
इंदौर: अग्निबाण एक्सपोज (पार्ट-3)… योजना 171 में प्राधिकरण बोर्ड का बड़ा खेला, एक दर्जन गृह निर्माण संस्थाओं की 81 लाख स्क्वेयर फीट जमीनों पर भूखंड पीड़ितों से ज्यादा जमीनी जादूगरों और रसूखदारों ने कर रखा है कब्जा
जांच कमेटी को भी भूखंड पीड़ितों की ही शिकायतें ज्यादा मिली
११६ आपत्तियों का निराकरण प्रशासन की कमेटी ने किया
सहकारिता विभाग हमेशा से रहा भूमाफियाओं के कब्जे में
योजना में फंसी होने के कारण ही जमीनें अब तक रहीं सुरक्षित
१० योजनाओं को डीनोटिफाइड करने की नहीं दी अनुमति
योजना 171 में शामिल गृह निर्माण संस्थाओं की जमीनों को छोड़ने का जो खेला प्राधिकरण बोर्ड ने किया, उसके आंकड़े ही चौंकाने वाले हैं। जिन एक दर्जन संस्थाओं की लगभग 185 एकड़ जमीन छूटेगी उनका बाजार मूल्य वर्तमान में 10 हजार करोड़ रुपए से कम नहीं है। 81 लाख स्क्वेयर फीट यह जमीन चूंकि भूखंड़ों के रूप में संस्थाओं के पास रही है और 10 से 15 हजार रुपए स्क्वेयर फीट से कम का रेट महालक्ष्मी नगर के सामने मौजूद इन जमीनों की कॉलोनियों में नहीं है। प्राधिकरण ने मात्र 5 रुपए स्क्वेयर फीट के हिसाब से जमीन मालिकों से योजना पर खर्च की गई 5.84 करोड़ रुपए की राशि की वसूली की है। इसमें भूखंड पीड़ितों के पास तो कम जमीनें हैं, जबकि कई गुना अधिक जमीनों पर भूमाफियाओं ने कब्जा कर रखा है या उनकी बंदरबांट कर रखी है। यही कारण है कि योजना को लेकर जो जांच कमेटी गठित की गई उसमें भी अधिकांश आपत्तियां भूखंडों का कब्जा दिलवाने, रजिस्ट्री करवाने या भूखंड पीड़ितों से संबंधित रही हैं।
संस्थाओं की ये बेशकीमती जमीनें अगर वाकई छूट जाती है तो असली दीपावली तो भूमाफिया की ही इस बार मनेगी और भूखंड पीड़ित इस बार भी ठगी का शिकार बनेंगे , क्योंकि संस्थाओं पर काबिज भू माफिया के गुर्गे आसानी से जमीनें छोड़ेंगे नहीं और सहकारिता विभाग पर भी चूंकि इन्हीं का नियंत्रण रहा है, लिहाजा वहां से भी ज्यादा मदद पीड़ितों को नहीं मिल पाएगी. प्राधिकरण की योजनाओं से बाहर की अनेक संस्थाओं के ही पीड़ित आज तक अपने भूखंड हासिल नहीं कर पाए हैं और जनसुनवाई से लेकर सीएम हेल्पलाइन सहित उपभोक्ता फोरम तक शिकायतें करते हुए वर्षों से लड़ाई लड़ रहे है।
अभी 8 अगस्त को आयोजित प्राधिकरण की बोर्ड बैठक में योजना 171 के बारे में जो संकल्प 2027, 05 दिसंबर 2024 पारित किया गया था। उसके द्वारा गठित समिति की आपत्तियों का परीक्षण कर प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया। दरअसल, योजना 171 को व्यपगत करने के संबंध में शासन ने प्राधिकरण स्तर से ही अग्रिम कार्रवाई के आदेश दिए थे, जिसमें योजना को मुक्त किए जाने के एवज में उस पर व्यय की गई राशि 5.84 करोड़ की प्रतिपूर्ति भूस्वामियों से करने का निर्णय लिया गया और संबंधित संस्थाओं के साथ निजी जमीन मालिकों की सूची भी जारी की गई। इसके लिए प्रारुप 23 और सूची का प्रकाशन समाचार-पत्रों में करवाया गया। हालांकि निर्धारित अवधि में देय राशि की तुलना में 5 लाख रुपए अधिक यानी 8.89 करोड़ रुपए जमा भी हो गए। मगर उसके साथ 112 