
नेताओं का…नेताओं की नेतागीरी पर किया गया प्रहार… विरोधियों का संहार… 30 दिन जेल भिजवाओ और राजनीति तो राजनीति… ताकत, हिमाकत, हिम्मत सबको ठिकाने लगाओ… कुर्सी से उतारकर सडक़ पर लाओ… केजरीवाल को मिटाया है…अब ममता को मिटाओ… कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर लटकी कानून की तलवार थोड़ी नीचे लाओ और सूबे की सियासत को मिटाओ… भाजपा सरकार के चुटिल चालाक रणनीतिकार ऐसा पैंतरा लाए हैं कि सारे विरोधी सहमे और स्तब्ध हैं… माथे की शिकन, चेहरे का डर और दिल की धडक़नें बता रही हैं कि उनका राजनीतिक भविष्य एक विधेयक की दूरी पर नजर आ रहा है…वर्षों की राजनीति पर ग्रहण लगता नजर आ रहा है…अभी तक इस देश के लोगों ने सत्ता का जनता पर लगाया गया आपातकाल देखा है, लेकिन यह सत्ता का नेताओं पर, बल्कि विरोधियों पर लगाया गया ऐसा आपातकाल है, जिसमें बोलेंगे तो मरेंगे, चुप रहेंगे तो गड़ेगे… चीखेंगे तो भी कोई आवाज नहीं सुनेगा और रोएंगे तो कोई आंसू नहीं पोंछेगा… यदि यह विधेयक पारित हो जाएगा तो अपराध साबित हुए बिना ही जनता का चुना गया नेता खुद को निर्दोष साबित करने तक सडक़ पर खड़ा नजर आएगा…इस देश के संविधान के मूलभूत सिद्धांत सौ गुनहगार छूट जाए, मगर एक बेगुनाह सजा न पाए का बेड़ा गर्क हो जाएगा… हालांकि नेताओं की इस जंग का जनता पर कोई असर नहीं पड़ेगा, मगर देश का लोकतंत्र शंकाओं में घिर जाएगा… कोई सभ्य व्यक्ति राजनीति में आने से घबराएगा…तुष्टि और संतुष्टि का ऐसा दौर नजर आएगा कि वंदे भारत की जगह वंदे सत्ता का गुणगान किया जाएगा… इस चक्रव्यूह में तो कोई भी अभिमन्यु उसी तरह घिरा नजर आएगा, जिस तरह दिल्ली के मंत्री सत्येंद्र जैन को ढाई साल जेल में रखने के बाद बेगुनाह करार दिया जाता है…कोई सबूत नहीं कहकर प्रकरण बंद किया जाता है, लेकिन उस नेता के जेल में बीते दर्द के दिन, चीखती रातें, सहमी जिंदगी, तड़पती सांसों का कोई हिसाब नहीं किया जाता, जो उसने बेगुनाही में गुजारे… इसे राजनीतिक विरोध कहा जाए या प्रतिशोध कहा जाए… इसे लोकतंत्र पर अंकुश समझा जाए या राजनीति के अपराधीकरण पर बंदिश माना जाए… इसे सत्ता का सत्ता पर किया गया प्रहार समझा जाए या विरोधियों की हार माना जाए…कहने-सुनने और समझने के लिए यह विधेयक अच्छा है, लेकिन इसका दुरुपयोग नहीं किया जाएगा और इसका सदुपयोग सत्ता से अपराध पर नियंत्रण के लिए किया जाएगा, इसे लेकर पूरा देश जहां शंकित है, वहीं विरोधी चकित हैं… विधेयक तो जड़ को मिटाने के लिए लाना चाहए था…प्रकृति पर अंकुश लगाने के लिए लाना चाहिए था…अपराध की जड़ को मिटाना चाहिए था और संगीन अपराधों के अपराधी नेताओं के राजनीतिक रुतबे पर रोक लगाने के लिए उनके चुनाव लडऩे पर प्रतिबंध का विधेयक लाना चाहिए था…जब बिना सजा के 30 दिन की कैद में रहने वाले मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री हटाए जा सकते हैं तो हत्या, बलात्कार, अपहरण, लूट, डकैती जैसे जघन्य अपराधों के अपराधी चुनाव कैसे लड़ सकते हैं…आतंकवाद जैसे गुनाह में शामिल नेता जेल में रहकर चुनाव लडऩे की हिमाकत कैसे कर सकते हैं…रोक वहां पर लगाओ…जड़ के कीड़े मिटाओ, फिर पेड़ पर हरियाली की शर्त लगाओ…देश को सहमा हुआ विपक्ष नहीं चाहिए…सत्ता के सर पर लटकती तलवार नहीं चाहिए…जनता की आवाज गुंजाने वाला, सरकारों पर अंकुश लगाने वाला और सच को सच कहने वाला नेता नहीं बचेगा तो लोकतंत्र कैसे रहेगा…खामोश आवाजों की चीखें जेहन को ज्वालामुखी बनाती हैं और उसी ज्वालामुखी में इंदिराजी जैसी नेताओं की सत्ता झुलस जाती है और उसी लावे से जनता पार्टी और भाजपा जैसी सरकारें अस्तित्व में आती हैं…इसलिए आवाजों को गूंजने दो…जिन आवाजों में दम होगा वो वजूद पाएंगी और जो वजूद नहीं पाएंगी वो बेदम होकर दफन हो जाएंगी…
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