
नई दिल्ली । फेफड़ों का कैंसर(Lung cancer) हर साल 18 लाख से अधिक लोगों की जान लेता है। 2022 में यह दुनिया का सबसे अधिक पाया जाने वाला कैंसर(cancer) था, जिसमें 25 लाख नए मामले(New cases) सामने आए जो कुल कैंसर मामलों का 12.4% थे। नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम व ग्लोबोकैन 2020 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 2020 में फेफड़ों के कैंसर के 79,221 नए मामले और 70,264 मौतें दर्ज की गईं।
फेफड़ों का कैंसर दुनिया में सबसे अधिक जानलेवा कैंसर के रूप में अपनी स्थिति मजबूत करता जा रहा है और भारत इसके सबसे बड़े हॉटस्पॉट में शुमार हो चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईजेएमआर) की रिपोर्ट्स बताती हैं कि 2025 अंत तक भारत में फेफड़ों के कैंसर के मामलों की संख्या 81,219 तक पहुंच सकती है, जो 2015 में 63,807 थी। विशेषज्ञ इसे भारत में आने वाली नॉन-स्मोकर कैंसर महामारी के रूप में देख रहे हैं जिसमें प्रदूषण, औद्योगिक रसायनों और जीवनशैली प्रमुख कारक हैं।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, फेफड़ों का कैंसर हर साल 18 लाख से अधिक लोगों की जान लेता है। 2022 में यह दुनिया का सबसे अधिक पाया जाने वाला कैंसर था, जिसमें 25 लाख नए मामले सामने आए जो कुल कैंसर मामलों का 12.4% थे। नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम व ग्लोबोकैन 2020 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 2020 में फेफड़ों के कैंसर के 79,221 नए मामले और 70,264 मौतें दर्ज की गईं।
विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत में 50% से अधिक मामलों की पहचान एडवांस स्टेज में होती है, जब इलाज की संभावना बेहद सीमित रह जाती है। राज्यवार विश्लेषण से स्पष्ट हुआ है कि महानगरों और औद्योगिक क्षेत्रों वाले राज्यों में इसकी दर सबसे अधिक है। नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम (एनसीआरपी) के अनुसार महाराष्ट्र, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में फेफड़ों के कैंसर के सबसे अधिक मामले दर्ज किए जा रहे हैं। अकेले दिल्ली में प्रति 1 लाख जनसंख्या पर इसकी घटना दर 14.6 है, जो राष्ट्रीय औसत 7.3 प्रति लाख से दोगुनी है। कोलकाता और मुंबई जैसे शहरों में यह दर क्रमशः 12.4 और 11.7 है।
वायु प्रदूषण बड़ा कारण
महानगरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक लगातार खतरनाक स्तर पर रहता है। पार्टिकुलेट मैटर (पीएम2.5 और पीएम10) फेफड़ों में जाकर कैंसर कोशिकाओं के विकास को बढ़ावा देता है। आईसीएमआर की रिपोर्ट में प्रदूषण को साइलेंट स्मोकिंग कहा गया है।
यूपी, पंजाब व हरियाणा में भी तेजी से बढ़ रहे मामले
रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर भारत के राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा में भी प्रदूषण और तंबाकू सेवन के कारण फेफड़ों के कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में ग्रामीण क्षेत्रों में बीड़ी व तंबाकू सेवन के कारण फेफड़ों के कैंसर की दर शहरी क्षेत्रों की तुलना में 30% अधिक पाई गई है। दक्षिण भारत के कर्नाटक और तमिलनाडु में शहरीकरण और औद्योगिक विस्तार के कारण यह रोग बढ़ रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि राज्यवार इस वृद्धि के पीछे स्थानीय वायु प्रदूषण स्तर, औद्योगिक अपशिष्ट नियंत्रण की स्थिति और तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रमों की प्रभावशीलता बड़ी भूमिका निभा रही है।
नई दिल्ली एम्स में प्रोफेसर डॉ. अरुणा मेनन ने कहा कि भारत में समस्या यह है कि फेफड़ों के कैंसर के शुरुआती लक्षण जैसे लगातार खांसी, वजन घटना, सांस लेने में तकलीफ को लोग सामान्य प्रदूषण या धूम्रपान का असर मानकर नजरअंदाज कर देते हैं। जब तक जांच कराई जाती है, तब तक बीमारी एडवांस स्टेज में पहुंच चुकी होती है।
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