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इजरायल-हमास की जंग पर बात करने दिल्ली आ रहे नेता सऊदी अरब के नेता

November 22, 2023

नई दिल्ली (New Delhi)। इजरायल और हमास (Israel and Hamas) के बीच बीते डेढ़ महीने से जारी जंग में अब सऊदी अरब समेत कई अरब देश अब भारत की ओर देख रहे हैं। इन देशों को लगता है कि भारत अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके इजरायल को युद्ध विराम और किसी समझौते के लिए राजी कर सकता है। यही नहीं ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी (President Ibrahim Raisi) ने तो पीएम नरेंद्र मोदी से बातचीत में इसकी अपील भी की थी। अब इसी मसले पर बात करने के लिए सऊदी अरब, मिस्र, जॉर्डन और फिलिस्तीन के विदेश मंत्री इसी सप्ताह दिल्ली आ रहे हैं। हाल ही में ये नेता चीन गए थे और अब वहां से दिल्ली आने का प्लान है।

सऊदी विदेश मंत्री फैसल बिन फरहान अल सऊद के नेतृत्व में यह प्रतिनिधिमंडल भारत आ रहा है। इस दौरान सभी देश भारत से अपील कर सकते हैं कि वह इजरायल और फिलिस्तीन दोनों से ही अच्छे संबंध रखता है। ऐसे में उसे अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए युद्ध रुकवाने का प्रयास करना चाहिए। मिस्र और जॉर्डन तो ऐसे देश हैं, जिनके लिए यह जंग बड़े नुकसान की वजह बन सकती है। दोनों देश इजरायल से कूटनीतिक संबंध रखते हैं। इसके अलावा उनकी सीमा भी इजरायल से लगती है। इजरायल की सीमा से लगे लेबनान और सीरिया से तो यहूदी देश के रिश्ते खराब हैं, लेकिन मिस्र और जॉर्डन से थोड़ा तालमेल रहा है।



इन देशों के विदेश मंत्रियों की मीटिंग एस. जयशंकर से होगी। इससे पहले सोमवार को ये नेता चीन पहुंचे थे और एक स्वर में मांग की थी कि इजरायल और हमास के बीच सीजफायर हो जाना चाहिए। खबर है कि अरब और मुस्लिम देशों के नेता भारत के बाद रूस का भी दौरा कर सकते हैं। भारत लगातार यह मांग करता रहा है कि मानवाधिकारों का उल्लंघन न हो और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के दखल पर युद्ध को रोक दिया जाए। ऐसे में अरब देशों की मीटिंग में भी भारत अपने उसी रवैये को दोहरा सकता है।

अरब और मुस्लिम देशों ने जिस तरह भारत, रूस और चीन को साथ लेने की कोशिश की है, उससे अमेरिका एशियाई ताकतों में अलग पड़ता दिख रहा है। इजरायल और हमास की जंग के मसले पर चीन और रूस उसके खिलाफ ही रहे हैं। अब अरब देशों का भारत दौरा अमेरिका की चिंताएं बढ़ाने वाला है। गौरतलब है कि यूरोप के देश भी उतना मुखर नहीं हैं, जितना अमेरिका रहा है। यही नहीं हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आए एक प्रस्ताव के दौरान तो अमेरिका ने भी इजरायल के समर्थन में मतदान नहीं किया। वह वोटिंग से ही दूर चला गया।

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