
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh ) की भाजपा सरकार (BJP government) ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में दायर हलफनामे में राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण (OBC Reservation) बढ़ाकर 27% करने के फैसले को सही ठहराया है। सरकार ने कहा कि विभिन्न आयोगों और हालिया अध्ययनों से यह स्पष्ट है कि ओबीसी समुदाय (OBC Community) अब भी गहरे सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन से जूझ रहा है। राज्य सरकार ने कहा कि यह पिछड़ापन सिर्फ संख्या तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यवस्थित भेदभाव, सामाजिक बहिष्कार और अवसरों की कमी के रूप में दिखता है, जिसके चलते उन्हें बराबरी से प्रतिस्पर्धा का मौका नहीं मिल पाता।
हलफनामे में 1983 की महाजन आयोग रिपोर्ट का जिक्र है, जिसमें ओबीसी को 35% आरक्षण देने की सिफारिश की गई थी। इसी तरह, मध्य प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग (MPBCC) की 1996-97 और 2000-01 की रिपोर्टों में भी आरक्षण बढ़ाने की अनुशंसा की गई थी।
सरकार ने बताया कि 2023 में डॉ. बी.आर. अंबेडकर यूनिवर्सिटी ऑफ सोशल साइंसेज द्वारा किए गए अध्ययन में भी ओबीसी की सामाजिक-आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर पाई गई। रिपोर्ट के मुताबिक, बड़ी आबादी होने के बावजूद वे अब भी जातिगत पेशों तक सीमित हैं और बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं।
50% सीमा पर दलील
आरक्षण की 50% सीमा पर उठ रही आपत्तियों के जवाब में राज्य सरकार ने कहा कि 1992 के इंदिरा साहनी केस (मंडल आयोग मामला) में सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ किया था कि विशेष परिस्थितियों में इस सीमा से ऊपर भी जाया जा सकता है। सरकार ने तर्क दिया कि मध्य प्रदेश में ओबीसी की स्थिति इन्हीं विशेष परिस्थितियों में आती है।
आपको बता दें कि 1994 में लागू कानून के तहत ओबीसी को 14% आरक्षण मिला। 1995 और 2002 में संशोधनों के जरिए सीमा में बदलाव हुआ। 2003 में राज्य सरकार ने 27% आरक्षण देने का फैसला किया, जिसे 2014 में हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। मार्च 2019 में सरकार ने अध्यादेश लाकर फिर से ओबीसी का आरक्षण 27% किया, जिसे हाईकोर्ट ने मेडिकल शिक्षा तक सीमित कर दिया।
यह मामला इस समय सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, जहां यह तय होगा कि क्या मध्य प्रदेश का कदम संविधान और न्यायालय की तय की गई सीमा के अनुरूप है या नहीं।
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