
आगर मालवा. इंसानों के लिए लंगर (langar) की परंपरा तो सबने देखी होगी, लेकिन क्या आपने कभी आसमान में उड़ने वाले बेजुबान पक्षियों (birds) के लिए लंगर का सोचा है? मध्य प्रदेश (MP) के आगर मालवा (Agar Malwa) में अमित जैन और उनके परिवार की यह अनोखी सेवा पिछले पच्चीस वर्षों से लगातार जारी है. प्रतिदिन सुबह 6 बजे से पहले, जब सूरज की पहली किरण भी नहीं चमकी होती, अमित जैन अपने साथियों के साथ हाथों में झोले और अनाज लेकर छत पर पहुंच जाते हैं. यहां हजारों कबूतर, तोते और मोर उनके इंतजार में बैठते हैं.
दरअसल, इस सेवा की शुरुआत अमित के दादा ने की थी, जिन्होंने चार महीने तक पक्षियों को दाना खिलाया. इसके बाद उनके पिता मनोहर जैन ने इसे पूरे साल चलने वाला प्रोजेक्ट बना दिया. अब यह परंपरा अमित और उनके दोस्तों द्वारा संभाली जा रही है. प्रतिदिन करीब 1 क्विंटल अनाज, जिसमें ज्वार, मक्का, बाजरा होता है. जिसे हाथों और झोलों के माध्यम से छत पर फैलाया जाता है, ताकि पक्षियों को खाने में कोई परेशानी न हो.
अमित के मुताबिक, शुरुआती दौर में पक्षियों की संख्या कम थी, लेकिन प्रकृति के बदलते स्वरूप और जंगलों के उजड़ने के कारण अब यह संख्या हजारों में पहुंच गई है. इस सेवा के लिए सालाना 4-5 लाख रुपये का अनाज खर्च होता है, जो समाज सेवा से जुड़े लोगों के दान और सहयोग से चलता है. अमित और उनके साथी इस काम में पूरी निष्ठा से जुटे रहते हैं और उनका कहना है कि यह सेवा बिना किसी प्रचार या विज्ञापन के होती है, जो दिखाती है कि इंसानियत में अभी भी फरिश्तों जैसा जज़्बा मौजूद है.
इस अनोखी पहल में न सिर्फ भोजन बल्कि पानी की भी व्यवस्था है. हजारों पंक्षियों की चहचहाहट के बीच अमित और उनके साथी यह सेवा करते हैं. यह कहानी केवल पक्षियों के लिए लंगर लगाने की नहीं बल्कि एक परिवार की पीढ़ियों तक चली इंसानियत और सेवा की परंपरा की है. जहां सरकार इंसानों के पेट भरने के लिए योजनाएं चलाती हैं, वहीं आगर मालवा में अमित जैन जैसे लोग बेजुबान जीवों के लिए अपनी सेवा दिखा रहे हैं.
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