ही साल, यानी 2019 से इसका नाम बदलकर ‘खेलो इंडिया यूथ गेम्स’ कर दिया गया। और इसमें भारतीय युवाओं की विशाल आबादी को भी शामिल कर लिया गया। बचपन के उत्साह और युवा शक्ति और सामर्थ्य ने मिलकर खेलो इंडिया को इतना व्यापक स्वरूप प्रदान कर दिया है कि यह देश के सर्वाधिक सफल अभियानों में गिना जाने लगा है। यह उपलब्धि हमें कोई अनायास ही हासिल नहीं हुई है, बल्कि इसके पीछे हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की सृजनात्मक, कल्पनाशील व दूरदर्शितापूर्ण सोच व कड़ी मेहनत का बहुत बड़ा योगदान है। इसी सोच का परिणाम था कि प्रधानमंत्री ने अपने दूसरे कार्यकाल में खेल एवं युवा मंत्रालय की कमान अनुराग ठाकुर को सौपीं। ठाकुर का नाम इसलिए महत्वपूर्ण था, क्योंकि खेलों के प्रति उनके विजन की तारीफ पूरा देश करता आया है।

खिलाड़ियों को मिली पहचानः ‘खेलो इंडिया यूथ गेम्स’, जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में है, एक ऐसी अभूतपूर्व योजना है जिसे भारतीय खिलाडि़यों के दीर्घकालीन विकास का मार्ग प्रशस्त करने के लिए लागू किया गया है। खेलो इंडिया एथलीटों का चयन, खेलो इंडिया गेम्स, नेशनल चैंपियनशिप/ओपन सेलेक्शन ट्रायल्स में उनके प्रदर्शन के आधार पर किया जाता है। केंद्रीय खेल व युवा मामलों के मंत्री अनुराग ठाकुर ने पिछले साल लोकसभा में बताया था कि देश भर से 21 खेल विधाओं में 2,841 एथलीटों को ‘खेलो इंडिया एथलीट’ के रूप में चुना गया था। इन चुने हुए एथलीटों को खेलो इंडिया स्कॉलरशिप के लिए प्रतिस्पर्धा करने और अत्याधुनिक खेलो इंडिया अकादमियों में देश के सर्वश्रेष्ठ कोचों से प्रशिक्षण प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया जाता है। साथ ही उन्हें दस हजार रुपये प्रतिमाह का जेब खर्च भी मिलता है।

अभी तक इस क्रम में 2017 और 2021 के बीच तीन ‘खेलो इंडिया स्कूल और यूथ गेम्स’, एक ‘खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स’ और दो ‘खेलो इंडिया विंटर गेम्स आयोजित’ किए जा चुके हैं, जिनमें लगभग बीस हजार एथलीटों ने हिस्सा लिया था। खेलो इंडिया कार्यक्रम में अभी तक जिन खेलों का समावेश किया गया है, उनमें एथलेटिक्स, कबड्डी, कुश्ती, खो-खो, जूडो, जिम्नास्टिक, तीरंदाजी, टेबल टेनिस, तैराकी, निशानेबाजी, फुटबॉल, बास्केटबॉल, बैडमिंटन, बॉक्सिंग, लॉन टेनिस, वालीबॉल, वेटलिफ्टिंग, हॉकी जैसे खेल शामिल हैं।

स्पोर्ट्स फॉर ऑल, स्पोर्ट्स फॉर एक्सीलेंसः खेलो इंडिया कार्यक्रम के प्रमुख निहित उद्देश्यों में ‘उत्कृष्टता के लिए खेल’ के साथ-साथ ‘सभी के लिए खेल’ को बढ़ावा देना, वार्षिक खेल प्रतियोगिताओं में बड़े पैमाने पर युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना, केंद्र सरकार, राज्य सरकार या सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) पद्धति में खेल अकादमियों के माध्यम से खेल प्रतिभाओं की पहचान और पोषण व मार्गदर्शन तथा तहसील, जिला, व राज्य स्तर आदि पर खेल के बुनियादी ढांचे का निर्माण आदि शामिल हैं।

संक्षेप में कहें तो ‘खेलो इंडिया योजना’ एक ऐसा कार्यक्रम है, जो जमीनी स्तर पर भारत की खेल संस्कृति को मजबूत और पुनर्जीवित करता है और खेल प्रतिभाओं की पहचान, विकास और पोषण- प्रोत्साहन से खेल संस्कृति को विकसित करता है। यह कार्यक्रम वंचित और गरीब युवाओं को अनुत्पादक कार्यों के बजाय खेलों से जुड़कर विकास करने की सुविधा प्रदान करता है। यह योजना कितनी व्यापक है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह राष्ट्रीय शारीरिक स्वास्थ्य अभियान के तहत 10 से 18 वर्ष के बीच के लगभग बीस करोड़ बच्चों को कवर करती है। इस योजना के आकार और उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार लगातार इसके लिए आवंटित राशि की मात्रा बढ़ा रही है। वर्ष 2021-22 में इसके लिए 657.71 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, जिन्हें वर्ष 2022-23 में बढ़ाकर 974 करोड़ रुपये कर दिया गया और चालू वित्त वर्ष (2023-24) में इसे 1045 करोड़ रुपये किया गया है।

(लेखक, भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली में महानिदेशक हैं।)

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