
नई दिल्ली । दीघा मंदिर(Digha Temple) को ‘धाम’ नाम देने को लेकर पश्चिम बंगाल(West Bengal) के साथ चल रहे विवाद के मद्देनजर, श्री जगन्नाथ मंदिर प्रबंध समिति (Sri Jagannath Temple Management Committee) ने सोमवार को ओडिशा में 12वीं शताब्दी के मंदिर से जुड़े कुछ शब्दों और ‘लोगो’ का पेटेंट कराने का फैसला किया। पुरी के गजपति महाराजा दिव्यसिंह देब की अध्यक्षता में समिति की बैठक में इस आशय के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई।
बैठक में, मुख्य सचिव मनोज आहूजा, श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) के मुख्य प्रशासक अरबिंद पाढी, पुरी जिलाधिकारी सिद्धार्थ शंकर स्वैन, पुरी के पुलिस अधीक्षक विनीत अग्रवाल और पदेन सदस्य शामिल हुए।
एसजेटीए के मुख्य प्रशासक पाढी ने संवाददाताओं से कहा, ‘एसजेटीए जल्द ही महाप्रसाद (भोग), श्रीमंदिर (मंदिर), श्री जगन्नाथ धाम (स्थान), श्रीक्षेत्र (स्थान) और पुरुषोत्तम धाम (स्थान) जैसे शब्दों के पेटेंट के लिए आवेदन करेगा। इस संबंध में एक प्रस्ताव को एसजेटीएमसी द्वारा मंजूरी दे दी गई है।’
पाढी ने कहा कि जगन्नाथ मंदिर से संबंधित विशिष्ट शब्दों और ‘लोगो’ का पेटेंट कराना पुरी मंदिर की सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक पहचान की रक्षा के लिए एक कानूनी उपाय के रूप में काम करेगा। उन्होंने कहा, ‘इससे 12वीं शताब्दी की मूल आध्यात्मिक पहचान के दुरुपयोग और इसकी शब्दावली के अनधिकृत उपयोग को रोकने में मदद मिलेगी।’
जगन्नाथ धाम शब्द के कथित दुरुपयोग को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार के साथ चल रहे विवाद के बारे में पाढी ने कहा कि इस मामले का हल राज्य सरकारों द्वारा किया जाएगा।
देब ने कहा, ‘पश्चिम बंगाल सरकार दीघा स्थित अपने मंदिर के लिए ‘जगन्नाथ धाम’ शब्द का इस्तेमाल नहीं कर सकती। यह हिंदू धर्मग्रंथों और भगवान जगन्नाथ की सदियों पुरानी परंपरा के खिलाफ है।’ गजपति महाराज ने एक सवाल के जवाब में कहा कि इस मुद्दे का हल दो राज्य सरकारों के बीच सौहार्दपूर्ण तरीके से निकाला जाना चाहिए।
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