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नए साल में बदल जाएगा GDP, खुदरा महंगाई, IIP मापने का तरीका… जानिए इसके फायदे?

December 23, 2025

नई दिल्ली। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने कहा है कि देश के प्रमुख व्यापक आर्थिक संकेतकों (Broad economic indicators), खुदरा मुद्रास्फीति (Retail inflation), जीडीपी (GDP) और औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (Industrial Production Index) की नई शृंखलाएं अगले वर्ष जारी की जाएंगी, जिनमें इनके आधार वर्ष बदले जाएंगे। मंत्रालय के अनुसार, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित खुदरा मुद्रास्फीति और राष्ट्रीय लेखा से संबंधित संशोधित आंकड़े फरवरी 2026 में जारी किए जाएंगे, जबकि औद्योगिक उत्पादन सूचकांक की नई शृंखला मई 2026 में प्रकाशित होगी।


आधिकारिक बयान में बताया गया कि जीडीपी, सीपीआई और आईआईपी के आधार वर्ष में बदलाव को लेकर मंगलवार को एक परामर्श कार्यशाला आयोजित की जाएगी। इससे पहले इसी विषय पर 26 नवंबर को मुंबई में पहली कार्यशाला का आयोजन किया गया था।

मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि खुदरा मुद्रास्फीति की नई शृंखला के लिए आधार वर्ष 2024 तय किया गया है और इसे 12 फरवरी 2026 को जारी किया जाएगा। वहीं, राष्ट्रीय लेखा से जुड़े आंकड़ों के लिए वित्त वर्ष 2022-23 को आधार वर्ष माना जाएगा और यह नई शृंखला 27 फरवरी 2026 को प्रकाशित की जाएगी। इसके अलावा, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) की नई शृंखला का आधार वर्ष भी 2022-23 होगा, जिसे 28 मई 2026 को जारी करने की योजना है।

आम आदमी को क्या फायदा होगा?
1. आधार वर्ष क्या होता है और इसे क्यों बदला जाता है?
आधार वर्ष वह साल होता है, जिसके मुकाबले महंगाई, उत्पादन और आर्थिक वृद्धि को मापा जाता है। समय के साथ लोगों की खर्च करने की आदतें, तकनीक और बाजार बदल जाते हैं। इसलिए पुराने आधार वर्ष से सही तस्वीर नहीं मिलती, इसी वजह से इसे बदला जाता है।
2. खुदरा महंगाई का आधार वर्ष बदलने से क्या बदलेगा?
नई शृंखला में आज के खर्च—जैसे मोबाइल, इंटरनेट, स्वास्थ्य और शिक्षा—को ज्यादा महत्व मिलेगा। इससे महंगाई का आंकड़ा आम आदमी के रोजमर्रा के खर्च के ज्यादा करीब होगा।
3. क्या इससे महंगाई अचानक बढ़ या घट जाएगी?
नहीं। आधार वर्ष बदलने से महंगाई की वास्तविक दर नहीं बदलती, बल्कि उसकी गणना ज्यादा सटीक हो जाती है। आंकड़ों में बदलाव दिख सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कीमतें रातों-रात बदल जाएंगी।
4. क्या इसका असर वेतन, पेंशन और महंगाई भत्ते पर पड़ेगा?
हां, अप्रत्यक्ष रूप से। महंगाई भत्ता, पेंशन और कई मजदूरी दरें उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से जुड़ी होती हैं। अधिक सटीक सीपीआई से ये बढ़ोतरी ज्यादा न्यायसंगत और वास्तविक हो सकती है।
5. मासिक किस्त और ब्याज दरों पर इसका क्या असर होगा?
आरबीआई महंगाई और जीडीपी के आंकड़ों के आधार पर ब्याज दरों पर फैसला करता है। बेहतर और भरोसेमंद आंकड़ों से होम लोन और अन्य मासिक किस्तों से जुड़े फैसले संतुलित हो सकते हैं।
6. जीडीपी और आईआईपी के आधार वर्ष बदलने से आम आदमी को क्या लाभ?
इससे यह साफ होगा कि किन सेक्टरों में उत्पादन और रोजगार बढ़ रहा है। सरकार बेहतर उद्योग और रोजगार नीतियां बना पाएगी, जिससे नौकरियों और आय के अवसर बढ़ सकते हैं।
7. क्या सरकारी योजनाओं पर भी इसका असर पड़ेगा?
हां। सही आंकड़ों से सब्सिडी, सामाजिक योजनाएं और राज्यों को मिलने वाला फंड वास्तविक जरूरतों के अनुसार तय किया जा सकेगा।

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