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भारतीय सेना की नई वायु रक्षा रणनीति, दुश्‍मनों के ड्रोन से लेकर मिसाइलों तक का होगा काम तमाम

February 23, 2025

नई दिल्ली । भारतीय सेना (Indian Army) ने हाल के संघर्षों में ड्रोन और अन्य विध्वंसकारी प्रौद्योगिकियों के प्रभाव को देखते हुए अपनी एयर डिफेंस (Air Defense) क्षमताओं को और सशक्त बनाने के लिए एक नया रोडमैप तैयार किया है। सेना अब अपने पुराने प्लेटफार्मों को बदलने, नए विखंडन गोला-बारूद का इस्तेमाल करने और अधिक शक्तिशाली रडार तैनात करने की योजना बना रही है। इस कदम से भारतीय सेना की वायु रक्षा क्षमताओं को और भी मजबूत किया जाएगा।

इसके अलावा, भारतीय सेना अगले 4-5 महीनों में स्वदेशी रूप से विकसित क्विक रिएक्शन सरफेस टू एयर मिसाइल (QRSAM) प्रणाली के लिए अनुबंध करने की उम्मीद कर रही है। इस प्रणाली को सेना की वायु रक्षा क्षमता में वृद्धि के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

आर्मी एयर डिफेंस ने दी जानकारी
मामले में आर्मी एयर डिफेंस के महानिदेशक, लेफ्टिनेंट जनरल सुमेर इवान डी’कुन्हा ने बताया कि सेना के पास कई प्रकार की मिसाइल प्रणाली और बंदूकें हैं, जिनमें L70, Zu-23mm, Schilka, Tanguska और Osa-AK मिसाइल सिस्टम शामिल हैं। उन्होंने कहा कि सेना इन पुराने प्लेटफार्मों को स्वदेशी उत्तराधिकारी प्लेटफार्मों से बदलने की योजना बना रही है। उन्होंने यह भी कहा कि बंदूकों का इस्तेमाल फिर से लोकप्रिय हो गया है और उन्हें विखंडन गोला-बारूद के साथ प्रभावी तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है।



भारतीय सेना की नई रणनीति
लेफ्टिनेंट जनरल डी’कुन्हा ने यह भी स्पष्ट किया कि सेना एल70 और ZU-23 मिमी बंदूकों को स्वदेशी उत्तराधिकारी प्लेटफार्मों से बदलने की योजना बना रही है, और उन्होंने यह भी कहा कि अभी तक तोपों को आयात करने का कोई विचार नहीं है। इसके अलावा, उन्होंने यह बताया कि स्वदेशी उत्तराधिकारी प्लेटफार्म का पहला परीक्षण जुलाई में किया जा सकता है। भारत ने 1960 के दशक में स्वीडन की बोफोर्स एबी द्वारा निर्मित 1,000 से अधिक एल70 तोपों को शामिल किया था, लेकिन अब इन्हें नए प्लेटफार्म से बदलने की योजना है।

लेफ्टिनेंट जनरल डी’कुन्हा ने आगे बताया कि सेना 4-5 महीनों में इसका अनुबंध करने की उम्मीद कर रही है और इसके बाद कुछ महीनों में पहला प्रोटोटाइप मॉडल तैयार होगा। सितंबर 2022 में, रक्षा मंत्रालय ने बयान दिया था कि डीआरडीओ और भारतीय सेना ने ओडिशा के चांदीपुर से दूर क्यूआरएसएएम प्रणाली के छह उड़ान परीक्षण सफलतापूर्वक किए थे।

साथ ही एएडी द्वारा शिल्का और तांगुस्का जैसे पुराने प्लेटफार्मों को स्वदेशी उत्तराधिकारी प्लेटफार्मों से बदलने की योजना बनाई गई है। ओसा-AK मिसाइल प्रणाली को भी क्यूआरएसएएम से प्रतिस्थापित किया जाएगा, जो वायु रक्षा क्षमताओं को बढ़ावा देगा।

डीआरडीओ का सफल परीक्षण
बता दें कि डीआरडीओ ने हाल ही में बहुत कम दूरी की वायु रक्षा प्रणाली (VSHORADS) के तीन सफल उड़ान परीक्षण किए हैं। यह प्रणाली खास तौर पर कम ऊंचाई पर उड़ने वाले लक्ष्यों के खिलाफ प्रभावी है। VSHORADS एक मानव-पोर्टेबल वायु रक्षा प्रणाली है, जिसे स्वदेशी रूप से डिजाइन किया गया है और यह तीनों सेनाओं की जरूरतों को पूरा करने की क्षमता रखती है।

इसको लेकर डी’कुन्हा ने ड्रोन और काउंटर-ड्रोन तकनीकों के बढ़ते खतरे को भी रेखांकित किया। उन्होंने रूस-यूक्रेन युद्ध का उदाहरण देते हुए बताया कि किस प्रकार ड्रोन का उपयोग एक नया खतरा बन गया है और काउंटर-ड्रोन सिस्टम के लिए नई तकनीक सामने आ रही है। उन्होंने कहा कि भविष्य में, ये नई वायु रक्षा प्रणालियाँ न केवल ड्रोन, बल्कि अन्य विध्वंसकारी प्रौद्योगिकियों के खिलाफ भी सक्षम होंगी। एएडी रडार के उपयुक्त निगरानी ग्रिड के साथ एकीकृत होने से यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि दुश्मन के विमान ऊंचाई पर उड़ान भरने पर उनकी भेद्यता बढ़ जाएगी, जिससे यूक्रेन की तरह भारतीय सेना को अपनी हवाई क्षेत्र की रक्षा करने में मदद मिल सकेगी।

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