
मुंबई। लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) इस समय बीमार हैं. मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पलात में आईसीयू वार्ड (ICU Ward) में हैं. डॉक्टर लगातार उनके स्वास्थ्य की निगरानी में लगे हुए हैं. भारत की स्वर कोकिला के जल्द स्वस्थ होने को लेकर देश भर में दुआएं की जा रही हैं. अपनी जादुई आवाज में करीब 30 हजार से अधिक गाना गाने वाली लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) आज भले ही उम्र और बीमारी की वजह से अस्पताल में भर्ती (Admit to Hospital) हैं, लेकिन इन्हें मारने की साजिश बरसों पहले रची गई थी. आईए बताते हैं भारत(India) की इस महान गायिका की जिंदगी का दर्दनाक किस्सा.
लता को स्लो प्वॉइजन दिया जा रहा था
लता जी को लगा कि आमतौर पर किसी वजह से उल्टी हो रही होगी. हर उल्टी में उन्हें हरे रंग की चीज नजर आई. हालत ये हो गई थी कि उनका चलना-फिरना दूभर हो गया. जब डॉक्टर ने चेकअप किया और नींद की इंजेक्शन दी, क्योंकि दर्द इतना अधिक था कि उन्हें नींद ही नहीं आ रही थी. करीब 3 दिन ऐसे ही हालत में रहीं, लगा कि उनका जिंदा रहना मुश्किल है. लेकिन 10 दिन तक उनका इलाज चला और वह ठीक हो गईं. डॉक्टर ने इसके पीछे जो वजह बताई उसने सबको सन्न कर दिया. डॉक्टर ने कहा कि लता जी को स्लो प्वॉइजन दिया जा रहा था.
रसोईया दे रहा था धीमा जहर!
इस घटना का खुलासा होते ही सबसे पहले लता मंगेशकर का रसोईया घर से भाग गया. अपना वेतन भी नहीं लिया. दरअसल, ये रसोईया ही लता के खाने में स्लो प्वॉइजन मिलाकर उन्हें खिलाता रहा. ये कुक पहले भी बॉलीवुड के कुछ लोगों के यहां काम कर चुका था. लता जी जान तो किसी तरह बच गई लेकिन लता जी की हालत ऐसी हो गई थी कि लगा कि फिर वो कभी गाना नहीं गा पाएंगी. कमजोरी इतनी हो गई थी तीन महीने कंप्लीट बेड रेस्ट पर रहीं और इस दौरान कोई गाना नहीं गा सकीं.
जाको राखे साइयां, मार सके ना कोय
लता की आंतों में दर्द रहता था, खाना-पीना भी मुश्किल था. गर्म सूप भी नहीं पी पाती थीं, उसे ठंडा करके किसी तरह ले पाती थीं. हालांकि लता ने अपने स्ट्रॉन्ग विल पॉवर की वजह से फिर से लौटीं और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को एक से बढ़कर एक गाने को अपनी आवाज देकर साजिश करने वाले के मुंह पर करारा तमाचा जड़ दिया. कहते हैं ना कि जाको राखे साइयां, मार सके ना कोय.
लता की जान कौन लेना चाहता था ?
लता मंगेशकर की हत्या की साजिश रचने की घटना का पता लगते ही उनके करीबी लोगों ने बेहद सावधानी बरती. कहते हैं कि मजरूह सुल्तानपुरी तो इतना ख्याल रखते थे कि लता जी को दिए जाने वाले खाने को पहले खुद चखते थे फिर लता को खाने के लिए दिया जाता था. हालांकि ये साफ नहीं हो पाया कि आखिर कौन था जो इस तरह से लता की जान लेना चाहता था. ये सवाल आज भी पहेली है कि आखिर कौन लता को जान से मारना चाहता था. इस पूरी घटना का जिक्र लता मंगेशकर ने अपनी करीबी मित्र रहीं लेखिका-कवियित्री पद्मा सचदेव से किया था, जिसे उन्होंने अपनी किताब ‘ऐसा कहां से लाऊं’ में लिखा है.
मजरूह सुल्तानपुरी ने दिया था साथ
लता मंगेशकर ने मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में बताया था कि उनकी रिकवरी में मजरुह सुल्तानपुरी का बड़ा योगदान था. मानसिक और शारीरिक रुप से टूट चुकीं लता को बड़ा सहारा दिया था. उन्होंने बताया था कि ‘मजरूह साहब अपनी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद हर शाम मेरे घर आते, मेरे पास बैठकर अपनी कविताएं सुनाते. भरसक कंपनी देने की कोशिश करते हुए मुझे दोबारा से उठने के लिए हौसला देते’.
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