
लखनऊ । राजधानी लखनऊ (Lucknow) में एक ऐसा गांव है, जहां आजादी के 77 साल बाद भी बिजली नहीं (no electricity) पहुंची है। मध्यांचल निगम मुख्यालय से महज 45 किमी.दूर रहीमाबाद के वृंदावन गांव (Vrindavan Village) के लोग अंधेरे में जीने को मजबूर हैं। शाम होते ही गांव में अंधेरा छा जाता है। ग्रामीणों को दीये और मोमबत्तियों के सहारे काम चलाना पड़ता है। बच्चों को ढिबरी की रोशनी में पढ़ाई करनी पड़ती है।
गांव के बुजुर्गों ने बताया कि उनके बचपन से लेकर बुढ़ापे तक स्थिति नहीं बदली है। पहले भी बिजली नहीं थी। आज भी नहीं है। कई पीढ़ियों ने बिजली की रोशनी का इंतजार किया। कुछ लोग इस इंतजार में ही दुनिया से चले गए। विकास की रोशनी से वंचित इस गांव के लोगों को हर शाम अंधेरा होने से पहले घर लौटना पड़ता है। वृंदावन गांव में करीब तीन साल पहले पोल लगाए गए थे। कुछ दिनों बाद लेसा कर्मी पोल उखाड़कर ले गए। एक साल पहले फिर पोल लगाए गए, लेकिन आज तक लाइन नहीं खींची गई। ग्रामीणों ने कई बार शिकायत की, पर कुछ नहीं हुआ। ग्रामीण हरिश्चंद्र ने बताया कि गांव में करीब डेढ़ दर्जन घर हैं।
ढिबरी में पढ़ाई, पड़ोस के गांव में मोबाइल चार्ज
ग्रामीणों ने बताया कि बिजली न होने के कारण बच्चों को ढिबरी की रोशनी में पढ़ना पड़ता है। गांव के हरिश्चंद्र, रामकुमार, देवी प्रसाद, नरेंद्र कुमार, मथुरा, बिंद्रा, शिवराम, गोकुल, रामचंद्र, खुशीराम ने बताया कि मोबाइल चार्ज करने के लिए ससपन जाना पड़ता है।
बिजली के इंतजार में धूल फांक रहे पंखे
गांव के अरविंद पाल ने बताया कि लोग हमारे यहां रिश्ता जोड़ने से भी कतराते हैं, जहां बिजली न हो। वहां बेटियों का भविष्य अंधेरे में जाएगा। वहीं जो शादियां होती है। उनमें मिले दहेज के इलेक्ट्रॉनिक सामान यहीं खराब होकर धूल खाते हैं। गांव ब्याह कर आईं सुलोचना और रेनू ने बताया कि दहेज में मिला कूलर, पंखे, एलसीडी बिजली आने के इंतजार में रखे हुए हैं।
बिजली पोल लगाए, पर नहीं खींची लाइन
ग्रामीणों ने बताया कि करीब तीन साल पहले गांव में बिजली के पोल लगाए गए थे। कुछ समय बाद लेसाकर्मियों ने पोल उखाड़कर ले गए। एक साल पहले फिर पोल लगाकर छोड़ गए, लाइन आज तक नहीं खींची गई है।
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