
इंदौर, राजेश ज्वेल। योजना 97 की जमीनों को लेकर हुए खेल का भंडाफोड़ अग्रिबाण ने सिलसिलेवार किया, जिसके चलते भोपाल तक हल्ला मचा और अभी शनिवार की छुट्टी के दिन भी प्राधिकरण दफ्तर खुला रहा और नियोजन, भू-अर्जन, विधि शाखा के अधिकारियों द्वारा सारी फाइलों को खंगाला गया और एक विस्तृत जांच प्रतिवेदन भी तैयार किया जा रहा है, जिसमें मंजूर अभिन्यासों, संकल्पों के साथ-साथ अदालती, शासन आदेशों की जानकारी सम्मिलित की जाएगी। वहीं 3 साल पहले जब ज्योति गृह निर्माण का भू-घोटाला तत्कालीन कलेक्टर मनीषसिंह ने पकड़ा था, उस वक्त प्राधिकरण के सीईओ विवेक श्रोत्रिय ने इस संबंध में तीन पेज की एक रिपोर्ट तैयार की थी। उसमें भी स्पष्ट कहा गया कि डिनोटिफाइड हुए बिना कोई भी जमीन योजना से मुक्त नहीं की जा सकती और ज्योति गृह निर्माण की जमीन धारा 50(7) के नोटिफिकेशन में शामिल होने और निजी विकास की अनुमति संबंधी अनुमति न होने के चलते तकनीकी रूप से ये जमीन योजना क्रमांक 97 पार्ट-2 में शामिल है।
प्राधिकरण के ही दस्तावेजों से यह राज सामने आ रहा है कि ज्योति गृह निर्माण की तेजपुर गड़बड़ी स्थित जमीन योजना में ही शामिल है। बावजूद इसके सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद प्राधिकरण ने जिन जमीनों का सर्वे करवाकर उन्हें कब्जे में लेने की प्रक्रिया शुरू की और नगर तथा ग्राम निवेश से भी एक हिस्से का अभिन्यास मंजूर करवाया, उसमें भी ज्योति गृह निर्माण की जमीनें शामिल नहीं की गईं। जबकि प्राधिकरण की ही रिपोर्ट बताती है कि उक्त जमीन आज भी योजना 97 पार्ट-2 में शामिल है। अग्रिबाण द्वारा इस पूरे मामले का भंडाफोड़ करने के बाद संभागायुक्त और अध्यक्ष दीपक सिंह ने भी विस्तृत जांच प्रतिवेदन मांगा है तो प्राधिकरण सीईओ आरपी अहिरवार का भी कहना है कि इस संबंध में रिपोर्ट तैयार की जा रही है। शनिवार को भी सभी अधीनस्थों को बुलाया गया और फाइलों की गंभीरता से जांच की जा रही है। साथ ही सहकारिता विभाग से भी रिकॉर्ड मंगवाया जाएगा।
यह भी देखा जा रहा है कि ज्योति गृह निर्माण को जिस शीतल नगर गृह निर्माण का हवाला देकर संचालक नगर तथा ग्राम निवेश ने निजी विकास की अनुमति दी थी, उसकी भी वर्तमान स्थिति क्या है। यानी ज्योति के साथ-साथ शीतल नगर गृह निर्माण की भी फाइलों की जांच प्राधिकरण ने शुरू कर दी है, क्योंकि निजी विकास की अनुमति के साथ यह शर्त रखी गई थी कि शीतल नगर गृह निर्माण द्वारा दो वर्ष की अवधि में अगर विकास कार्य संपन्न नहीं किया गया तो संस्था को दी गई एनओसी और निजी विकास की अनुमति निरस्त करते हुए प्राधिकरण को भूमि अर्जित करने का अधिकार रहेगा। अब यह देखा जा रहा है कि शीतल नगर ने भी इन शर्तों का पालन किया अथवा नहीं। दूसरी तरफ प्राधिकरण के ही दस्तावेजों से यह स्पष्ट हो रहा है कि ज्योति गृह निर्माण की तेजपुर गड़बड़ी स्थित सर्वे नंबर 304/1 पैकि, 307 पैकि और 308 पैकि क्षेत्रफल 3.190 हेक्टेयर जमीन भी 97 पार्ट-2 में तकनीकी रूप से शामिल रही है।
