
इंदौर, प्रदीप मिश्रा। शहर से लगभग 35 किलोमीटर दूर डबलचौकी इलाके में सिवनी पंचायत के अधीन गढ़ी गांव के अंदर उत्पाती बंदर ने रहवासी किसानों को घायल कर ऐसा आतंक मचाया कि उसके पकड़े जाने तक गांव में डर और दहशत का माहौल बना रहा। एक पीडि़त को तो बंदर ने काट-नोंचकर इतनी बुरी तरह घायल कर दिया कि इलाज के दौरान डाक्टर को उसके चेहरे पर 25 से ज्यादा टांके लगाना पड़े।
गढ़ी गांव निवासी कृषक लीलाधर पटेल ने अग्निबाण को बताया कि पिछले सप्ताह शुक्रवार से लेकर कल रविवार तक एक उत्पाती बंदर गांव के रहवासी ही नहीं, बल्कि मेहमानों पर भी हमला करता रहा। उत्पात के दौरान स्टैंड पर खड़े दोपहिया वाहनों को जहां जमीन पर गिरा दिया, जिससे उनमें टूट-फूट हो गई, वहीं 3 रहवासी किसानों को काट-नोंचकर घायल कर दिया। घायलों में शामिल लगभग 45 वर्षीय किसान सोहन दरबार को तो इतनी बुरी तरह घायल कर दिया कि इलाज के दौरान उसके चेहरे पर डाक्टर को 27 टांके लगाना पड़े। इसके अलावा लगभग 75 वर्षीय किसान बाबू पटेल सहित एक मेहमान को भी अपने गुस्से का शिकार बना डाला। इन घायलों में दूसरे गांव से अपनी सुसराल आया एक दामाद भी शामिल है। घायल सोहन दरबार ने बताया कि उसका डबलचौकी के अस्पताल में इलाज जारी है।
घायल पीडि़तों की संख्या के असली आंकड़े कभी नहीं मिलते
यह आंकड़े इंदौर शहर के एक ही सरकारी अस्पताल के हैं। यहां के अलावा जिले की तहसीलों सहित उपनगरों के निजी अस्पतालों में इलाज कराने वाले घायलों के आंकड़ों का कोई भी रिकार्ड जिला प्रशासन से लेकर स्वास्थ्य विभाग के पास नहीं है। इस बारे में स्वास्थ्य विभाग द्वारा बार-बार आदेश देने के बावजूद कई निजी हास्पिटल संचालक अधिकारियों के निर्देशों को कतई नहीं मानते। वन विभाग बंदर पीडि़तों को भी इलाज में खर्च की गई राशि का भुगतान करता है। यदि बंदर के हमले में घायल की मृत्यु हो जाती है तो मृतक के परिजनों को मुआवजे के 8 लाख रुपए दिए जाते हैं। इसके अलावा यदि पीडि़त घायल कहीं जॉब या धंधा करता है तो जितने दिन उसका इलाज चलता है, विभाग प्रतिदिन के हिसाब पीडि़त को शासन द्वारा तय राशि का भी भुगतान करता है, बशर्ते घटना से लेकर इलाज तक सारे संबंधित जरूरी साक्ष्य मतलब प्रमाण सत्यापन की कसौटी पर खरे उतरने चाहिए।
रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान बेहोश करके पकड़ा
उत्पाती बंदर के बढ़ते आतंक के चलते आखिरकार गांव वालों ने वन विभाग के डीएफओ को सूचना दी। उन्होंने तत्काल रालामंडल से रेस्क्यू टीम को रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए रवाना किया। गांव में पहुंचने के बाद रेस्क्यू टीम ने बड़े अधिकारियों से अनुमति लेकर बंदर को ट्रेंक्यूलाइज (बेहोश) कर पकड़ लिया। इसके बाद होश आने पर उसे गांव से बहुत दूर घने जंगलों में छोड़ दिया।
जनवरी से अक्टूबर तक 470 हो चुके शिकार
माह बंदर पीडि़त
जनवरी 27
फरवरी 36
मार्च 30
अप्रैल 23
मई 36
जून 64
जुलाई 90
अगस्त 61
सितंबर 60
अक्टूबर 43
कुल 470
यह संख्या हुकमचंद क्लिनिक में इलाज कराने पहुंचे पीडि़तों की है ।
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