
– डॉ. रमेश ठाकुर
मौजूदा समय बदलाव का साक्षी बन रहा है। शिक्षा के ढांचे और स्वरूप को बदला जा रहा है। निजी स्कूलों द्वारा अनाप-शनाप बस्तों के रूप में लादे गए बच्चों पर बोझ को सरकार ने कम कर दिया है। इसके लिए विगत वर्षों से कई तरह की कोशिशें हुईं, अंततः भारी बस्तों से नौनिहालों को छुटकारा मिला। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुसार अब पहली कक्षा से लेकर 10वीं तक के छात्र-छात्राओं का स्कूली बैग का भार उनके शारीरिक वजन के दस प्रतिशत से अधिक नहीं होगा। केंद्र सरकार के इस निर्णय को निश्चित रूप से क्रांतिकारी फैसला कहा जाएगा, क्योंकि बच्चे बस्तों के भारी बोझ से अब मुक्त होंगे।
यह मांग बीते कई सालों से उठ रही थी। देश के अनगिनत शिक्षाविदों ने कई सालों से हुकूमतों को इस बाबत सुझाव दिए थे। पर, पूर्व की सरकारों ने ज्यादा गौर नहीं किया। शिक्षाविदों ने बस्तों के बोझ के दुष्प्रभावों से सरकारों को अवगत भी कराया, बावजूद कोई निर्णय नहीं लिया गया। खैर, देर आए दुरुस्त आए। अब पहली-दूसरी कक्षा के स्कूल बस्ते का वजन डेढ़ किलो से ज्यादा नहीं रहेगा। तीसरी से पांचवीं कक्षा तक यह सीमा तीन किलो तय होगी। वहीं, छठी व सातवीं कक्षा के छात्रों के बस्ते का बोझ सिर्फ चार किलो निर्धारित किया है। फिलहाल इतना वजन बच्चे आसानी से उठा सकेंगे। सवाल उठता है कि क्या निजी स्कूल इस फैसले को आसानी से स्वीकार कर सकेंगे? या फिर पुराने मनमाने ढंग का इस्तेमाल करेंगे।
बस्तों के बोझ ने बच्चों को कितना नुकसान पहुंचाया, यह बताने की जरूरत नहीं। रीढ़ की हड्डियाँ कमजोर होने के साथ-साथ वह कई अन्य बीमारियों से भी घिरे। जो बच्चे जन्म से कुपोषित रहे, वह बस्तों का भार उठाने में शुरू से असक्षम ही रहे। अब बस्ते के बोझ के विकल्प पर सरकार ने डिजिटल व्यवस्था पर जोर दिया है। नई नीति में एक और अच्छी बात कही गई है, बच्चों को ज्यादा होमवर्क नहीं दिया जाएगा। इसके अलावा प्रत्येक स्कूल में बच्चों के स्वास्थ्य की नियमित जांच के लिए प्रबंधकों को डिजिटल मशीनें रखने और समुचित साफ जल उपलब्ध कराने को कहा है। कई बार देखने में आया है कि स्कूलों में साफ जल की व्यवस्था नहीं होने से बच्चे दूषित पानी पीते हैं, जिससे उनका स्वास्थ्य खराब हुआ। बच्चे स्कूलों में ही बीमार हुए,जब उनकी रिपोर्ट आई तो पता चला कि गंदा पानी पीने से अस्वस्थ हुए। सरकार ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए नई शिक्षा नीति में जोड़ा है।
