बीजिंग। चीन (China) ने एक महत्वाकांक्षी रेल परियोजना की योजना बनाई है, जो भारत के लिए दोहरी चिंता का कारण बन रही है। यह रेल लाइन (Rail line) तिब्बत को उत्तर-पश्चिमी शिनजियांग (Western Xinxiang) से जोड़ेगी और वास्तविक नियंत्रण रेखा (LC) के निकट से गुजरेगी, जिसमें भारत का अक्साई चिन क्षेत्र भी शामिल है। यह क्षेत्र भारत का अभिन्न हिस्सा है, लेकिन 1950 के दशक से चीन के कब्जे में है। इस परियोजना से चीनी रेल सीधे भारत की दहलीज तक पहुंच जाएगी, जिससे नई दिल्ली की चिंता बढ़ना तय है।
लगभग 20 साल पहले, चीन ने पहली बार 4,000 मीटर की ऊंचाई पर जमी बर्फ (परमाफ्रॉस्ट) के ऊपर से 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से यात्री ट्रेन चलाई थी। यह गोलमुड-ल्हासा सेक्शन था, जिसने 2006 में तिब्बत की राजधानी ल्हासा को चीन के रेल नेटवर्क से जोड़ा। अब चीन तिब्बत में रेल नेटवर्क को और गहराई तक ले जा रहा है।
रेल मार्ग की औसत ऊंचाई 4,500 मीटर से अधिक होगी और यह कुन्लुन, कराकोरम, कैलाश और हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं से होकर गुजरेगा। मार्ग में हिमनद, जमी हुई नदियां और स्थायी रूप से जमी मिट्टी (पर्माफ्रॉस्ट) जैसी चुनौतियां हैं। रेलवे का पहला खंड शिगात्से से पखुक्त्सो तक होगा, जो रुतोग और पांगोंग झील के चीनी हिस्से के पास से गुजरेगा। इस परियोजना का लक्ष्य 2035 तक ल्हासा को केंद्र में रखकर 5,000 किलोमीटर का पठारी रेल नेटवर्क स्थापित करना है।
भारत के लिए क्यों है चिंता?
इस रेल परियोजना से भारत के लिए दोहरी चिंताएं उत्पन्न हो रही हैं। पहला, यह रेल लाइन अक्साई चिन से होकर गुजरेगी, जो भारत का हिस्सा है, लेकिन चीन के अवैध कब्जे में है। 1950 के दशक में चीन द्वारा अक्साई चिन में जी219 राजमार्ग के निर्माण ने 1962 के भारत-चीन युद्ध को भड़काने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस रेल लाइन के निर्माण से चीन की सेना और सैन्य उपकरणों को तेजी से एलएसी तक पहुंचाने की क्षमता बढ़ेगी, जो भारत के लिए रणनीतिक खतरा है।
दूसरा, यह रेल लाइन नेपाल सीमा और चुम्बी घाटी के संवेदनशील क्षेत्र तक विस्तारित होगी, जहां 2017 में डोकलाम सैन्य गतिरोध हुआ था। इसके अलावा, ल्हासा-न्यिंगची रेल लाइन, जो 2021 में शुरू हुई, वह भारत के अरुणाचल प्रदेश की सीमा के करीब है। चीन की योजना इस लाइन को चेंगदू तक विस्तारित करने की है, जो पश्चिमी चीन में एक प्रमुख सैन्य केंद्र है। ये सभी घटनाक्रम भारत की उत्तरी और पूर्वी सीमाओं पर सुरक्षा जोखिम बढ़ाते हैं।
चीन का रणनीतिक इरादा क्या है?
चीन का दावा है कि यह परियोजना उसके परिवहन बुनियादी ढांचे को मजबूत करेगी और तिब्बत को देश के अन्य हिस्सों से बेहतर जोड़ेगी। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इसका मुख्य उद्देश्य रणनीतिक है। यह रेल लाइन चीन को भारत के साथ विवादित सीमा क्षेत्रों में तेजी से सैन्य बल और संसाधन तैनात करने की सुविधा देगी। 2008 में शुरू हुई इस परियोजना की योजना को 2022 में सर्वेक्षण और डिजाइन टेंडर के साथ गति मिली। अप्रैल 2025 में, चीन के परिवहन मंत्रालय ने इसे 45 प्रमुख परियोजनाओं में शामिल किया, जिनका निर्माण इस वर्ष शुरू होगा।
भारत-चीन संबंधों पर असर
यह रेल परियोजना ऐसे समय में शुरू हो रही है, जब भारत और चीन 2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद तनाव कम करने की कोशिश कर रहे हैं। पिछले साल रूस में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद दोनों देशों के संबंधों में सुधार के संकेत मिले थे। 31 अगस्त को होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में मोदी की चीन यात्रा से पहले यह परियोजना नए तनाव का कारण बन सकती है।
भारत ने अभी तक इस रेल परियोजना पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। हालांकि, नई दिल्ली अपनी सीमाओं पर बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में जुटा है ताकि चीन की बढ़त का मुकाबला किया जा सके।
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