
नई दिल्ली । गुजरात हाईकोर्ट (gujarat high court)ने मुसलमानों के तलाक(Divorce for Muslims) को लेकर अहम अहम फैसला दिया है। हाईकोर्ट (high court)ने कहा है कि मुस्लिम विवाह को ‘मुबारत’ यानी आपसी सहमति से तलाक के माध्यम से खत्म किया जा सकता है और इसके लिए किसी लिखित सहमति की जरूरत नहीं होती।
रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस ए.वाई. कोगजे और जस्टिस एन.एस. संजय गौड़ा की डिवीजन बेंच ने विवाह विच्छेद की प्रक्रिया पर कुरान और हदीस का हवाला देते हुए राजकोट की एक फैमिली कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें एक मुस्लिम जोड़े द्वारा दायर उस मुकदमे को खारिज कर दिया गया था, जिसमें मुबारत द्वारा विवाह विच्छेद की मांग की गई थी।
फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दी थी मांग
फैमिली कोर्ट ने माना था कि फैमिली कोर्ट ऐक्ट की धारा 7 के तहत यह मुकदमा विचारणीय नहीं है क्योंकि तलाक के लिए आपसी सहमति से कोई लिखित समझौता नहीं था। वैवाहिक कलह के कारण दंपती ने अलग होने का फैसला किया था।
हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के इस फैसले में भी खामी पाई कि तलाक के लिए लिखित समझौता जरूरी है “क्योंकि यह कुरान, हदीस या मुसलमानों में पर्सनल लॉ के तहत अपनाई जाने वाली प्रथा की किसी भी आयत से मेल नहीं खाता है।”
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