
नई दिल्ली: रविवार को केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी (Central Science and Technology) राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह (Jitendra Singh) ने दिल्ली के CSIR-इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (Institute of Genomics and Integrative Biology) में भारत की पहली अत्याधुनिक नेशनल बायोबैंक (State-of-the-art National Biobank) का उद्घाटन किया. इस बायोबैंक का नाम फेनोम इंडिया (Phenom India) है. डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि इस पहल से भविष्य में हर भारतीय को अपनी जेनेटिक जानकारी, जीवनशैली और पर्यावरण के आधार पर व्यक्तिगत इलाज मिल सकेगा. यानी हर व्यक्ति को उसकी जरूरत के हिसाब से इलाज मिलना आसान होगा. इस बायोबैंक के जरिए पूरे भारत के 10,000 लोगों से जीनोमिक, स्वास्थ्य और जीवनशैली से जुड़ा डाटा इकट्ठा किया जाएगा. यह योजना यूके की बायोबैंक से प्रेरित है, लेकिन इसे भारत की भौगोलिक स्थिति और सामाजिक-आर्थिक विविधता को ध्यान में रखते हुए खासतौर पर तैयार किया गया है. इस डाटा की मदद से लंबे समय तक लोगों के स्वास्थ्य की जानकारी रखी जा सकेगी.
डॉ. जितेंद्र सिंह ने वैज्ञानिकों से कहा, अब व्यक्तिगत स्वास्थ्य की देखभाल सिर्फ एक सोच नहीं रह गई है, बल्कि भारतीय नवाचारों की नई खोजों की वजह से यह हकीकत बनती जा रही है. उन्होंने बताया कि “भारत में एक खास समस्या देखी जाती है, बहुत से लोग पतले दिखते हैं, लेकिन उनकी कमर के पास चर्बी जमा होती है. इसे सेंट्रल ओबेसिटी कहा जाता है. हमारे देश की स्वास्थ्य समस्याएं बहुत अलग-अलग तरह की और मुश्किल हैं. इसीलिए बायोबैंक की शुरुआत होना बहुत जरूरी है.”
“अब वैज्ञानिक अलग-अलग बीमारियों जैसे डायबिटीज, कैंसर, दिल की बीमारी और कुछ रेयर जेनेटिक बीमारियों को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे. इससे इन बीमारियों का जल्दी पता लगाने और इलाज करने के नए तरीके विकसित किए जा सकेंगे. आगे चलकर इस बायोबैंक में जमा डेटा की मदद से AI आधारित और जीन पर आधारित इलाज को भी बेहतर बनाया जा सकेगा.”
डॉ. जितेंद्र सिंह ने आगे कहा कि “भारत अब साइंस के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है. हमारा देश अब क्वांटम टेक्नोलॉजी, CRISPR नाम की जीन एडिटिंग तकनीक और एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR)जैसी समस्याओं से लड़ने में आगे है. बायोबैंक जैसे प्रयासों से अब शोध सिर्फ प्रयोगशाला तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह आम लोगों और मार्केट के लिए भी फायदेमंद होगा.”
डॉ. जितेंद्र सिंह ने यह भी बताया कि रिसर्च संस्थानों, जैव प्रौद्योगिकी विभाग और उद्योग जगत को एक साथ मिलकर काम करना बहुत ज़रूरी है. खासकर एएमआर और नई दवाओं को विकसित करने के लिए. CSIR की महानिदेशक और DSIR की सचिव डॉ. एन. कलैसेल्वी ने कहा कि “इस बायोबैंक की शुरुआत भारत को अपने स्वास्थ्य डेटा में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक बड़ा और साहसी कदम है”
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