
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh) के शताब्दी वर्ष के मौके पर आयोजित तीन दिवसीय व्याख्यानमाला के तीसरे दिन भाजपा अध्यक्ष के चयन (selection of BJP President) में आरएसएस की भूमिका (Role of RSS) पर बोलते हुए मोहन भागवत ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने इस विषय पर बोलते हुए कहा कि मैं शाखा चलाने में माहिर हूं, भाजपा सरकार चलाने में माहिर है, हम एक-दूसरे को सिर्फ सुझाव दे सकते हैं। उन्होंने आगे कहा कि हम फैसला नहीं करते, अगर हमें फैसला करना होता तो क्या इसमें इतना समय लगता।
इस दौरान भाजपा और आरएसएस के बीच मतभेद के सवाल पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि मतभेद के कोई मुद्दे नहीं होते। हमारे यहां मतभेद के विचार कुछ हो सकते हैं लेकिन मनभेद बिल्कुल नहीं है। एक दूसरे पर विश्वास है…क्या भाजपा सरकार में सब कुछ आरएसएस तय करता है? ये पूर्णतः गलत बात है। ये हो ही नहीं सकता। इस दौरान उन्होंने सरकार के साथ संघ के समन्वय पर भी बात की। उन्होंने कहा कि सिर्फ मौजूदा सरकार ही नहीं, बल्कि हर सरकार के साथ हमारा अच्छा समन्वय है…कहीं कोई झगड़ा नहीं है।
आगे जब उनसे पूछा गया कि भाजपा के अलावा अन्य राजनीतिक दलों का संघ साथ क्यों नहीं देता? इस सवाल के जवाब में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि अच्छे काम के लिए जो हमसे सहायता मांगते हैं हम उन्हें सहायता देते हैं। हम सहायता करने जाते हैं तो जो दूर भागते हैं, उन्हें सहायता नहीं मिलती तो हम क्या करें। आपको सिर्फ एक पार्टी दिखती है जिसको हम सहायता कर रहे हैं। लेकिन कभी-कभी देश चलाने के लिए या पार्टी का कोई काम चलाने के लिए अगर वो अच्छा है तो हमारे स्वयं सेवक जाकर मदद करते हैं…हमें कोई परहेज नहीं है। सारा समाज हमारा है। हमारी तरफ से कोई रुकावट नहीं है। उधर से रुकावट है तो हम उनकी इच्छा का सम्मान करके रूक जाते हैं।
प्रश्नोत्तर सत्र के दौरान जब संघ प्रमुख मोहन भागवत से पूछा गया कि तकनीक और आधुनिकीकरण के युग में संस्कार और परम्पराओं के संरक्षण की चुनौती को संघ किस प्रकार देखता है? इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि तकनीकी और आधुनिकता इनका शिक्षा से विरोध नहीं है। शिक्षा केवल जानकारी नहीं है, मनुष्य सुसंस्कृत बने। नई शिक्षा नीति में पंचकोशीय शिक्षा का प्रावधान है।
उन्होंने आगे कहा कि लोगों को तकनीक का मालिक होना चाहिए, तकनीक को हमारा मालिक नहीं बनना चाहिए। इसलिए शिक्षा ज़रूरी है। अगर तकनीक अशिक्षितों के हाथों में चली जाए, तो इसका उल्टा असर हो सकता है। शिक्षा का मतलब सिर्फ जानकारी रटना नहीं है। हमारी पुरानी शिक्षा लुप्त हो गई, जब हम गुलाम थे, तब एक नई व्यवस्था आई। उन्होंने व्यवस्था को अपने हिसाब से बनाया। लेकिन अब हम आजाद हैं, हमें न सिर्फ राज्य चलाना है, बल्कि लोगों को भी उसका पालन करना है। हमें उस दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है।
प्रश्नोत्तर सत्र के दौरान जब उनसे पूछा गया कि क्या संस्कृत को अनिवार्य किया जाना चाहिए? इसका जवाब देते हुए मोहन भागवत ने कहा कि स्वयं को और अपने ज्ञान, परंपरा को समझने के लिए संस्कृत का बुनियादी ज्ञान आवश्यक है। इसे अनिवार्य बनाने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन, भारत को सही अर्थों में समझने के लिए संस्कृत का अध्ययन आवश्यक है। यह ललक पैदा करनी होगी। गौरतलब है कि ‘आरएसएस की 100 वर्ष की यात्रा: नए क्षितिज’ विषय पर तीन दिवसीय कार्यक्रम मंगलवार को दिल्ली के विज्ञान भवन में शुरू हुआ था।
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