
नई दिल्ली. जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के आतंकवादी (Terrorist) यासीन मलिक (Yasin Malik) ने एक सनसनीखेज दावा (shocking claim) करते हुए कहा है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) ने 2006 में पाकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा (LET) के संस्थापक और 26/11 के मास्टरमाइंड हाफिज सईद (Hafiz Saeed) से मुलाकात के बाद व्यक्तिगत रूप से उसे धन्यवाद दिया था और आभार व्यक्त किया था. यासीन मलिक टेरर फंडिंग मामले में उम्रक़ैद की सजा काट रहा है.
25 अगस्त को दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल लफनामे में, मलिक ने दावा किया कि 2006 में हुई यह मुलाकात उसकी स्वतंत्र पहल नहीं थी, बल्कि पाकिस्तान के साथ गुप्त शांति प्रक्रिया के तहत सीनियर भारतीय खुफिया अधिकारियों के गुजारिश पर हुई थी.
खुफिया ब्यूरो की कथित भूमिका…
यासीन मलिक के बयान के मुताबिक, 2005 में कश्मीर में आए विनाशकारी भूकंप के बाद उसकी पाकिस्तान यात्रा से पहले, खुफिया ब्यूरो (आईबी) के तत्कालीन विशेष निदेशक वी.के. जोशी ने दिल्ली में उससे मुलाकात की थी.
वी.के. जोशी ने कथित तौर पर मलिक से गुजारिश किया था कि इस मौके का उपयोग न केवल पाकिस्तानी राजनीतिक नेतृत्व के साथ, बल्कि सईद सहित आतंकवादी हस्तियों के साथ भी बातचीत करके तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के शांति प्रयासों का समर्थन करें.
मलिक ने दावा किया है कि मुझे साफ तौर से बताया गया था कि पाकिस्तान के साथ बातचीत तब तक सार्थक नहीं हो सकती, जब तक कि आतंकवादी नेताओं को भी बातचीत में शामिल न किया जाए. उसने कहा कि गुजारिश पर अमल करते हुए, मैंने पाकिस्तान में एक समारोह में सईद और यूनाइटेड जिहाद काउंसिल के अन्य नेताओं से मिलने की सहमति जताई.
अमित मालवीय का पोस्ट…
बीजेपी आईटी सेल के चीफ अमित मालवीय ने सोशल मीडिया पोस्ट में यासीन मलिक के द्वारा दाखिल किया गया एफिडेविट भी शामिल किया है. पोस्ट में उन्होंने लिखा, “टेरर-फंडिंग मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के आतंकवादी यासीन मलिक ने चौंकाने वाला दावा किया है.”
हाफ़िज़ सईद से मुलाक़ात…
यासीन मलिक ने अपने हलफ़नामे में बताया कि कैसे हाफिज सईद ने जिहादी समूहों का एक सम्मेलन आयोजित किया, जहां सईद ने एक भाषण दिया और आतंकवादियों से शांति की गुजारिश की. इस्लामी शिक्षाओं का हवाला देते हुए, उसने कहा कि हिंसा के बजाय सुलह पर ज़ोर दिया जाए और इस बात पर ज़ोर दिया, “अगर कोई आपको शांति की पेशकश करता है, तो उससे शांति खरीद लीजिए.”
हालांकि, यह मुलाक़ात वर्षों बाद विवाद का विषय बन गई क्योंकि इसे मलिक की पाकिस्तानी आतंकवादी समूहों से नज़दीकी के सबूत के तौर पर पेश किया गया. मलिक ने अपने हलफ़नामे में इस घटनाक्रम को “एक विश्वासघात” बताया और ज़ोर देकर कहा कि यह एक आधिकारिक तौर पर स्वीकृत पहल थी, जिसे बाद में राजनीतिक मकसदों के लिए तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया.
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