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एक देश 15 हिस्सों में बंटा, दुनिया के सबसे बड़े बंटवारे की कहानी

August 14, 2025

नई दिल्ली: मुगलों से सत्ता छीनने के बाद अंग्रेजी शासन ने भारत की जनता पर खूब अत्याचार किए. देश के हर संसाधन को लूटा और इंग्लैंड की तरक्की में लगाते रहे. आखिरकार गुलामी की बेड़ियां तोड़ भारत ने 14 अगस्त 1947 को आजादी हासिल की तो एक बार फिर अंग्रेजों ने चाल चल दी और देश को दो टुकड़ों में बांट दिया. भारत और पाकिस्तान दो देशों का उदय हुआ. हालांकि, इस घटना के सालों बाद एक और देश का बंटवारा हुआ, जिसके 15 टुकड़े हुए.

इसे दुनिया का सबसे बड़ा बंटवारा कहा गया. यह बंटवारा था सोवियत संघ का, जिससे टूटकर 15 अलग-अलग देश बन गए. आइए जान लेते हैं इस बंटवारे की पूरी कहानी.

सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ (USSR) को हम आमतौर पर सोवियत संघ के रूप में जानते हैं. इसका गठन साल 1922 को हुआ था. यह एक समाजवादी संघ था, जिसमें कई गणराज्य शामिल किए गए थे. इनमें से रूस प्रमुख था और इसका शासन कम्युनिस्ट पार्टी के हाथों में था. साल 1991 में सोवियत संघ का विघटन हुआ तो क्षेत्रफल के हिसाब से यह दुनिया का सबसे बड़ा बंटवारा बन गया. इससे पहले सोवियत संघ दुनिया का सबसे बड़ा देश था. इसका क्षेत्रफल 2.2 करोड़ वर्ग किलोमीटर था.

सोवियत संघ के विघटन के बाद 15 अलग-अलग स्वतंत्र देश बने. इनमें रूस, यूक्रेन, बेलारूस, एस्टोनिया, लिथुआनिया, लातविया, जार्जिया, आर्मेनिया, अजरबैजान, कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और मोल्दोवा शामिल हैं. अब इन देशों की अलग-अलग सत्ता और स्वतंत्र अस्तित्व है.

दुनिया के तमाम देशों की तरह ही सोवियत संघ के गठन से पहले रूस में भी तानाशाही थी. इसे जारशाही या जारवादी शासन के रूप में जाना जाता है. वहां के शासक को जार कहा जाता था. जार वास्तव में रोमानोव राजवंश के शासक थे, जिन्होंने साल 1613 से 1917 तक रूस पर शासन किया. उनके पास ही शासन और सेना के साथ स्थानीय समाज पर पूरा नियंत्रण और ताकत थी.

हालांकि, जार के शासन के दौरान लोगों में बढ़ती असमानता और आर्थिक कठिनाइयों के कारण असंतोष पनपने लगा. इसका नतीजा यह हुआ कि रूस में एक क्रांति शुरू हुई. फरवरी 1917 में जार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और हड़ताल शुरू हो गई. इस क्रांति के परिणाम स्वरूप जार निकोलस द्वितीय को सत्ता छोड़नी पड़ी और एक अनंतिम सरकार का गठन हुआ. इससे भी पूरी तरह से हल नहीं निकला और लेनिन और ट्रॉट्स्की की अगुवाई में अक्तूबर क्रांति हुई. इसके बाद अनंतिम सरकार का अस्तित्व खत्म हुआ और सोवियत शासन की शुरुआत हुई.

इसके बावजूद रूस गृह युद्ध में जलता रहा और साल 1918 से 1922 तक रेड आर्मी को बोल्शेविक का विरोध करने वाली ताकतों से युद्ध करना पड़ा. अंत में बोल्शेविक की जीत हुई. इससे बोल्शेविक को मजबूती मिली और रूस एकीकृत राज्य की ओर बढ़ चला. यह 30 दिसंबर 1922 की बात है. दुनिया में पहली बार साम्यवादी शासन के तहत सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ (यूएसएसआर) के गठन की आधिकारिक घोषणा की गई. लेनिन की अगुवाई में केंद्रीकृत आर्थिक नियोजन और साम्यवादी शासन शुरू हुआ.

यह दूसरे विश्व के दौर की बात है. सोवियत संघ को न चाहते हुए भी युद्ध में उतरना पड़ा. साल 1940 में तीन बाल्टिक राज्य एस्टोनिया, लिथुआनिया और लातविया को मोलोटोव-रिबेंट्रॉप की संधि के बाद जबरन सोवियत संघ का हिस्सा बना लिया गया, जिन्हें साल 1918 में स्वाधीनता मिली थी. दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूएसएसआर एक महाशक्ति बन गया और समाजवादी ब्लॉक की अगुवाई करने लगा.

इतना बड़ा देश तो बन गया पर इसे चलाना बेहद मुश्किल था. इसके कारण 1970 का दशक आते-आते सोवियत संघ अर्थव्यवस्था, उत्पादकता और प्रौद्योगिकी के मामले में पिछड़ने लगा. सेना और सैटेलाइट स्टेट्स पर ज्यादा जोर दिया जाने लगा और संसाधनों का अत्यधिक दोहन शुरू हो गया. देश में न्यूनतम जीवन स्तर बनाए रखने के लिए सरकार की ओर से सब्सिडी दिए जाने के बावजूद सामान की कमी से नागरिकों में असंतोष पनपने लगा.

कम्युनिस्ट पार्टी इससे कमजोर होने लगी और साल 1990 आते-आते यूक्रेन और लिथुआनिया आदि में राष्ट्रवादी आंदोलन पनपने लगे. अमेरिका का मुकाबला करने के लिए हथियारों की होड़, अफगानिस्तान में मिली हार और साल 1989 में बर्लिन की दीवार गिरने के कारण सोवियत संघ का नियंत्रण कमजोर होता गया, इन सबके कारण उपजे असंतोष का परिणाम यह रहा कि दिसंबर 1991 में सोवियत संघ कई स्वतंत्र राज्यों (देशों) में विघटित हो गया.

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