
इंदौर। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय (Madhya Pradesh High Court) ने इंदौर (Indore) में 30 साल से भी ज्यादा वक्त से बंद पड़ी एक कपड़ा मिल की 42 एकड़ जमीन को ‘नगर वन’ घोषित किए जाने की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका खारिज (PIL rejected) कर दी है। अदालत ने कहा कि भारतीय वन अधिनियम में ‘नगर वन’ की कोई अवधारणा नहीं है। साथ ही अदालत ने मिल परिसर में पूर्व विकसित पेड़ होने की बात मानने से भी इनकार कर दिया और कहा कि इतने सालों में वहां पर झाड़ियां और बबूल के पेड़ उग आए हैं, जिन्हें हटाने के लिए टेंडर निकाला गया है। इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि मिल की उस जमीन को MPHIDB ने सिर्फ हरियाली के लिए खाली रखने वास्ते नहीं खरीदा है। हाई कोर्ट की इंदौर पीठ के जस्टिस विवेक रुसिया और जस्टिस जय कुमार पिल्लई ने दोनों पक्षों की दलीलों पर गौर करने के बाद पर्यावरणविद् ओमप्रकाश जोशी और अन्य लोगों की जनहित याचिका बुधवार को खारिज कर दी।
याचिका में बताया गया था कि शहर में 1992 से बंद पड़ी हुकुमचंद मिल के 42 एकड़ परिसर क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से वन बन गया है, जिसे’नगर वन’ घोषित किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ताओं ने इस याचिका के जरिए कोर्ट से वहां की जमीन पर लगे 30-40 साल पुराने पेड़ों को नहीं काटने की गुहार लगाई गई थी। साथ ही मिल परिसर में पेड़ों की कटाई के लिए जारी टेंडर को भी अवैध घोषित करके रद्द किए जाने की मांग की गई थी।
हालांकि उच्च न्यायालय ने याचिका में की गई मांगों को खारिज कर दिया, और अपने फैसले में बताया राज्य सरकार के मध्यप्रदेश गृह निर्माण एवं अधोसंरचना विकास मंडल (MPHIDB) ने बंद पड़ी मिल की जमीन का स्वामित्व हासिल करने के लिए 421 करोड़ रुपए जमा कराए हैं और इस रकम का अधिकांश हिस्सा मिल के लेनदारों के साथ ही कर्मचारियों व पूर्व कर्मचारियों के बीच वितरित किया जा चुका है।
हाई कोर्ट की डबल बेंच ने कहा कि MPHIDB ने मिल परिसर में उग आई झाड़ियों, उखड़े हुए पेड़ों और लकड़ी के टुकड़ों को काटने और हटाने के लिए ई-निविदा जारी की है और इसमें पेड़ों को हटाने जैसे किसी शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है। अदालत ने कहा कि 1992 से खाली पड़े मिल परिसर में कुछ बबूल के पेड़ हैं जो समय बीतने के साथ बढ़ गए हैं और परिसर की जमीन झाड़ियों और उखड़े हुए पेड़ों से भर गई है।
उच्च न्यायालय ने कहा,‘याचिकाकर्ताओं का यह तर्क निराधार है कि हुकुमचंद मिल परिसर में सैकड़ों पूर्ण विकसित पेड़ों वाला एक नगर वन है।’ अदालत ने यह भी कहा कि MPHIDB ने इस मिल की जमीन हासिल करने के लिए इतनी बड़ी धनराशि का निवेश सिर्फ हरियाली के उद्देश्य से जमीन को खाली रखने के वास्ते नहीं किया है।
डबल बेंच ने मौजूदा स्तर पर किसी भी हस्तक्षेप से इनकार करते हुए कहा,‘राज्य सरकार इंदौर के कनाड़िया क्षेत्र में एक लाख पेड़ लगाकर नगर वन विकसित करने का निर्णय पहले ही ले चुकी है। इसलिए एक बार जब MPHIDB ने राशि का निवेश कर दिया है और विकास के लिए भूमि खरीद ली है, तो सभी झाड़ियों और उखड़े हुए पेड़ों को हटाए बिना निर्माण कार्य शुरू नहीं किया जा सकता।’
याचिकाकर्ता और अन्य पर्यावरण कार्यकर्ता हुकुमचंद मिल परिसर के पेड़ों की कटाई का विरोध कर रहे हैं। याचिकाकर्ताओं के अनुसार मिल परिसर में प्राकृतिक रूप से वन उत्पन्न हो गया है जो इंदौर के लिए एक महत्वपूर्ण हरित अवसंरचना संपत्ति के रूप में कार्य करता है।
उच्च न्यायालय ने कहा,’याचिकाकर्ताओं के अनुसार इंदौर शहर के निवासियों के हित में (मिल के) इस हरित क्षेत्र को नगर वन घोषित करके सरकार द्वारा संरक्षित किया जाना चाहिए। हालांकि, भारतीय वन अधिनियम में ‘नगर वन’ की ऐसी कोई अवधारणा नहीं है।’ MPHIDB, मिल परिसर के 60 प्रतिशत हिस्से का वाणिज्यिक उपयोग करना चाहता है, जबकि शेष 40 प्रतिशत भाग पर वह आवासीय परियोजना लाना चाहता है। याचिकर्ताओं का पक्ष उनके वकील अभिनव धनोदकर ने रखा, जबकि राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता आनंद सोनी ने पैरवी की।
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