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कुपोषण पर MP हाईकोर्ट सख्त, सभी जिला कलेक्टरों से मांगी रिपोर्ट, मुख्य सचिव को दिया नोटिस

July 26, 2025

भोपाल। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट (madhya pradesh high court) की चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा (Chief Justice Sanjeev Sachdeva) और जस्टिस विनय सराफ (Justice Vinay Saraf) की युगलपीठ ने प्रदेश में कुपोषण की स्थिति को लेकर गंभीर रुख अपनाया है। कोर्ट ने प्रदेश के सभी जिला कलेक्टरों को निर्देश दिया है कि वे अपने-अपने जिलों की कुपोषण संबंधी स्टेटस रिपोर्ट चार सप्ताह के भीतर न्यायालय में प्रस्तुत करें। साथ ही राज्य शासन, मुख्य सचिव सहित संबंधित विभागों को नोटिस जारी कर जवाब-तलब किया गया है।

यह आदेश जबलपुर निवासी दिपांकर सिंह द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया गया। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ताओं अमित सिंह सेंगर और अतुल जैन ने कोर्ट को अवगत कराया कि प्रदेश में कुपोषण की स्थिति भयावह है, लेकिन शासन-प्रशासन वास्तविक आंकड़ों को छिपाने में जुटा हुआ है। कागजों में बच्चों को स्वस्थ बताया जा रहा है, जबकि जमीनी हालात इसके बिल्कुल उलट हैं।

याचिका में बताया गया कि पोषण ट्रैकर 2.0 और राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार मध्यप्रदेश कुपोषण के मामले में देश में दूसरे स्थान पर है। वर्ष 2025 में ही इसमें तीन प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। पोषण आहार में प्रोटीन और विटामिन की भारी कमी के कारण बच्चों का विकास अवरुद्ध हो रहा है। कई बच्चे ठिगने, कमजोर और गंभीर रूप से कुपोषित पाए गए हैं।


याचिकाकर्ता ने कैग रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि वर्ष 2025 में पोषण आहार वितरण में 858 करोड़ रुपये का घोटाला उजागर हुआ है। वितरण और परिवहन में अनियमितता, घटिया गुणवत्ता और भ्रष्टाचार के बावजूद अब तक दोषियों पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गई है। याचिका के अनुसार प्रदेश में 0 से 6 वर्ष आयु वर्ग के लगभग 66 लाख बच्चे हैं, जिनमें से 10 लाख से अधिक कुपोषण से पीड़ित हैं। इनमें एक लाख 36 हजार से अधिक बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं। इसके साथ ही 57 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से ग्रस्त हैं। गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को भी समुचित पोषण नहीं मिल पा रहा है।

हाईकोर्ट को बताया गया कि प्रदेश भर में आंगनबाड़ी केंद्रों में भारी अनियमितताएं हैं। अकेले जबलपुर में 1.80 करोड़ रुपये का किराया आंगनबाड़ी केंद्रों के लिए भुगतान किया गया, जबकि बच्चों की उपस्थिति बेहद कम पाई गई। प्रत्येक केंद्र में 40 से 50 बच्चों के नाम पंजीकृत हैं, लेकिन हकीकत में उपस्थिति नाममात्र की है। फिर भी उन्हीं आंकड़ों के आधार पर मध्यान्ह भोजन और अन्य लाभों का भुगतान किया जा रहा है।

सुनवाई के दौरान कोर्ट के अवगत कराया गया कि रीवा जिले में पोषण आहार तैयार करने के दौरान उसे पैरों से रौंदने का वीडियो वायरल हुआ था। वहीं, विदिशा में ठिगने बच्चों की लंबाई जानबूझकर बढ़ाकर दर्ज की गई और झूठी रिपोर्ट राज्य शासन को भेजी गई। अधिवक्ताओं ने दलील दी कि प्रदेश के अन्य जिलों की स्थिति भी इसी प्रकार की है और जमीनी हकीकत को उजागर करना बेहद जरूरी है।

हाईकोर्ट की युगलपीठ ने इस मामले को गंभीर मानते हुए कहा कि अगर शासन वास्तविक स्थिति को छिपाता रहा, तो यह नौनिहालों के जीवन से खिलवाड़ के समान होगा। न्यायालय ने कहा कि ऐसी स्थिति में दिशानिर्देश और नीतियां बनाना कठिन हो जाता है, जो कि कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए आवश्यक हैं।

कोर्ट ने सभी जिला कलेक्टरों को चार सप्ताह के भीतर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश देते हुए यह स्पष्ट किया कि बिना वास्तविक डेटा के इस समस्या का समाधान संभव नहीं। राज्य शासन और संबंधित अधिकारियों से भी पूछा गया है कि अब तक इस दिशा में क्या कदम उठाए गए और कुपोषण की भयावह स्थिति को सुधारने के लिए क्या योजनाएं लागू हैं।

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