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ब्रा नहीं तो एग्जाम नहीं… पेपर देने आई लड़कियों को किया टच, पूरी दुनिया में यूनिवर्सिटी की थू-थू

June 20, 2025

अबुजा: उनकी आंखों में घबराहट थी. शरीर अकड़ा हुआ, लेकिन बोलना मना था. एक-एक कर हर लड़की (Girl) के प्राइवेट पार्ट (Private Part) पर हाथ रखकर ‘जांच’ की जा रही थी, जैसे कोई गुनाह पकड़ा जाना हो. ये कोई जेल नहीं, न ही कोई धार्मिक शिविर था… ये एक यूनिवर्सिटी (University) थी. नाइजीरिया (Nigeria) की एक नामी यूनिवर्सिटी. ओगुन स्टेट (Ogun State) स्थित ओलाबिसी ओनाबंजो (Olabisi Onabanjo) यूनिवर्सिटी में हाल ही में सामने आए एक वीडियो (Video) ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया है. वीडियो में महिला स्टाफ छात्राओं के शरीर को छूकर ये जांच करती दिख रही हैं कि उन्होंने ब्रा (Bra) पहनी है या नहीं. ये सब कुछ तब हो रहा था जब वे परीक्षा (Exam) देने पहुंची थीं.

इस चौंकाने वाले वीडियो में यूनिवर्सिटी की महिला स्टाफ कतार में खड़ी छात्राओं के शरीर के ऊपरी हिस्से पर हाथ रखती दिखती हैं. वह यह चेक कर रही थीं कि छात्राओं ने ब्रा पहनी है या नहीं. अगर ब्रा नहीं, तो एग्जाम हॉल में घुसने की इजाजत नहीं. वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आते ही दुनिया भर से तीखी प्रतिक्रियाएं आने लगीं. X पर इसे ‘यौन उत्पीड़न’, ‘निजता का हनन’ और ‘महिलाओं के प्रति अपमानजनक व्यवहार’ बताया जा रहा है.


जब सोशल मीडिया पर वीडियो आग की तरह फैला तो भी यूनिवर्सिटी खामोश रही, लेकिन छात्रसंघ अध्यक्ष मुइज ओलारेंवाजू ओलातुंजी सामने आए और इस अमानवीय प्रक्रिया को ‘ड्रेस कोड की नीति’ बता दिया. उन्होंने कहा, ‘यह एक सम्मानजनक और ध्यानमुक्त माहौल बनाए रखने की कोशिश है.’ उन्होंने दावा किया कि ये नीति पहले से है और यूनिवर्सिटी ने ‘अशोभनीय कपड़ों’ को रोकने के लिए यह कदम उठाया है. छात्रसंघ अध्यक्ष ने यूनिवर्सिटी की ‘आधिकारिक गाइडलाइन’ का हवाला भी दिया, जिसमें प्राइवेट पार्ट या बेली बटन को दिखाना प्रतिबंधित बताया गया है.

रिपोर्ट के मुताबिक एक छात्रा ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि यूनिवर्सिटी में पहले से ही कपड़ों की सख्त निगरानी की जाती है. अब ब्रा चेक के नाम पर उन्हें टच किया जाता है जो एक नया स्तर है. ह्यूमन राइट्स नेटवर्क के वरिष्ठ अधिकारी हारुना आयागी ने इस पर कहा, ‘बिना सहमति शरीर को छूना एक कानूनी अपराध है. यूनिवर्सिटी अगर इस तरह से जांच कर रही है, तो उस पर केस हो सकता है.’ वहीं, मानवाधिकार वकील इनिबेहे एफियोंग ने इस नियम को ‘तानाशाही’ और ‘अमानवीय’ कहा. उन्होंने चेताया कि ऐसी नीतियां मेडिकल परिस्थितियों की अनदेखी करती हैं और छात्राओं की गरिमा को खत्म करती हैं.

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