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कर्बला की जंग में भारत के मुस्लिम ब्राह्मणों ने दिया था इमाम हुसैन का साथ, आज भी मोहर्रम मनाते हैं ये हिंदू

July 08, 2025

नई दिल्‍ली । हिंदू-मुस्लिम भाईचारे (Hindu-Muslim brotherhood) की कई मिसाल समय-समय पर सामने आती हैं। हालांकि बहुत कम ही लोगों को पता है कि इस्लाम (Islam) की दिशा बदलने वाली कर्बला की जंग में भी मुस्लिम ब्राह्मणों (Muslim Brahmins) ने पैगंबर मोहम्मद साहब (prophet mohammed sahab) के नवासे इमाम हुसैन (imam hussain) का साथ दिया था। इराक के शहर कर्बला में करीब 1400 साल पहले यह जंग इमाम हुसैन और यजीद के बीच लड़ी गई थी। इस जंग में हिस्सा लेने पंजाब के दत्त ब्राह्मण भी पहुंचे थे। इन्हें आज हुसैनी ब्राह्मण के तौर पर जाना जाता है और वे आज भी मोहर्रम मनाते हैं।

ब्राह्मणों ने पैगंबर मोहम्मद से किया था वादा
बताया जाता है कि मोहर्रम महीने के 10वें दिन इराक के कर्बला में इमाम हुसैन इब्न अली और बेरहम यजीद के बीच इस्लाम के सिद्धातों के लिए जंग हुई थी। उस समय रहब दत्त ब्राह्मण का परिवार लाहौर में रहता था। वे व्यापार के सिलसिले में अरब देशों में आते-जाते रहते थे। कहा जाता है कि उन्होंने पैगंबर मोहम्मद साहब को वादा किया था कि धर्म की लड़ाई में वे उनके परिवार का ही साथ देंगे।

680 ईसवी में कर्बला की लड़ाई में राहाब सिद्ध दत्त भी शामिल थे। इसके अलावा मोहयाल ब्राह्मणों ने भी इस लड़ाई में हिस्सा लिया। भीमवाल, छिब्बर दत्त, लऊ, मोहन और वैद समेत कई उपजातियों का नाम इस लड़ाई में आता है। इन्हें आज हुसैनी ब्राह्मण कहा जाता है।


राहाब दत्त ने दे दी सात बेटों की कुर्बानी
इराक में फराद नदी के किनारे यजीद और इमाम हुसैन के बीच युद्ध हुआ था। कहा जाता है कि जंग से पहले ही इमाम हुसैन ने भारत में मोहयाल राजा राहाब सिद्ध दत्त को पत्र लिखा था। पत्र मिलने के बाद ब्राह्मणों का एक जत्था कर्बला के लिए रवाना हो गया। कहा जाता है कि कर्बला की लड़ाई में राहाब सिद्ध दत्त ने अपने सात बेटों को कुर्बान कर दिया। हुसैनी ब्राह्मण लाहौर में लंबे समय तक रहे। हालांकि 1947 के बंटवारे के बाद वे भारत आ गए। फिल्म अभिनेता सुनील दत्त का परिवार भी इन्हीं ब्राह्मणों का वंश है।

इमाम हुसैन की कुर्बानी
यजीद को अरब पर राज करने और इस्लाम को दागदार करने से रोकने के लिए इमाम हुसैन ने कर्बला के मैदान में कुर्बानी दे दी थी। इमाम हुसैन पैगंबर मोहम्मद की की बेटी फातिमा के बेटे थे। उनके पिता हजरत अली चार खलीफा में से एक थे। उनकी भी हत्या कर दी गई थी। अरब के बादशाह इस्लाम के खिलाफ काम करते थे। ऐसे में इस्लाम के सिद्धांतों को बचाने के लिए इमाम हुसैन आगे आए।

सीरिया के यजीद ने घोषणा कर दी कि अब वह इस्लाम का शहंशाह बनेगा। इमाम हुसैन और उनके समर्थकों ने इसका विरोध किया। यजीद को सही रास्ते पर लाने के लिए इमाम हुसैन अपने परिवार के साथ मक्का के लिए निकले। लेकिन रास्ते में ही यजीद ने धोखा किया और दजला-फरात नदी के किनारे उनके पूरे काफिले को रोक दिया गया। उनके पूरे परिवार को बेरहमी से भूखा-प्यासा मार दिया गया। बाद में इमाम हुसैन भी शहीद हो गए। आज भी शिया मुसलमान मक्का कीयात्रा के बाद कर्बला भी जाते हैं। ईरान ने यहां इमाम हुसैन का मकबरा बना दिया था।

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