ऑपरेशन भूमाफिया के दौरान तत्कालीन कलेक्टर मनीषसिंह ने ज्योति गृह निर्माण की जांच करवाते हुए मौके पर बन रहे शॉपिंग मॉल का अभिन्यास भी जहां नगर तथा ग्राम निवेश से निरस्त करवाया, वहीं प्राधिकरण सीईओ से इसकी रिपोर्ट भी मांगी। तत्कालीन सीईओ श्रोत्रिय ने बिंदुवार ज्योति गृह निर्माण की तथ्यात्मक रिपोर्ट तैयार की, जिसके निष्कर्ष में भी यह स्पष्ट किया गया कि प्राधिकारी की ओर से वर्ष 2014-15 में भी विभिन्न सरकारी कार्यालयों को जो पत्र भेजे गए, उसमें धारा 50 (7) के नोटिफिकेशन में ज्योति गृह निर्माण संस्था के खसरा नंबर की भूमियां भी समाविष्ट रहीं। दूसरी तरफ शासन भी अपने तमाम पत्रों में यह स्पष्ट लिख चुका है कि जब तक योजना में शामिल कोई जमीन डिनोटिफाइड नहीं होती है तब तक वह उस योजना का हिस्सा मानी जाएगी, जिस तरह से अभी अयोध्यापुरी सहित अन्य योजना में शामिल जमीनों को डिनोटिफाइड करने की अनुमति शासन से मांगी है। यानी यह स्पष्ट है कि ज्योति गृह निर्माण सहित कई योजनाओं और निजी जमीन मालिकों को प्राधिकरण ने इसी तरह विगत वर्षों में उपकृत किया होगा और योजना 97 में जो 500 एकड़ से अधिक जमीनें छोड़ी गईं उनका भी लेखा-जोखा मांगा है। इतना ही नहीं, योजना 97 पार्ट-4 में शामिल सुयश एग्जिम की भी चर्चित जमीन है और उस पर भी एक शॉपिंग मॉल लाभम ग्रुप द्वारा बनाया जा रहा है। इस मामले में प्रमुख सचिव के खिलाफ इंदौर हाईकोर्ट में लगी अवमानना याचिका के चलते पिछले दिनों प्राधिकरण और प्रशासनिक अधिकारियों ने काम भी रुकवाया था।
योजना 97 में शामिल जमीनों का लेखा-जोखा
प्राधिकरण की योजना 97, जो कि रिंग रोड निर्माण के लिए घोषित की गई थी, जिसमें कुल 428 हेक्टेयर, यानी एक हजार एकड़ से अधिक जमीनें शामिल रहीं। तेजपुर गड़बड़ी, पीपल्याराव, बिजलपुर और हुक्माखेड़ी की जमीनों पर चार भागों में योजना घोषित की गई। इसमें से प्राधिकरण को अवॉर्ड के जरिए 227.853 हेक्टेयर जमीन हासिल हुई और अवॉर्ड के अलावा विभिन्न संकल्पों के माध्यम से 200.344 हेक्टेयर जमीनें शर्तों के साथ मुक्त की गईं, लेकिन बाद में प्राधिकरण ने जिन शर्तों पर जमीनें मुक्त की थीं उसे लागू करवाने में कोताही बरती और करोड़ों रुपए की जमीनें छूटती चली गईं, जिन पर एनओसी भी जारी कर दी गई। जबकि योजना से छोड़ी गई जमीनों का डिनोटिफिकेशन आज तक नहीं हुआ और अब इसका विस्तृत प्रस्ताव शासन प्राधिकरण को भेज रहा है।
90 एनओसी जारी, मगर एक भी निरस्त नहीं की
दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट से लगभग 200 एकड़ जमीन प्राधिकरण को हासिल हुई। उस दौरान यह दावे किए गए कि योजना में शामिल जमीनों पर कई एनओसी अवैध रूप से जारी की गई हैं। लगभग 90 एनओसी प्राधिकरण की नियोजन और भू-अर्जन शाखा और विधि विभाग ने आपसी संगनमत होकर जारी कर डालीं। प्राधिकरण ने 7 सदस्यीय टीम तक गठित की, जिसने मौके पर अतिक्रमण से लेकर एनओसी जारी करने के खेल को पकड़ा। बावजूद इसके एक भी एनओसी निरस्त नहीं की गई। उलटा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद जमीन छोड़ने के अवश्य तरीके खोजे जाने लगे, जिसमें राजनीतिक दबाव-प्रभाव भी शामिल रहा। यहां तक कि तत्कालीन प्राधिकरण अध्यक्ष जयपालसिंह चावड़ा ने भी यह बयान दिया था कि जो 200 एकड़ से अधिक जमीन सुप्रीम कोर्ट के आदेश से मिली है और बड़ी संख्या में जो एनओसी जारी हुई हैं उन्हें निरस्त कर जमीन हासिल की जाएगी।
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