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कुणाल खेमू का डर के साए में बीता बचपन, यादें की शेयर, बोले- श्रीनगर में बम फटा या सिलेंडर पता ही नहीं चलता था

February 24, 2025

नई दिल्‍ली । बॉलीवुड एक्टर कुणाल खेमू (Bollywood Actor Kunal Khemu) बचपन (Childhood) में मुंबई शिफ्ट होने से पहले श्रीनगर (Srinagar) में अपने परिवार के साथ रहे हैं. वो तब 6 साल के थे. कुणाल ने बताया कि वो दौर बहुत टेंशन में बीता करता था. कभी भी बम का फटना, कभी भी पथराव होना, जैसे आपका हर पल सिर्फ इसी को समझने में बीतता हो कि अब क्या होने वाला है. कुणाल ने बताया कि वो डर के साए में जी रहे थे.

कुणाल ने अपने बचपन के एक इंसीडेंट को भी शेयर किया. वो बोले कि ये सब जैसे रोज की जिंदगी का हिस्सा था. समझ ही नहीं आता था कि सिलेंडर ब्लास्ट हुआ है या कोई बम फटा है.

बम फटने की आवाज से डर जाते थे कुणाल
एक इंटरव्यू में कुणाल बोले, ”ये 6 साल के बच्चे के नजरिए से है. और मैंने इसे इसी तरह देखा. मुझे याद है… मुझे श्रीनगर की अच्छी बातें याद हैं- मेरा स्कूल, परिवार के साथ डल झील जाना या पहलगाम जाना. और फिर मुझे याद है कि वे तनाव में थे. क्योंकि छह साल के बच्चे के रूप में, आप वास्तव में नहीं जानते कि क्या हो रहा है. और आपके माता-पिता और परिवार आपको जितना हो सके उतना बचाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन आप अभी भी चीजों के बारे में सुनते हैं, है ना?”

“मुझे याद है कि एक समय ऐसा होता था… कि अगर आप कोई तेज आवाज सुनते थे, तो हमेशा ये भ्रम होता था कि कहीं सिलेंडर फटा है या बम. तो मुझे याद है कि कभी-कभी ये बात बकबक के रूप में होती थी. मुझे याद है कि कई बार ऐसा होता था कि किसी कारण से आप रात में लाइट नहीं जलाते थे क्योंकि घर पर पत्थर मारे जाने का खतरा था. ये घोषित किया जाता था कि शाम को लाइट नहीं जलानी चाहिए.”


बचपन में फील किया टेंशन भरा माहौल
कुणाल आगे बोले,”मैं ये भी नहीं कह सकता कि लोगों के चेहरों पर डर था या नहीं, क्योंकि लोग इधर-उधर भाग रहे थे. और मुझे याद है कि किसी समय एक घर था, एक कमरा, जहां फर्श खुल गया था क्योंकि मुझे लगता है कि विस्फोट ठीक नीचे हुआ था. और फिर पूरी सड़क लोगों से भर गई. लेकिन अजीब बात ये है कि, ये सुनने में भले ही बेवकूफी भरा लगे, मुझे याद है कि शाम को, मैं केवल यही देख रहा था कि हमारा एरिया टेलीविजन पर कैसा दिख रहा था. लोग इसके बारे में बात कर रहे थे, और हर कोई घर पर फोन कर रहा था. तो मुझे लगा कि हमें अहम महसूस कराया जा रहा है. और इसलिए ऐसा है, इसलिए मैंने कहा कि ये सोचना छह साल के बच्चे का था.”

कुणाल ने बताया कि कैसे एक बच्चे के रूप में उन्हें ये समझने में संघर्ष करना पड़ा कि क्या हो रहा है? ”नवाकदल में भी कई बार ऐसा हुआ था, जब, आप जानते हैं, पत्थरबाजी शुरू हो जाती थी और फिर सेना आ जाती थी. और मुझे याद है कि मैं और मेरा दूसरा चचेरा भाई खिड़कियों से देखते थे और समझ नहीं पाते थे कि क्या हो रहा है. तो मेरे लिए, जब हम वहां से मुंबई आ गए, ये नहीं जानते हुए कि हम कभी वापस नहीं जाएंगे, हम अभी भी इसे समझने की कोशिश कर रहे थे. मुझे लगता है कि हमारे माता-पिता ने हमें इससे बचाने का एक बेहतरीन काम किया.”

जब श्रीनगर छोड़ मुंबई आए कुणाल
”लेकिन 6 और 7 साल की उम्र में, आपने हमेशा लोगों को इसके बारे में बात करते सुना. और आपने देखा कि लोग इसके बारे में बात करके भावुक हो रहे थे और इस बारे में तनाव में थे. और आपको पता था कि कुछ गड़बड़ है. मुझे लगता है कि कहीं न कहीं, एक बच्चे के रूप में, मैं इसे ब्लॉक करना चाहता था. और यही कारण है कि बड़े होने के दौरान भी, मैंने कभी भी ये जानने की कोशिश नहीं की कि क्या हो रहा था, क्या हुआ, या ऐसा क्यों हुआ? मुझे लगता है कि कहीं न कहीं, मैंने उन सवालों को न पूछने के लिए एक दीवार खड़ी कर दी थी.”

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