
नई दिल्ली । लिंगायत समुदाय(Lingayat Community) की शीर्ष संस्था अखिल भारतीय वीरशैव-लिंगायत महासभा है। इसने कर्नाटक(Karnataka) में समुदाय(community) के लोगों से अपील की है कि वे सामाजिक-आर्थिक सर्वे में खुद को वीरशैव-लिंगायत के रूप में दर्ज कराएं। यह समुदाय हिंदुओं से अलग धर्म के रूप में मान्यता पाने की कोशिश कर रहा है। महासभा की यह अपील 22 सितंबर से शुरू होने वाले जाति गणना सर्वे से पहले आई है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की सरकार, कांग्रेस नेतृत्व और राहुल गांधी के निर्देश पर इस नए सर्वे को तीन महीने में पूरा करने की योजना है। अगर लिंगायत लोग महासभा की अपील पर अमल करते हैं तो हिंदुओं की संख्या कम दिख सकती है, जो बीजेपी का मुख्य वोट बैंक माने जाते हैं।
महासभा का कहना है कि पिछले सर्वे में लिंगायत को एक जाति के रूप में बांटा गया था। कर्नाटक में इनकी आबादी 11% दिखाई गई, जो अनुसूचित जातियों (18%) और मुस्लिमों (13%) से कम थी। समुदाय के नेता लंबे समय से दावा करते रहे हैं कि उनकी आबादी राज्य में लगभग 17% है। वन मंत्री और महासभा के उपाध्यक्ष ईश्वर खांडरे ने कहा, ‘यह फैसला हुआ कि समुदाय के लोग धर्म के कॉलम में वीरशैव-लिंगायत, जाति के कॉलम में लिंगायत या वीरशैव और तीसरे कॉलम में अपनी उपजाति दर्ज कराएंगे। इससे सर्वे में समुदाय की असल संख्या सही तरीके से सामने आ जाएगी।’
सर्वे में अलग से कोई कॉलम नहीं
सर्वे को लेकर धर्म के कॉलम में वीरशैव-लिंगायत का अलग से कोई विकल्प नहीं है, इसलिए महासभा ने लोगों से अन्य विकल्प में इसे लिखने को कहा है। महासभा के राज्य अध्यक्ष शंकर बिदरी ने वीरशैव-लिंगायत को अलग धर्म के रूप में मान्यता देने की मांग की है। कांग्रेस सरकार को यह नया सर्वे इसलिए करना पड़ रहा है क्योंकि AICC को कई शिकायतें मिली थीं कि पिछला डेटा गलत था। बताते हैं कि कांग्रेस आलाकमान के दबाव पर सिद्धारमैया सरकार तेलंगाना में किए गए सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा, रोजगार, राजनीतिक और जाति सर्वे की तर्ज पर यह गणना कर रही है।
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