
भोपाल: बीजेपी (BJP) की फायरब्रांड नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती (Uma Bharti) ने एक बार फिर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने साफ कहा कि भारत (India) का अंतिम लक्ष्य पीओके (POK) को वापस लेना है और यह देश की संसद का भी संकल्प है. इसके साथ ही उन्होंने काशी और मथुरा पर अपनी आस्था जताते हुए कहा कि उनका दिल चाहता है कि वहां मंदिर बनें. उमा ने मालेगांव ब्लास्ट से लेकर सेवानिवृत्ति की उम्र तक, हर मुद्दे पर बेबाकी से अपनी राय रखी.
काशी और मथुरा विवाद पर उमा भारती ने कहा, “दोनों मामले अदालत में हैं, लेकिन मेरा दिल एक हिंदू का है और मैं काशी और मथुरा में मंदिर देखना चाहती हूं. मेरा विश्वास चाहता है कि काशी और मथुरा में मंदिर हों.” उन्होंने याद दिलाया कि पूजा स्थलों से जुड़े कानून (1991) पर संसद में डिबेट के दौरान भी उन्होंने काशी और मथुरा का मुद्दा उठाया था.
चुनाव लड़ने के सवाल पर उमा भारती ने साफ कहा, “हाँ मैं चुनाव तब लड़ूँगी जब मुझे लगेगा कि मैं तैयार हूं. मैं प्रतिबद्धता के प्रति निष्ठावान हूं. मेरे पास जनता की ताकत है.” उन्होंने कहा कि राजनीति में ताकत पाना उनका मकसद नहीं है, बल्कि योगदान करना ही उनका असली लक्ष्य है.
राजनीति में सेवानिवृत्ति की उम्र पर चल रही बहस पर उन्होंने कहा, “कोई भी संगठन, राजनीतिक पार्टी, संस्थान सेवानिवृत्ति की उम्र तय कर सकता है लेकिन योगदान की उम्र नहीं. योगदान की कोई उम्र नहीं होती. राजनीति एक मंच है और योगदान मेरी क्षमता है.” उमा भारती ने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे पेड़ कभी अपना फल खुद नहीं खाता और नदी अपना जल खुद नहीं पीती, वैसे ही योगदान देने की क्षमता कभी खत्म नहीं होती.
2008 मालेगांव ब्लास्ट केस पर भी उमा भारती ने गंभीर सवाल उठाए. उन्होंने कहा, “कुछ चीजों की जांच होनी बाकी है, सबसे पहले मेरा नाम व्यापमं घोटाले में आया. 2008 मालेगांव ब्लास्ट में लोगों की जान गई. उसमें (ले. कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित, साध्वी प्रज्ञा सिंह) उनके नाम क्यों जोड़े गए और असली दोषियों को अभी तक गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया?. यह जांच का विषय है और असली दोषियों को गिरफ्तार किया जाना चाहिए.”
उमा भारती ने यह भी बताया कि वह किसी एनजीओ से नहीं जुड़ना चाहतीं क्योंकि उनका काम जनता से सीधे जुड़कर करना है. उन्होंने शराबबंदी आंदोलन का उदाहरण दिया और कहा, “मैंने कोई सभा, कोई पंडाल कुछ नहीं लगाया. मैं तो शराब की दुकान के सामने जाकर ही खड़ी हो जाऊं. तो जब मैं दुकान के सामने जाकर खड़ी हो जाऊं तो जो शराब पीने आए होते थे, वो लोग मेरी तरफ पीछे आकर खड़े हो जाते थे. अंत में भीड़ इकट्ठी हो जाती थी.”
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