
भोपाल। मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के शहडोल (Shahdol) की जूनियर डिवीजन सिविल जज (Junior Division Civil Judge) अदिति कुमार शर्मा (Aditi Kumar Sharma) ने 28 जुलाई को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट (Madhya Pradesh High Court) के चीफ जस्टिस (Chief Justice) को अपना इस्तीफा सौंपते हुए एक ऐसी कहानी बयां की, जो न्याय के गलियारों में गूंज रही है। अपने पत्र में उन्होंने लिखा, ‘मैं न्यायिक सेवा से इस्तीफा दे रही हूं, क्योंकि मैंने संस्थान को नहीं, बल्कि संस्थान ने मुझे निराश किया।’ अदिति ने एक वरिष्ठ जज पर उत्पीड़न और दुराचार का आरोप लगाया था, जिन्हें हाल ही में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का जज नियुक्त किया गया।
‘सच बोलने की सजा’
अदिति ने खुद को एक ऐसी जज के रूप में बताया, जिसने ‘असीमित शक्ति वाले सीनियर जज के खिलाफ बोलने की हिम्मत की।’ उन्होंने दावा किया कि उन्हें सालों तक लगातार उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। हर वैध रास्ते को अपनाने के बावजूद, उन्हें न तो न्याय मिला और न ही उनकी बात सुनी गई। उन्होंने कहा, ‘मैंने तथ्यों के साथ आरोप लगाए, लेकिन न कोई जांच हुई, न कोई नोटिस जारी हुआ और न ही उस जज से कोई स्पष्टीकरण मांगा गया।’
‘इनाम की जगह सजा’
अदिति के अनुसार, उनके दुखों का कारण बने उस जज को न केवल जवाबदेही से बचाया गया, बल्कि उसे इनाम और सम्मान दिया गया। उन्होंने अपने पत्र में लिखा, ‘जिसने मेरे दुखों की साजिश रची, उसे सम्मानित किया गया, ऊंचा पद दिया गया। उसे समन की जगह मंच दिया गया।’अदिति ने यह भी कहा कि वह बदला नहीं, बल्कि न्याय की गुहार लगा रही थीं, न केवल अपने लिए, बल्कि उस संस्थान के लिए, जिसमें उनका विश्वास था।
‘खामोशी की सजा’
2023 में, अदिति सहित छह महिला न्यायिक अधिकारियों को कथित असंतोषजनक प्रदर्शन के आधार पर सेवा से हटा दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का स्वतः संज्ञान लिया। 1 अगस्त 2024 को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने चार अधिकारियों ज्योति वरकड़े, सोनाक्षी जोशी, प्रिया शर्मा और रचना अतुलकर जोशी को कुछ शर्तों के साथ बहाल किया, लेकिन अदिति और सरिता चौधरी को इस प्रक्रिया से बाहर रखा गया।
हालांकि, 28 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने अदिति की बर्खास्तगी को ‘मनमाना और गैरकानूनी’ करार देते हुए उन्हें बहाल किया। फिर भी अदिति ने अपने पत्र में लिखा, ‘मैं अब एक कोर्ट अधिकारी के रूप में नहीं, बल्कि इसकी खामोशी की शिकार के रूप में विदा ले रही हूं। मेरे पास कोई पदक नहीं, कोई उत्सव नहीं, केवल यह कड़वा सच है कि न्यायपालिका ने मुझे निराश किया। और इससे भी बुरा, उसने खुद को निराश किया।’
अदिति ने अपने इस्तीफे में लिखा, “मैं अब चली, उन घावों के साथ जो कोई बहाली, कोई मुआवजा, कोई माफी कभी ठीक नहीं कर सकती। मेरा यह पत्र उन फाइलों में सदा गूंजेगा, जिनमें यह दर्ज होगा।’
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