
इंदौर। यह पहला मौका है जब हाईकोर्ट ने सरकारी जमीनों की लूट को लेकर ना सिर्फ चिंता जताई, बल्कि कड़ा और ऐतिहासिक फैसला भी सुनाया, जिसमें कहा गया कि सरकार ऐसा तंत्र बनाए जिससे उसकी जमीनों की रक्षा की जा सके और अगर सरकारी जमीनों से संबंधित किसी न्यायालयीन फैसले में एक्स पार्टी डिक्री हो जाती है तो उसे 3 महीने यानी 90 दिन के भीतर अगर चुनौती नहीं दी जाती है तो फिर कलेक्टर के खिलाफ भी अभियोजन की कार्रवाई शुरू हो सकेगी और कोई भी सामान्य नागरिक बीएनएस की धारा 316 (5) के तहत यह अभियोजन की कार्रवाई शुरू कर सकेगा। इंदौर में ही हजारों करोड़ की सरकारी, नजूल सहित मंदिरों, सीलिंग सहित अन्य जमीनें भूमाफियाओं ने हड़प ली और शासन-प्रशासन डिक्री को चुनौती ही तय समय सीमा में नहीं दे पाया।
इंदौर में ही पीपल्याकुमार तालाब की साढ़े 7 एकड़ बहुचर्चित जमीन घोटाले में भी यही हुआ और सालों पहले जो डिक्री हुई, उसके आधार पर तहसीलदारों ने नामांतरण कर डाले और अब सरकार इस जमीन को वापस हासिल करने के लिए कोर्ट-कचहरी में लड़ रही है। यही स्थिति कई सरकारी मंदिरों, सीलिंग प्रभावित जमीनों, नजूल, चरनोई से लेकर अन्य सरकारी जमीनों के मामले में हुई है। दरअसल, अधिकारियों-कर्मचारियों के साथ ही सांठगांठ कर जमीनी जादूगरों ने डिक्री हासिल की और फिर मिलीभगत के चलते समय सीमा में इनकी अपीलें नहीं करवाई और टाइम बार यानी समय सीमा समाप्त होने के बाद जब हल्ला मचा और मीडिया में मामला उजागर हुई और जांच शुरू हुई तब हड़बड़ाए शासन-प्रशासन ने हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक याचिकाएं दायर कीं। मगर इनमें से कई याचिकाएं इसी आधार पर कोर्ट ने रद्द कर दी कि समय सीमा में अपील क्यों नहीं की।
अब बुरहानपुर से जुड़ी एक जमीन के मामले में जबलपुर हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया है और शासन को निर्देश दिए कि वह 6 माह के भीतर ऐसा तंत्र बनाए जिससे दीवानी मुकदमों में जोरदार तरीके से शासन अपना पक्ष रख सके और सरकारी जमीनों से जुड़े मामलों में अगर कोई गड़बड़ी पाई जाती है तो संबंधित जिला कलेक्टर उसके जिम्मेदार होंगे और उनके खिलाफ भी कार्रवाई होगी। हाईकोर्ट ने सीवनी, मालवा, नर्मदापुरम व अन्य की एक याचिका के मामले में उक्त फैसला सुनाया, जिसमें जमीन विक्रय-पत्र के माध्यम से खरीदी गई और राजस्व रिकॉर्ड में वह जमीन फौजी पड़ाव के नाम पर दर्ज थी। यानी उसका इस्तेमाल भारतीय सेना द्वारा शिविर लगाने के लिए किया जाता था। बाद में एक्स पार्टी डिक्री होने और तय समय में शासन द्वारा चुनौती ना देने के कारण जमीन निजी हाथों में चली गई। अब हाईकोर्ट ने शासन को कहा है कि वह सरकारी जमीनों से जुड़े मामलों के मुकदमों को लडऩे की एक तयशुदा प्रक्रिया तय करे, ताकि उसके जिम्मेदार अफसरों के खिलाफ जिम्मेदारी तय हो सके। इसमें किसी सरकारी जमीन के खिलाफ अगर एक्स पार्टी डिक्री होती है तो उसे 90 दिनों के भीतर चुनौती दी जाना चाहिए और अगर ऐसा नहीं होता है तो कलेक्टर के खिलाफ अभियोजन की कार्रवाई होगी और शासन को भी 60 दिनों के भीतर इस अभियोजन मंजूरी पर निर्णय लेना पड़ेगा। इंदौर में ही बीते वर्षों में डिक्री के आधार पर कई सरकारी जमीनें निजी हाथों में चली गई, जिन पर कालोनी, बिल्डिंगों, होटल से लेकर कई अन्य निर्माण भी मौके पर हो चुके हैं।
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