
मुम्बई। महाराष्ट्र की राजनीति (Maharashtra Politics) में एक बार फिर कयासों का दौर शुरू हो चुका है। वजह है अजित पवार (Ajit Pawar) के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के विधायक (Nationalist Congress Party (NCP) MLA) धनंजय मुंडे (Dhananjay Munde) का मंत्रीपद से इस्तीफा। राज्य की महायुति सरकार के मंत्रियों और खुद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस (Chief Minister Devendra Fadnavis) का कहना है कि धनंजय ने नैतिक आधार पर इस्तीफा दिया है। मंगलवार को उनका इस्तीफा स्वीकार भी हो गया। हालांकि, इसके साथ ही सियासी गलियारों में एक बार फिर चर्चाओं का बाजार गर्म है। दरअसल, धनंजय मुंडे ने जिस मामले से तार जुड़ने के बाद इस्तीफा दिया है, वह है उनके विधानसभा क्षेत्र बीड में एक सरपंच की हत्या का मामला। इसे लेकर विपक्षी दलों ने महायुति पर जमकर निशाना साधा है।
दरअसल, बीड जिले के मस्साजोग गांव के सरपंच संतोष देशमुख की हत्या में जिस मुख्य आरोपी- वाल्मिकी कराड की पहचान हुई है, वह धनंजय मुंडे का करीबी है। दोनों वेंकटेश्वर में चीनी मिल में साझेदार हैं। इस जुड़ाव और वाल्मिकी से करीबी कबूलने के बाद से ही धनंजय मुश्किलों में घिरे थे। हालांकि, मौजूदा समय में इस हत्या के मामले से ज्यादा चर्चा महायुति सरकार को लगे पहले की झटके की है। इसके दम पर विपक्षी दलों ने सत्तासीन गठबंधन को निशाने पर ले लिया है और आपराधिक मामले वाले नेताओं पर कार्रवाई की मांग की है।
ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर महाराष्ट्र में धनंजय मुंडे के खिलाफ लगे आरोपों और मंत्रीपद से उनके इस्तीफे के इर्द-गिर्द क्या सियासत चल रही है? धनंजय के इस्तीफे को उनकी पार्टी राकांपा और उनकी पुरानी पार्टी भाजपा के लिहाज से कैसे देखा जा रहा है? धनंजय के इस्तीफे से उनके प्रभाव वाले बीड जिले और मराठवाड़ा क्षेत्र में अब क्या-क्या बदल सकता है? इसके अलावा महाराष्ट्र में खाली हुए मंत्रीपद को लेकर क्या कयास लगाए जा रहे हैं?
गौरतलब है कि बीड और मराठवाडा का इलाका लंबे समय तक भाजपा का गढ़ रहा है। इसकी वजह रहे हैं गोपीनाथ मुंडे, जो कि उस क्षेत्र के मजबूत नेता रहे। धनंजय मुंडे उनके भतीजे हैं। बताया जाता है कि 1990 के दशक में गोपीनाथ मुंडे ही धनंजय को भाजपा में लेकर आए थे। धनंजय ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से लेकर भाजपा युवा मोर्चा तक की जिम्मेदारी संभाली।
हालांकि, जब गोपीनाथ की विरासत संभालने की बात आई, तो उनकी बेटी पंकजा मुंडे उत्तराधिकारी के तौर पर पहले नंबर पर दिखाई दीं। इसके चलते धनंजय और पंकजा में बीड में वर्चस्व की एक जंग शुरू हो गई। जब धनंजय को भाजपा में दाल गलती नहीं दिखी तो उन्होंने राकांपा (अविभाजित) का दामन थाम लिया। 2014 में धनंजय और पंकजा के बीच सीधा मुकाबला हुआ और इसमें पंकजा विजयी हुईं। इसी के साथ देवेंद्र फडणवीस कैबिनेट में उनकी जगह बन गई।
2019 में एक बार फिर धनंजय और पंकजा का मुकाबला हुआ। इस बार धनंजय मुंडे को जीत मिली। पंकजा के समर्थकों ने इस हार के लिए सीएम देवेंद्र फडणवीस को जिम्मेदार ठहराया, क्योंकि फडणवीस और धनंजय अच्छे दोस्त बताए जाते हैं। इसके बाद पंकजा पांच साल तक महाराष्ट्र की राजनीति से बाहर रहीं।
2023 में महाराष्ट्र में स्थितियां बदलीं और राकांपा के दो हिस्से हो गए। धनंजय मुंडे को अजित पवार के नेतृत्व वाली राकांपा के साथ जुड़ना रास आया। इस तरह धीरे-धीरे ही सही धनंजय मुंडे एक बार फिर भाजपा के करीब आए। पंकजा मुंडे ने भी दूरियां कम करने की कोशिश की, हालांकि धरातल पर इसका असर नहीं दिखा और पंकजा लोकसभा चुनाव हार गईं। इस बार विधानसभा चुनाव में बीड की सीट राकांपा के खाते में गई और उसने धनंजय को उतारा। धनंजय ने शरद पवार गुट के नेता राजासाहेब देशमुख को हरा दिया। वहीं, पंकजा मुंडे ने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा। वे विधान परिषद चली गईं।
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