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145 किलो के रजत रथ पर निकलेंगे भगवान वेंकटेश

June 27, 2025

  • आज शाम शहर के पश्चिम क्षेत्र में निकलेगी देश की तीसरी सबसे बड़ी रथयात्रा
  • कभी लकड़ी के रथ पर निकलते थे भगवान वेंकटेश, भक्तों ने बनवाया चांदी का रथ
  • रथयात्रा के लिए कुंभ कोणम से बनकर आई प्रभु वेंकटेश के परिवार की पोषाक

इन्दौर। पावन सिद्धधाम श्रीलक्ष्मी वेंकटेश देवस्थान छत्रीबाग से मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी पारंपरिक गौरवशाली रथयात्रा आज सायंकाल 4 बजे श्री नागोरिया पीठाधिपति स्वामी विष्णुप्रपन्नाचार्य के सानिध्य में निकलेगी। शहर के पश्चिम क्षेत्र में शाम से रात तक माहौल भक्तिमय रहेगा। इस रथयात्रा में हजारों भक्तों का जनसैलाब प्रभु के दिव्यदर्शन करने उमड़ेगा । पंकज तोतला , पुखराज सोनी, रजत बेडिय़ां ने बताया कि हर वर्ष दूज को निकलने वाली वेंकटेश प्रभु की रथयात्रा का स्वरूप अनेक वर्ष की परम्परा से चला आ रहा है।

इंदौर में आपातकाल, कफ्यूू और कोरोना के समय भी रथयात्रा के पहिए नहीं थमे और सिलसिला लगातार जारी रहा। रथयात्रा छत्रीबाग से प्रारंभ होकर सिलावटपुरा चौराहा, नृसिंह बाजार, सीतलामाता बाजार, गोरकुण्ड चौराहा, शकर बाजार, बड़ा सराफा, पीपली बाजार, बर्तन बाजार, बजाजखाना, सांठा बाजर से होते हुए पुन: मंदिर पर आकर समाप्त होगी। इस रथयात्रा के मार्ग में करीब 300 स्थानों पर मंचों से यात्रा का स्वागत पुष्पवर्षा से किया जाएगा। यात्रा में 250 कार्यकर्ता एक जैसे कुर्ते वाली वेशभूषा में यात्रा की व्यवस्था संभालेंगे। भजन गायक हरिकिशन साबू भोपूजी, द्वारका मंत्री की भजन मंडली भक्तों को और माता-बहनों के जनसैलाब के साथ नाचते-गाते भजनों की रस गंगा प्रवाहित करेंगे।


रथयात्रा काखास आकर्षण मुम्बई का बैंड और झांकियां
यात्रा में केवट चरित्र, हनुमंत लाल, जल संसाधन, गोमाता बचाओ, अयोध्या रामजी, प्रभु वेंकटेशजी, अहिल्याबाई संबंधी सभी झांकियों और मुंबई से आए 80 लडक़े-लड़कियों का बैंड पूरे मार्ग पर 6 -7 घंटे तक विशेष प्रस्तुति देगा। कमल के पुष्प पर विराजमान रामानुज स्वामीजी की झांकियां भक्तों को रामानुज संप्रदाय के सिद्धान्त और उनके द्वारा किए गए कार्य, गुरु के प्रति समर्पण का वर्णन का दर्शन देंगी। यात्रा मार्ग पर भक्त मंडल लगातार सफाई करते हुए चलेगा।

1948 में 50 भक्तों ने लकड़ी के रथ पर निकाली थी सवारी
इंदौर में वेंकटेश मंदिर की रथयात्रा का इतिहास 1948 से शुरू हुआ, जब 50 भक्तों ने लकड़ी के रथ पर 1948 में सवारी निकाली थी। यह यात्रा छत्रीबाग से शुरू होकर विभिन्न बाजारों से होते हुए मंदिर परिसर में वापस आती थी। हर साल भक्तों की आस्था बढ़ती गई व स्वरूप बढ़ता गया और भक्तों ने चांदी का रथ बनवा दिया। यह रथयात्रा इंदौर में एक महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन बन गई है।

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