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पश्चिम बंगाल में कोई बिल पेंडिंग नहीं – राज्यपाल सीवी आनंद बोस

November 21, 2025


कोलकाता । राज्यपाल सीवी आनंद बोस (Governor CV Ananda Bose) ने कहा कि पश्चिम बंगाल में कोई बिल पेंडिंग नहीं है (No Bills pending in West Bengal) । पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने सुप्रीम कोर्ट के गवर्नरों की विधायी शक्तियों और उनकी सीमाओं से जुड़े फैसले पर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने बहुत बैलेंस्ड नजरिया अपनाया है।


राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि गवर्नर या भारत के राष्ट्रपति के लिए कोई टाइमलाइन तय नहीं की जा सकती, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बहुत बैलेंस्ड नजरिया अपनाया है कि इसका मतलब यह नहीं है कि गवर्नर किसी फाइल पर अनिश्चित काल तक बैठे रह सकते हैं। इसकी देरी की कोई वजह होनी चाहिए।” उन्होंने आगे कहा, “एक और बात जो बंगाल के राज्यपाल के लिए बहुत खुशी की बात है, वह यह है कि तीन साल पहले हमने सरकार और विधानसभा के साथ बातचीत का प्रोसेस शुरू किया था। इसे भारत के सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दी है ।”

राज्यपाल ने यह भी स्पष्ट किया कि पश्चिम बंगाल में कोई बिल पेंडिंग नहीं है। कुछ बिल क्लैरिफिकेशन नोट्स के साथ सरकार को वापस भेज दिए गए हैं और हम नतीजों व जवाब का इंतजार कर रहे हैं। जवाब मिलने के बाद, बिना किसी देरी के कार्रवाई की जाएगी। दरअसल, राज्यपाल की शक्ति और अधिकार से जुड़ा मामला तमिलनाडु से उठा था। आरोप थे कि तमिलनाडु के राज्यपाल ने राज्य सरकार के बिलों को अटका कर रखा था। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपने 8 अप्रैल के फैसले को पलटा और स्पष्ट किया कि राज्यपाल या भारत के राष्ट्रपति के लिए कोई टाइमलाइन तय नहीं की जा सकती है।

भारत के चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत, विक्रम नाथ, पीएस नरसिम्हा और अतुल एस चंदुरकर की संविधान बेंच ने मामले में सर्वसम्मति से अपना फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “पिछले फैसले में तय टाइमलाइन और अगर राष्ट्रपति या राज्यपाल इन टाइमलाइन का पालन नहीं करते हैं तो बिलों को ‘डीम्ड एसेंट’ देना, कोर्ट की ओर से उनकी शक्तियों का हड़पना है और इसकी इजाजत नहीं है।”

कोर्ट ने कहा, “टाइमलाइन लगाना संविधान में रखी गई फ्लेक्सिबिलिटी के बिल्कुल खिलाफ है। अनुच्छेद 200 और 201 के संदर्भ में ‘डीम्ड असेंट’ का कॉन्सेप्ट यह मानता है कि एक कॉन्स्टिट्यूशनल अथॉरिटी, यानी कोर्ट, दूसरी कॉन्स्टिट्यूशनल फंक्शनरी अथॉरिटी (राज्यपाल या राष्ट्रपति) की जगह ले सकती है। राज्यपाल या राष्ट्रपति की शक्तियों का इस तरह हड़पना संविधान की भावना और शक्तियों को अलग करने के सिद्धांत के खिलाफ है। पेंडिंग बिलों पर डीम्ड असेंट का कॉन्सेप्ट असल में दूसरी कॉन्स्टिट्यूशनल अथॉरिटी की भूमिका को खत्म करने जैसा है।”

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी राज्यपाल के पास यह अधिकार नहीं कि वे किसी विधेयक को रोककर रखें। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल के पास बिल पर निर्णय लेने के तीन ही संवैधानिक विकल्प हैं, जिनमें विधेयक को मंजूरी देना, राष्ट्रपति के पास भेजना या विधानसभा को वापस भेजना। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल किसी विधेयक को बिना निर्णय के लंबित नहीं रख सकते।

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