आपत्तियां भी मिली, जिसके चलते प्राधिकरण बोर्ड ने इन आपत्तियों के परीक्षण और निदान के लिए समिति का गठन भी किया। कलेक्टर के प्रतिनिधि के रूप में अपर कलेक्टर गौरव बैनल की अध्यक्षता में यह समिति बनी, जिसमें तत्कालीन उपायुक्त सहकारिता मदन गजभिये, प्राधिकरण की मुख्य नगर नियोजक रतना बोचरे, भू-अर्जन अधिकारी सुदीप मीणा और प्राधिकरण की ही तत्कालीन मुख्य लेखा अधिकारी प्रगति जैन शामिल की गईं। समिति ने अपना प्रतिवेदन कुछ समय पूर्व प्रस्तुत किया, जिसके आधार पर बोर्ड ने 12 गृह निर्माण संस्थाओं की जमीनों को योजना से मुक्त करने और शासन से मंजूरी हासिल कर नए सिरे से बची हुई निजी और सरकारी जमीनों पर मोडिफाइड योजना घोषित करने का निर्णय लिया। इनमें से अधिकांश आपत्तियां भूखंड पीड़ितों की ओर से ही दायर की गई, जिसमें कब्जा दिलवाने, रजिस्ट्री करवाने, मकान बनवाने सहित अन्य आवेदन किए गए।
मगर कमेटी ने भी इस पर यही टिप्पणी की कि सदस्यों की पात्रता का विवाद संस्था से है, जिसके लिए वह उचित फोरम पर जाने को स्वतंत्र है। यानी प्राधिकरण द्वारा योजना से संस्था की जमीनों को मुक्त किए जाने के बावजूद पीड़ितों को पुलिस, प्रशासन, सहकारिता से लेकर कोर्ट-कचहरी तक चप्पलें घीसना पड़ेगी, जिस तरह 100 से अधिक अन्य संस्थाओं के सदस्य सालों से चकरघिन्नी हो रहे हैं। होना तो यह था कि प्राधिकरण बोर्ड असल भूखंड पीड़ितों की वरीयता सूची प्रशासन और सहकारिता विभाग के माध्यम से तैयार करवाता और फिर उन पीड़ितों को भूखंड उपलब्ध करवाने के अलावा संस्थाओं की जो जमीनें भूमाफियाओं के चंगुल में हैं उस पर योजना घोषित करता या प्रशासन त्रिशला गृह निर्माण की तरह इन विवादित जमीनों को भी सरकारी घोषित करता, क्योंकि ये जमीनें भी सीलिंग की धारा 20 से छूट हासिल की सूची में शामिल है। बजाय इसके प्राधिकरण बोर्ड ने संस्थाओं की शत-प्रतिशत जमीनें छोडऩे का निर्णय ले लिया, जिसके चलते भूखंड पीड़ितों की बजाय भूमाफियाओं की चांदी हो गई और हजारों करोड़ की जमीनें छुड़वाकर असली दीपावली उनकी ही मन जाएगी।
संचालक नगर तथा ग्राम निवेश आज करेंगे प्राधिकरण योजनाओं का निरीक्षण
आज संचालक नगर तथा ग्राम निवेश श्रीकांत बनोठ इंदौर पहुंचे हैं और प्राधिकरण के कुछ प्रोजेक्टों के साथ टीपीएस योजनाओं का मौका-मुआयना करेंगे। प्राधिकरण सीईओ आरपी अहिरवार के मुताबिक संचालक सबसे पहले लवकुश चौराहा पर पहुंचेंगे, जहां निर्माणाधीन डबल डेकर ब्रिज का काम देखेंगे और उसके बाद एमआर-10 कुमेड़ी में जो प्राधिकरण ने 100 करोड़ रुपए से अधिक की राशि खर्च कर आईएसबीटी बनवाया है उसका भी अवलोकन संचालक द्वारा किया जाएगा।
तत्पश्चात तीन टीपीएस योजनाओं 4, 5 और 9 में चल रहे विकास कार्यों की जानकारी भी उन्हें दी जाएगी। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों अपर मुख्य सचिव के साथ प्राधिकरण दफ्तर में हुई बैठक में भी संचालक मौजूद थे और आज के दौरे के वक्त उनके द्वारा संभवत: योजना 171 को लेकर चल रहे बवाल पर भी पूछताछ की जाएगी।
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