
नैनीताल । मोदी सरकार (Modi Government) ने आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के मामले में (In IFS officer Sanjiv Chaturvedi’s Case) चौथी बार ‘यू-टर्न’ लिया (Took U-turn for the Fourth Time) ।
केंद्र की मोदी सरकार ने सिविल सेवकों के बहुचर्चित और विवादास्पद 360 डिग्री मूल्यांकन (मल्टी सोर्स फीडबैक) प्रणाली पर एक बार फिर हैरान करने वाला चौथी बार ‘यू-टर्न’ लिया है। उत्तराखंड कैडर के तेज तर्रार आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के मामले में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण की नैनीताल सर्किट बेंच के समक्ष दायर ताजा हलफनामे ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग की पिछली दलीलों की पोल खोल दी है।
विरोधाभासों का जाल: कब क्या कहा? पूरा मामला किसी फिल्मी पटकथा जैसा है, जहाँ सरकारी विभाग अपनी ही बातों को काट रहा है। अक्टूबर 2023 में कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने न्यायाधिकरण को हलफनामा देकर लिखित में कहा था कि भारत सरकार में ऐसी कोई प्रणाली (360 डिग्री) मौजूद ही नहीं है और न ही इसका कोई रिकॉर्ड उपलब्ध है। इसके बाद 19 नवंबर 2025 को दिए ताजा हलफनामे में अब विभाग ने नया पैंतरा चलते हुए स्वीकार किया है कि ये दिशा निर्देश मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति के दायरे में हैं। हालांकि, इन्हें ‘अत्यंत गोपनीय’ बताते हुए सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया गया है। विभाग का कहना है कि ये केवल ट्रिब्यूनल को बंद लिफाफे में दिखाए जा सकते हैं।
न्यायाधिकरण से आदेश को वापस लेने की गुहारः हैरानी की बात यह है कि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने अब केट से अपने उस पुराने आदेश (14.10.2025) को वापस लेने का अनुरोध किया है, जिसमें अदालत ने इन दिशा निर्देशों को रिकॉर्ड पर रखने का निर्देश दिया था। सरकार अब इसे ‘गोपनीयता’ की ढाल बनाकर अदालती रिकॉर्ड में आने से रोकना चाहती है।
संसदीय समिति और सचिव की गवाहीः सरकार का यह नया स्टैंड खुद उसके पुराने रिकॉर्ड के खिलाफ है। वर्ष 2017 में, तत्कालीन कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के सचिव ने संसदीय स्थायी समिति के सामने इस प्रणाली के एक-एक विवरण का खुलासा किया था। उन्होंने बताया था कि इसे क्यों शुरू किया गया और इसमें किन गुणों का आकलन होता है। अब आठ साल बाद, इसे ‘अति गोपनीय’ बताकर जनता से छिपाया जा रहा है।
‘अपारदर्शी और व्यक्तिपरक’ प्रणाली पर सवालः संसदीय समिति की 92वीं रिपोर्ट ने इस प्रणाली को पहले ही अपारदर्शी, व्यक्तिपरक और गैर-पारदर्शी करार दिया था। रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया था कि इसमें अनौपचारिक फीडबैक लिया जाता है, जिससे हेरफेर और पक्षपात की संभावना प्रबल हो जाती है। समिति ने इसे ‘कानूनी रूप से अमान्य’ तक कहा था। संजीव चतुर्वेदी की याचिका ने अब केंद्र सरकार को उस मोड़ पर ला खड़ा किया है, जहाँ उसे यह स्वीकार करना पड़ रहा है कि जिस सिस्टम को उसने पहले ‘अस्तित्वहीन’ बताया था, वह न केवल सक्रिय है बल्कि उसे अदालती रिकॉर्ड से भी दूर रखने की कोशिश की जा रही है।
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