बहरहाल, नये नियमों में सभी बातें व्यवहारिक लगती हैं, नियमों को सही ढंग से लागू करना स्कूलों के लिए चुनौती से कम नहीं होगा। शिक्षा के पूर्व नियमों पर किए गए शोध अध्ययन के आधार पर स्कूल बैग के मानक भार को लेकर अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की सिफारिश है और यह सार्वभौमिक तौर पर स्वीकार की गईं। बड़े अध्ययन के बाद ही सरकार ने अंतिम निर्णय लिया है। देखना यह होगा कि नई शिक्षा नीति को कहीं निजी स्कूल प्रतिस्पर्धा के चक्कर में पलीता न लगा दें। निजी स्कूलों में दिखावे की होड़ रहती है। बेवजह के पीरियड संचालित करना, अतिरिक्त क्लासें रखना, बिना जरूरत के सिलेबस बच्चों पर थोपना आदि। स्कूलों द्वारा भारी-भरकम होमवर्क दिया जाता है, जिससे बच्चों के बैग्स का वजन बढ़ जाता है। हालांकि सरकारी स्कूलों के बैग हमेशा से सीमित रहे हैं।
ऐसा भी नहीं कि निजी स्कूल बस्तों के बोझ से होने वाली बीमारियों से अनजान हैं। कड़ी प्रतिस्पर्धा के चलते प्रत्येक निजी स्कूल, दूसरे स्कूल के मुकाबले कुछ न कुछ अतिरिक्त सब्जेक्ट बच्चों पर जबरन डालते हैं। बच्चों के कंधों पर लदे हेवी बस्तों की वजह से उन्हें कई तरह की शारीरिक समस्याएं होती हैं। बच्चों के व्यवहार और उनके उठने-बैठने के ढंग प्रभावित होते हैं। बैग के बोझ से नौनिहालों को कई तरह की समस्याओं से सामना करना पड़ता है। जैसे स्पॉनडिलाइटिस, झुकी हुई कमर जैसी बीमारियां।
एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ काॅमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया की रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक प्राथमिक स्तर के तकरीबन तीस से चालीस प्रतिशत बच्चों को कमर दर्द रहता है, जिससे बच्चों में पोस्चर संबंधी प्रॉब्लम बढ़ी। इस कारण वह झुककर बैठते हैं और उनका पोस्चर खराब हुआ। इस समस्या से हम सभी अभिभावक भी बावास्ता हैं। हमारे बच्चों में भी कभी-कभार ऐसे लक्षण दिखते हैं। अक्सर हमने चिकित्सकों के यहां ऐसे बच्चों को इलाज कराते हुए देखा है जो कमर दर्द की समस्या से पीड़ित हैं। चिकित्सक हमेशा अभिभावकों को यही सलाह देते रहे हैं कि बच्चों से वजन न उठवाएं और मानसिक रूप से आजाद रहने दें। लेकिन जब बच्चों को स्कूलों से घरों के लिए पांच-सात घंटे का होमवर्क मिलेगा, उसका खेलना-कूदना, मस्ती करना सब प्रभावित होगा, तो निश्चित रूप से वह बच्चा मानसिक तनाव में रहेगा।
इन समस्याओं से छुटकारा देने के मकसद से ही केंद्र सरकार ने नई शिक्षा नीति को प्रभाव में लाने का बेहतरीन निर्णय लिया है। दरअसल, नई शिक्षा व्यवस्था समय की मांग थी। केंद्र के इस निर्णय को हर कोई सराह रहा है। हालांकि इससे कुछ निजी स्कूलों को आपत्ति है। उनका कहना है कि शिक्षा के स्तर में गिरावट आएगी। लेकिन अब नए नियमों के तरह सभी स्कूलों को यह सुनिश्चित करना होगा कि बच्चे स्कूल में टाइम टेबल के हिसाब से ही पुस्तकें लाएं। अनावश्यक किताबें व दूसरी पाठ्य सामग्री बच्चे बैग में भरकर न लाएं। बच्चों को स्कूलों से ही एक्सरसाइज और योग करने को प्रेरित करना होगा, जिससे वह शारीरिक रूप से फिट और एक्टिव हो सकें। जरूरत यही है, सभी स्कूल नई शिक्षा नीति को अमल में लाएं और उसका ईमानदारी से पालन करें।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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