
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)ने एक महत्वपूर्ण फैसले(Important decisions) में कहा है कि किसी भी भर्ती विज्ञापन(Recruitment Advertisement) के तहत आवेदन करने के लिए जाति प्रमाणपत्र (caste certificate)उसी विशेष प्रारूप में प्रस्तुत करना अनिवार्य है, जैसा कि विज्ञापन में निर्धारित किया गया है। केवल किसी आरक्षित श्रेणी से संबंधित होने के आधार पर कोई कैंडिडेट इस व्यवस्था से छूट का दावा नहीं कर सकता है। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने यह टिप्पणी उस मामले में की जिसमें एक उम्मीदवार ने उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड (UPPRPB) द्वारा जारी विज्ञापन के तहत आवेदन किया था।
कैंडिडेट ने ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) प्रमाणपत्र केंद्र सरकार के लिए मान्य प्रारूप में प्रस्तुत किया था, जबकि विज्ञापन में स्पष्ट रूप से राज्य सरकार द्वारा निर्धारित प्रारूप में प्रमाणपत्र की मांग की गई थी। निर्धारित प्रारूप में प्रमाणपत्र प्रस्तुत न करने पर उम्मीदवार को अनारक्षित श्रेणी में माना जाना था।
जब इस आधार पर कैंडिडेट को भर्ती प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया तो उसने पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोर्ट से राहत न मिलने पर वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि भर्ती विज्ञापन की शर्तों का पालन करना प्रत्येक कैंडिडेट का कर्तव्य है।
प्रमाणपत्र प्रारूप की अनदेखी पर भर्ती में छूट नहीं
न्यायमूर्ति दत्ता द्वारा लिखे गए फैसले में 2013 के एक अन्य मामले Registrar General, Calcutta High Court बनाम श्रीनिवास प्रसाद शाह (2013) 12 SCC 364 का हवाला देते हुए कहा गया कि यदि कोई प्रमाणपत्र निर्धारित प्रारूप में न हो और वह सक्षम प्राधिकारी द्वारा न जारी किया गया हो, तो उसका कैंडिडेट की पात्रता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
पीठ ने कहा, “भर्ती विज्ञापन की शर्तों का पालन न करने से चयनकर्ता संस्था/नियुक्ति प्राधिकारी को कैंडिडेट की दावेदारी को नकारने का पूरा अधिकार है। यदि कोई उम्मीदवार स्वयं इन शर्तों की अनदेखी करता है तो बाद में वह इस पर आपत्ति नहीं उठा सकता।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि उम्मीदवार से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह प्रमाणपत्र के प्रारूप को लेकर असमंजस में रहे। यदि उसे संदेह था तो वह संबंधित प्राधिकारी से सही प्रारूप में प्रमाणपत्र प्राप्त कर सकता था। केवल इस आधार पर कि वह आरक्षित जाति से संबंधित है, वह गलत प्रारूप को तकनीकी त्रुटि कहकर छूट नहीं मांग सकता।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि कोई उम्मीदवार विज्ञापन की शर्तों को समझने का प्रयास नहीं करता और अपनी ही समझ के आधार पर आवेदन करता है तो बाद में असफल होने पर वह यह नहीं कह सकता कि शर्तों को दूसरे तरीके से भी समझा जा सकता था।
सुप्रीम कोर्ट ने इसी तरह के एक अन्य मामले में मोहित और किरण नामक अभ्यर्थियों के दावों को भी खारिज कर दिया। उन्होंने भी गलत प्रारूप में प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया था और यह दावा किया था कि सही प्रारूप की मांग महज औपचारिकता है। कोर्ट ने इस दावे को अस्वीकार करते हुए कहा कि UPPRPB द्वारा निर्धारित प्रारूप कोई औपचारिकता नहीं, बल्कि अनिवार्य शर्त है।
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