
मुंबई । मुंबई (Mumbai) में 2006 के सीरियल ब्लास्ट मामले (serial blast cases) में बरी हुए एक शख्स ने उसे बिना वजह कैद में रखे जाने और हिरासत (custody) में मिली यातनाओं का हवाला देते हुए हर्जाने की मांग की है। अब्दुल वाहिद शेख नाम के शख्स ने कहा है कि उसे बिना गलती के 9 साल तक जेल में रखा गया और इसीलिए उसे 9 करोड़ रुपए मुआवजा दिया जाए। उसने शुक्रवार को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और महाराष्ट्र राज्य मानवाधिकार आयोग में आवेदन दायर कर पुनर्वास के लिए भी मदद मांगी है।
जानकारी के मुताबिक ब्लास्ट से जुड़े केस की जांच के दौरान वाहिद शेख को महाराष्ट्र एंटी-टेररिज्म स्क्वॉड (ATS) ने गिरफ्तार किया था। हालांकि 9 साल जेल में रहने के बाद 2015 में विशेष अदालत ने उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया। उनकी अर्जी में कहा गया कि जेल में बिताया गया यह समय उनके करियर, शिक्षा और निजी जिंदगी के लिए कभी ना भरने वाला नुकसान साबित हुआ। साथ ही हिरासत के दौरान उसे यातनाएं दी गईं जिसकी वजह से उसे गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से भी जूझना पड़ा।
‘आतंकवादी कहे जाने का ठप्पा’
शेख ने बताया कि वह फिलहाल एक स्कूल शिक्षक का काम कर रहे हैं और परिवार के इकलौते कमाने वाले सदस्य हैं। उन्होंने कहा कि उनकी जिंदगी पर आतंकवादी कहे जाने का ठप्पा भी लगा है और इस वजह से बाहर आने के बाद नौकरी ढूंढना मुश्किल हो गया। उन्होंने आगे बताया कि जेल में रहने के दौरान उनके परिवार को सामाजिक, भावनात्मक और आर्थिक तकलीफें उठानी पड़ीं। इतना ही नहीं उन पर करीब 30 लाख रुपए का कर्ज भी हो गया।
दस साल तक इंतजार क्यों?
अपनी याचिका में शेख ने कहा कि उन्होंने दस साल तक मुआवजे की मांग नहीं की क्योंकि उनके बाकी सह-आरोपी दोषी करार दिए गए थे। याचिका में शेख ने लिखा, “मैंने इंतजार किया कि जब तक मेरे सभी सह-आरोपी बरी होकर निर्दोष साबित नहीं हो जाते, तब तक मैं मुआवजे की मांग नहीं करूंगा।” शेख की अर्जी में ऐसे कई मामलों का भी हवाला दिया गया है, जिनमें मानवाधिकार आयोग ने गलत तरीके से कैद में रहे लोगों को मुआवजा दिया था।
180 से ज्यादा लोगों की हुई थी मौत
गौरतलब है कि 11 जुलाई 2006 को मुंबई की वेस्टर्न रेलवे की लोकल ट्रेन नेटवर्क पर हुए 7 धमाकों में 180 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। विशेष अदालत ने 2015 में जहां शेख को बरी कर दिया, वहीं बाकी 12 आरोपियों में से 5 को फांसी और सात को उम्रकैद की सजा दी गई थी। हालांकि जुलाई 2025 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया और कहा कि अभियोजन पक्ष मामला साबित करने में पूरी तरह नाकाम रहा।

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