
सीहोर। मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के सीहोर (Sehore) के भैरुंदा क्षेत्र के लिए वरदान बनी मूंग पर भूमिगत जलस्तर (underground water level) गिरने से संकट के बादल खड़े हो गए हैं। जल स्तर गिरने से क्षेत्र का किसान परेशान है। इस वर्ष क्षेत्र के किसानों ने लगभग 45000 हेक्टेयर में जायद की फसल मूंग की बुआई की है, जो कि कम समय में अधिक मुनाफा देने वाली दो माह की फसल है। अपनी फसल को बचाने के लिए किसान दिन-रात खेतों में डटे हुए हैं, सिंचाई के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं।
बीते एक सप्ताह से लगातार जारी प्री-मानसून की हवा और आंधी के कारण खेतों में विद्युत लाइनें प्रभावित होती चली आ रही हैं, जिससे सिंचाई करने में किसानों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। समय पर बिजली नहीं मिलने व भूमिगत स्तर के अनुमान से अधिक नीचे चले जाने से फसल में सिंचाई नहीं हो पा रही है।
कई किसानों ने कम पानी की समस्या को देखते हुए अपनी खेतों में लाखों रुपए खर्च कर ट्यूबवेल खनन भी करवाए, लेकिन वह भी जलस्तर नीचे गिरने से दम तोड़ चुके हैं। पानी की किल्लत से जूझ रहे किसान अब दो मोटरों को एक साथ जोड़कर सिंचाई करने पर मजबूर हो रहे हैं, जो कि एक महंगा और मुश्किल तरीका है। मूंग की फसल में अब फूल आने लगे हैं, और यदि समय पर सिंचाई नहीं की गई तो उत्पादन में भारी गिरावट आ सकती है, जिससे किसानों को बड़ा आर्थिक नुकसान होगा।
उल्लेखनीय है कि बीते 10 वर्ष पूर्व 1500 हेक्टेयर से क्षेत्र में मूंग फसल की शुरुआत हुई थी। तब किसानों का रुझान मूंग फसल पर ज्यादा खास नहीं था। लेकिन साल-दर-साल इसके रकबे में बढ़ोतरी होती गई। इसी बीच मूंग का अधिक उत्पादन होने के बाद सरकार द्वारा एमएसपी पर मूंग की खरीदी शुरू किए जाने के बाद से क्षेत्र में मूंग फसल का रकबा एकाएक बढ़ा और आज क्षेत्र में 45 हजार हेक्टेयर के लगभग मूंग फसल की बुआई होने लगी है।
गर्मी की फसल होने के कारण इस फसल में सिंचाई की भी अधिक आवश्यकता होती है। रबी फसल गेहूं में जितने पानी की आवश्यकता परिपक्वता के लिए होती है, उतना ही पानी इस फसल में लगता है। लेकिन भीषण गर्मी में जलस्तर नीचे जाने से अब खेतों में लगे ट्यूबवेल व कुओं ने किसानों का साथ छोड़ना शुरू कर दिया है, जिससे क्षेत्र का किसान परेशान है। लगातार भीषण गर्मी के चलते क्षेत्र में जीवनदायनी नर्मदा नदी का जलस्तर भी धीरे-धीरे नीचे जा चुका है। नर्मदा टापूओं में तब्दील होती नजर आने लगी हैं। ऐसी स्थिति में अब किसानों के सामने मूंग फसल में उस समय सिंचाई करना आवश्यक हो गया है, जब मूंग फसल फूल पर है। सिंचाई ना होने से किसान मूंग के उत्पादन को लेकर चिंता में हैं।
क्षेत्र के किसानों का कहना है कि अनुमान से कम बारिश होने व मूंग के रकबे में बढ़ोतरी होने से जल संकट की स्थिति निर्मित हुई है। इस वर्ष मूंग फसल की बुआई करने के बाद जब पलेवा शुरू किया गया। उस समय ही मोटरों ने झटके लेना शुरू कर दिया था। अब तो स्थिति कुछ ऐसी निर्मित हो गई है कि हमें दो मोटरों को एक करके सिंचाई करना पड़ रही हैं। उसमें भी समय अधिक लग रहा हैं। किसानों ने बताया कि मूंग फसल 55 से 60 दिन की फसल है, लेकिन इस बार समय पर पलेवा कार्य नहीं होने से उसमें देरी हो रही है। जिन किसानों के पास पर्याप्त पानी था ऐसे किसान भी इस समय जल संकट से जूझ रहे हैं।
किसान संगठनों की मानें तो हरदा जिले के किसानों को प्रतिवर्ष मूंग फसल के उत्पादन के लिए नहरों के माध्यम से पानी दिया जाता है। क्षेत्र का किसान कोलार नहर से मूंग फसल के लिए पानी दिए जाने की मांग वर्षों से कर रहे हैं, लेकिन उनकी इस महत्वपूर्ण मांग पर अब तक सरकारी स्तर पर कोई भी विचार नहीं किया गया है।
सरकार द्वारा एमएसपी पर मूंग की खरीदी किए जाने संबंधी अब तक कोई भी आदेश विभागीय स्तर पर प्राप्त नहीं हुए हैं। ऐसे में किसान चिंता में हैं। पंजीयन की तारीख तय ना होने से किसान असमंजस में हैं कि इस बार सरकार मूंग की खरीदी करेगी या नहीं। हालांकि क्षेत्र का किसान इस समय खेतों में डटा हुआ है और पंजीयन की तारीख का इंतजार कर मूंग फसल को संवारने में जुटा है। जिन किसानों द्वारा समय पर मूंग की बुआई कर दी थी, ऐसे किसानों की फसल कटाई शुरू हो चुकी है। ऐसे किसानों का मानना है कि उन्हें अपनी उपज बेचने के लिए सही समय पर सरकारी खरीद का सहारा नहीं मिला तो उन्हें औने-पौने दामों पर अपनी फसल बेचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
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